अखिल गोगोई की रिहाई क्यों मायने रखती है – डॉ. सुनीलम

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खिल गोगोई अंततः जेल से छूट गए। जेल के बारे में मेरी यह स्थायी मान्यता है कि कोई भी जेल में स्थायी तौर पर नहीं रहता। समय कम-ज्यादा लगता है लेकिन आरोपी जेल से बाहर आ ही जाता है।

पर अखिल गोगोई का जेल से छूटना असाधारण घटना है, ऐतिहासिक फैसला है  क्योंकि जिस तरह से उन्हें माओवादी और राष्ट्रद्रोही साबित करने पर  भाजपा सरकार तुली हुई थी उससे यह नहीं लगता था कि वे इतने जल्दी छूट जाएंगे।

अखिल गोगोई के खिलाफ विगत वर्षों में अब तक 142  फर्जी प्रकरण बनाए गए हैं। 78 प्रकरणों में वे बरी किए जा चुके हैं। एनआईए न्यायालय ने भी उन्हें  सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया है। यह महत्त्वपूर्ण है कि  चार्ज के स्तर पर ही केस डिस्चार्ज कर दिया गया।

केस चलाने योग्य नहीं समझा गया। अभियोजन पक्ष कोई ऐसे तथ्य पेश नहीं कर सका जिसके आधार पर केस चलाया जा सके!

इससे बड़ी असफलता किसी एजेंसी की नहीं हो सकती। न्यायाधीश ने  एनआईए  को भी लताड़ा, यह तक कहा कि आतंकवाद से देश को बचानेवाली एजेंसी से इससे बेहतर काम करने की उम्मीद की जाती है।

120 पेज के निर्णय में 207 पैरा हैं। पैरा 195 में राष्ट्रद्रोह के प्रावधानों की जरूरत को लेकर सवाल उठाया गया है। पैरा 204 में गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यदि आंख के बदले आंख लेने की नीति चलेगी तो पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।

यह सर्वविदित है कि पुलिस द्वारा राजनीतिक बदले की कार्रवाई करते हुए  राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।  यूएपीए में बंद कर देना तथा माओवादी होने का आरोप लगाना ना तो पहली बार हुआ है ना ही आखिरी बार। यह पुलिस के राजनीतिक दुरुपयोग का मामला है जो पुलिस की पक्षपातपूर्ण कार्यशैली से जुड़ा हुआ है।

हाल ही में आप सब ने यह समाचार पढ़ा होगा कि 11 साल के बाद कश्मीर के वसीर अहमद बाबा  को यूएपीए के आरोप से मुक्त किया गया है। उन्हें गुजरात पुलिस ने हिजबुल संगठन से जुड़ा आतंकवादी बतलाया था। इसी तरह बंगलुरु की कोर्ट ने भी कई आरोपियों को बरी किया है।

बहुत से लोग यह भी कह रहे हैं कि यदि अखिल गोगोई मुसलमान होते तो उनकी भी यही दुर्गति होती। लंबे समय उन्हें जेल काटनी पड़ती।

क्या एनआईए कोर्ट अखिल गोगोई के विधायक बन जाने से भी प्रभावित हुआ है? यह सवाल लोगों के दिमाग मे आना स्वाभाविक है।  मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि एनआईए की भूमिका कोर्ट में चालान पेश करने के बाद  खत्म हो गई थी। मैं यह भी नहीं मानता कि न्यायालय किसी के विधायक या सांसद होने से प्रभावित होता है। अपनी समझ और अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आम नागरिकों की तरह आम न्यायाधीशों की भी राय राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलों के बारे में अच्छी नहीं होती। कई न्यायाधीश तो समाज और देश में सभी बुराइयों की जड़ राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों को मानते हैं।

तकनीकी तौर पर राइजर दल में होने के बावजूद अखिल गोगोई की छवि आम राजनेताओं जैसी न होकर गरीबों, किसानों, मजदूरों के हितैषी तथा संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता की है। हो सकता है इसका लाभ उन्हें किसी स्तर पर मिला हो। अखिल गोगोई के संबंध में आए निर्णय से यह भी साफ हो गया है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता अभी बची हुई है, जिससे पूरा देश तमाम उम्मीदें लगाए हुए है। देश के उच्च न्यायालयों द्वारा फर्जी प्रकरणों में आरोपियों को सरकार के तमाम दबाव के बावजूद जमानत दी जा रही है या बरी किया जा रहा है। इससे उम्मीद बनती है कि भीमा कोरेगांव से जुड़े मामलों तथा दिल्ली दंगों में फंसाए गए नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलनकारियों को भी न्याय जरूर मिलेगा।

अखिल गोगोई पिछले एक दशक से अपने आंदोलनों के चलते मीडिया में छाए रहते थे। अब उन्हें फिर से असम की राजनीति को नई दिशा देने का मौका मिला है। उन्हें पहले शिवसागर फिर पूरे असम का दौरा कर अपना राजनीतिक  विचार आम नागरिकों तक पहुंचाना चाहिए।

मैं जब अखिल गोगोई से चुनाव के दौरान अस्पताल में मिला था तब उन्होंने मुझसे कहा था कि हम  असम के अगले चुनाव में सरकार बनाने के लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका टकराव सरकार से हिंसक रूप न ले। सरकार उन्हें फिर फर्जी मुकदमों में फँसाने की फिराक में रहेगी। नागरिकता संशोधन कानून फिर टकराव का बड़ा मुद्दा बनेगा। उन्हें विधानसभा का उपयोग कर असम के नागरिकों के मुद्दों को हल कराने का प्रयास करना चाहिए।

देश के प्रमुख साढ़े तीन सौ संगठनों के जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय का एक संयोजक होने तथा ढाई सौ संगठनों के अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप का सदस्य होने के नाते उम्मीद की जानी चाहिए कि वे असम के स्तर पर ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय होंगे। उनकी जो सक्रियता अन्ना आंदोलन में दिखाई दी थी वही सक्रियता वर्तमान किसान आंदोलन में भी दिखेगी।

दिल्ली के बोर्डरों पर उनका इंतजार किया जा रहा है। आशा है वे जल्दी ही दिल्ली पहुंचकर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन का सक्रिय समर्थन करेंगे तथा असम के किसानों को बड़ी संख्या में तीन किसान विरोधी कानूनों  के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन में  उतारने में समय और ऊर्जा लगाएंगे।

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