16 मार्च। तीन हफ्तों से ज्यादा चल चुके यूक्रेन के खिलाफ रूस के एकतरफा युद्ध में यूक्रेन को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। तमाम वार्ताओं और प्रभावशाली राष्ट्रों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने एवं अन्य तरीकों से हस्तक्षेप की कोशिशें बेनतीजा रही हैं।
इधर रूस ने बच्चों के अस्पताल पर हमला कर यह संदेश दे दिया है कि वह मनमानी पर उतारू है व अंतरराष्ट्रीय युद्ध के नियमों का भी पालन करने को तैयार नहीं है। अस्पताल, स्वास्थ्यकर्मियों या एम्बुलेंस, आदि स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाओं अथवा बच्चों, विकलांग, बूढ़े, महिलाओं को निशाना बनाना कायरतापूर्ण कार्रवाई है और हम इसकी घोर निंदा करते हैं।
यूक्रेन ने यह भी घोषणा कर दी है कि वह नार्थ अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल नहीं होगा (जिस वजह से रूस ने उस पर हमला किया था) फिर भी रूस हमला नहीं रोक रहा। रूस की लगातार युद्ध जारी रखने की जो भी मंशा हो लेकिन यह यूक्रेन को पूरी तरह से तबाह कर देगा जिसकी यूक्रेन को दीर्घकालिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
हम संयुक्त राष्ट्र संघ से आग्रह करते हैं कि रूस के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने से आगे जाकर कुछ ठोस कार्रवाई करे ताकि रूस को युद्ध रोकने के लिए मजबूर किया जा सके। जब भी दुनिया की कोई बड़ी ताकत, खासकर सुरक्षा परिषद के वे पांच स्थायी सदस्य जिनके पास नाभिकीय शस्त्र भी हैं और वीटो शक्ति भी- अमरीका, रूस, इंग्लैण्ड, फ्रांस व चीन- अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं तो दुनिया के तमाम देश अपने आप को लाचार पाते हैं। अतः संयुक्त राष्ट्र संघ के लोकतांत्रिकीकरण के साथ साथ महाविनाश के हथियार जैसे नाभिकीय शस्त्र को खत्म करने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
भारत ने भी रूस के खिलाफ व यूक्रेन के पक्ष में स्पष्ट भूमिका नहीं ली है और वह संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर अपना मत भी नहीं दे रहा है। भारत की पारम्परिक भूमिका किसी महाशक्ति का साथ देने के बजाय गुट निरपेक्षता की रही है और वही भूमिका उसे निभानी चाहिए।