23 मार्च। ईंट भट्टों पर काम करनेवाले लोगों की जिंदगी बहुत ही दुष्कर होती है, कड़ी धूप में दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत करते रहते हैं। बच्चे, महिलाएँ, बुजुर्ग सभी लोग इसी काम में लगे रहते हैं, जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए वे हाथ मिट्टी से सने होते हैं। लेकिन पंजाब के मौड़ में ऐसे ही कुछ बच्चों के हाथों में अब किताबें नजर आने लगी हैं। इस बदलाव का सारा श्रेय ‘मेरा अपना स्कूल’ पहल को जाता है।
दैनिक भास्कर के अनुसार मुक्तसर जिले के मौड़ में चिकित्सक राजविंदर कुमार और उनके सहयोगियों ने यह पहल की है। उनका मानना है कि ऐसे बच्चे संसाधनों के अभाव में हमारे पास तक नहीं आ सकते तो क्या हुआ, हम तो पढ़ाने के लिए उनके पास जा ही सकते हैं। इसलिए प्रभ वेलफेयर सोसाइटी के सहयोग से ईंट भट्ठों के पास तीन स्कूल खोल दिये गए। 60 से अधिक छात्र इसमें पढ़ रहे हैं।
राजविंदर के अनुसार या तो बच्चे इधर-उधर घूमकर अपना समय व्यतीत करते थे या इनके माता-पिता इनको भी अपने साथ काम पर ले जाते थे। इन बच्चों के माता-पिता का तर्क है कि बच्चे उतनी दूर कैसे जाएंगे तथा फीस आदि कैसे भरेंगे।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मौड़ में तीन स्कूल खोले गए हैं। जल्द ही यह योजना पूरे जिले मे लागू की जाएगी ताकि इन गरीब और लाचार बच्चों में शिक्षा का अलख जगाया जा सके। बच्चे पढ़ने के लिए इतने उत्साहित थे कि जब उनसे विद्यालय का नाम पूछा गया तो बच्चों ने इसका नाम ‘मेरा अपना स्कूल’ सुझाया। अभी फिलहाल तिरपाल आदि की सहायता से कमरे बनाये गए हैं और उसी में कक्षाएँ आदि चल रही हैं। बहुत जल्द लोगों के सहयोग से कमरे आदि बनवाएँ जाएंगे तथा अध्यापकों आदि का वेतन और स्टेशनरी आदि की व्यवस्था की जाएगी।