यूक्रेनी शरणार्थियों में 10 लाख से ज्यादा बच्चे पीछे छूटे, अपनों की चिंता

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12 मार्च। 10 साल की अनामारिया मसलोव्स्का का घर खारकीव में था। जब वहाँ बमबारी शुरू हुई, तो अनामारिया के दोस्त, उनके खिलौने और यहाँ तक कि उसका देश यूक्रेन भी उससे छूट गया। उसे अपना सबकुछ पीछे छोड़कर मां के साथ एक लंबी यात्रा पर निकलना पड़ा। कई दिन लंबी इस यात्रा का हासिल बस इतना है कि अब अनामारिया और उनकी माँ सुरक्षित हैं। इस सुरक्षा के लिए उन्हें सबकुछ गंवाकर शरणार्थी बनना पड़ा है।

मुझे अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है

अनामारिया और उनकी माँ उन सैकड़ों शरणार्थियों के दल का हिस्सा थे, जो बहुत मशक्कतों के बाद ट्रेन के रास्ते हंगरी सीमा पार करने में कामयाब रहे। हालांकि वो अनामारिया खुश नहीं हैं। उन्हें खारकीव में रह रहे अपने दोस्तों की चिंता है। उसने अपने दोस्तों को वाइबर पर कई संदेश भेजे, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।

हंगरी के सीमावर्ती शहर जाहून में रेलवे स्टेशन के भीतर बैठी अनामारिया बताती हैं, “मुझे उनकी बहुत याद आती है। मेरा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है। वे बस मेरे भेजे मेसेज पढ़ते हैं, उनका जवाब नहीं आता। मुझे सच में बहुत चिंता हो रही है क्योंकि मैं नहीं जानती कि वे कहां हैं?”

अनामारिया की परवरिश उनकी मां ने अकेले ही की है। वह उन 10 लाख शरणार्थी बच्चों में शामिल है, जिन्हें रूसी हमले के बाद यूक्रेन से जान बचाकर भागना पड़ा। पिछले दो हफ्तों में यूक्रेन से निकले शरणार्थियों की संख्या 20 लाख से ज्यादा हो गई है। इनमें आधे बच्चे हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें जान बचाने की यात्रा अकेले ही करनी पड़ी। संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी ‘यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज’ (यूएनएचसीआर) ने इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक का यूरोप का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट बताया है।

बच्चों पर इस त्रासदी का गहरा असर

बहुत छोटे बच्चों को अभी यह समझ नहीं आ रहा होगा कि उनकी जिंदगी कैसे सिर के बल उलट गई है। मगर थोड़े बड़े बच्चे हालात को समझ पा रहे हैं। उन्हें सामने आई परेशानियां महसूस हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन बच्चों पर युद्ध की विभीषिका और शरणार्थी होने की पीड़ा का मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है।

37 साल की विक्टोरिया फिलोनचुक अपनी एक साल की बेटी मारगोट को साथ लेकर कीव से रोमानिया पहुंची हैं। वह बताती हैं, “मारगोट को यह यात्रा किसी एडवेंचर जैसी लगी। उसके जैसे छोटे बच्चों को शायद समझ ना आए, लेकिन तीन-चार साल के बच्चे त्रासदी को समझ रहे हैं। मुझे लगता है कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल अनुभव है।”

डैनियल ग्रैडिनारु रोमानिया की सीमा पर शरणार्थियों के लिए काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन ‘फाइट फॉर फ्रीडम’ के संयोजक हैं। उन्हें डर है कि अचानक घर छूट जाने और ठंड में कई दिनों की लंबी यात्रा का अनुभव शायद बच्चों की आगे की पूरी जिंदगी पर निशान छोड़ेगा। डैनियल कहते हैं, “मैं उम्मीद करता हूं कि ये लोग जहां भी जाएं, वहां के लोग इनकी काउंसलिंग कराने में मदद करें।”

रूस पर नागरिकों के दमन का इल्जाम

ज्यादातर शरणार्थी यूक्रेन की पश्चिमी सीमा- हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और मोलदोवा की ओर से आ रहे हैं। सबसे ज्यादा लोग पोलैंड पहुंच रहे हैं। पोलिश बॉर्डर गार्ड एजेंसी के मुताबिक, अब तक 13 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके हैं। हालिया दिनों में कई यूक्रेनी मानवीय गलियारों के रास्ते संघर्ष वाले इलाकों से निकल रहे हैं। यूक्रेन में यूएन की अधिकारी नतालिया मुदरेंको रूस पर महिलाओं और बच्चों समेत आम लोगों को रोकने का आरोप लगाती हैं। उन्होंने इल्जाम लगाया कि यूक्रेन के कुछ संघर्ष वाले शहरों में रूस भागने की कोशिश कर रहे लोगों को रोककर उन्हें बंधक बना रहा है।

8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की एक बैठक में नतालिया ने कहा कि नागरिकों को बाहर नहीं आने दिया जा रहा है और मानवीय सहायता उनतक पहुंचाने में भी रुकावट डाली जा रही है। रुंधे गले से नतालिया ने आरोप लगाया, “अगर लोग भागने की कोशिश करते हैं, तो रूसी उनपर गोलियां चलाकर उन्हें मार डालते हैं। लोगों के पास खाना-पानी खत्म हो रहा है, वे मर रहे हैं। “7 मार्च को मरियोपोल शहर में मर गई एक छह साल की बच्ची के बारे में बताते हुए नतालिया ने कहा, “अपने जीवन के आखिरी पलों में वह बच्ची बिल्कुल अकेली थी। उसकी मां रूसी गोलीबारी में पहले ही मारी गई थी।”

इसके अलावा हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, मोलदोवा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आयरलैंड में भी यूक्रेनी शरणार्थी पहुंच रहे हैं। इस तस्वीर में यूक्रेन से भागकर आया एक रिफ्यूजी बच्चा बुडापेस्ट के युगाति रेलवे स्टेशन पर ट्रांसपोर्ट का इंतजार करते हुए कांच पर अपने हाथ जोड़कर दिल बना रहा है।

त्रासदी का अनुभव

9 साल की वलेरिया वरेनको यूक्रेन की राजधानी कीव में रहती थीं। जब यहां रूसी बमबारी शुरू हुई, तो उसे अपनी इमारत के बेसमेंट में छुपना पड़ा। अपने छोटे भाई और मां जूलिया के साथ एक लंबा सफर तय करके 9 मार्च को वलेरिया हंगरी पहुंची है। इन तीनों को यहां बाराबास शहर के एक अस्थायी शरणार्थी शिविर में जगह मिल गई है। अब वलेरिया यूक्रेन में छूट गए बच्चों को कहना चाहती हैं कि वे सावधान रहें। सड़क पर पड़ी किसी लावारिस चीज को न छूएं क्योंकि “वे बम हो सकते हैं और बच्चों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं।” वलेरिया के पिता भी यूक्रेन में ही हैं। वह रूसी हमलावर सैनिकों से कीव की रक्षा करने में हाथ बंटा रहे हैं। वलेरिया को अपने पिता पर गर्व है, लेकिन उसे पापा की बहुत याद आ रही है. वह कहती है, “मैं चाहती हूं कि पापा भी हमारे पास आ जाएं, लेकिन उन्हें आने की इजाजत नहीं है।”

वलेरिया केवल नौ साल की है। युद्ध ने उसे रातोरात बहुत अनुभवी बना दिया है। त्रासदी में बच्चों का यूं एकाएक इतना समझदार हो जाना कितना भीषण है!

(Dw.com से साभार)

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