27 मार्च। बाल विवाह के मामले में भारत ने दुनिया के अन्य देशों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। आँकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा बाल विवाह भारत में होते हैं। इतना ही नहीं, भारत में 22.6 करोड़ बाल वधुओं में से 3.6 करोड़ मामले तो अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। कड़े कानूनों और महिला सशक्तीकरण के दावों के बावजूद, लड़कियों को बाल विवाह के दलदल में धकेला जा रहा है। यूपी के श्रावस्ती जिले में सबसे ज्यादा बाल वधुएँ हैं।
सोनबरसा गाँव में तपती दोपहरी में कुछ युवा लड़कियाँ बर्तन धोते हुए हॅंस-खेल रही हैं। इन्हीं में से एक है 12 साल की चिमकी जिसकी पिछले साल उसकी उम्र से दोगुनी उम्र के पति के साथ शादी हुई थी। चिमकी की आँखों ने कभी हिंदी टीचर बनने का सपना देखा था। लेकिन, आज वह 12 साल की उम्र में एक बहू होने की जिम्मेदारियाँ निभा रही हैं। 12 साल की वो चिमकी है जिसे शादी का मतलब भी नहीं पता है। उसे बाल वधू बना दिया गया। इस गाँव में केवल अकेली चिमकी ही नहीं है, बल्कि, 20-24 साल के उम्र की 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएँ शामिल हैं जिनकी शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गयी थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के आँकड़े श्रावस्ती जिले की बदसूरत वास्तविकता से सामना करा रहे हैं। चिमकी उत्तर प्रदेश में उन 3.6 करोड़ बाल वधुओं में से एक है, जो न केवल घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं बल्कि उन्हें शिक्षा और सुरक्षा से भी वंचित रखा जाता है।
बाल विवाह भारत में एक राष्ट्रीय समस्या है, दुनिया में हर तीन में से एक बाल वधू का घर है। इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के आँकड़ों के अनुसार, देश में 22.6 करोड़ से ज्यादा बाल वधुएँ हैं। यहाँ चार में से हर एक युवा महिला की शादी बचपन में ही कर दी गयी थी। इनमें से 9 करोड़ 98 लाख महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 15 साल की उम्र से पहले हो गयी थी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आधी से अधिक बाल वधुएँ उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हैं।
बाल अधिकारों के लिए काम करनेवाली एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था सेव द चिल्ड्रन के उपनिदेशक, प्रभात कुमार ने बताया, लड़कियाँ हमेशा से ही बीच में स्कूल छोड़ देती हैं और जल्दी ही शादी के बंधन में बँध जाती हैं। कम उम्र में गर्भधारण से मातृ और बाल मृत्यु दर में गंभीर वृद्धि होती है। 17 साल की गुड़िया जैसी न जाने कितनी बाल वधूओं को क्रूर दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है। गुड़िया के साथ ससुराल में न केवल अपशब्द बोले जाते थे, बल्कि उसे शारीरिक रुप से भी प्रताड़ित किया जाता था।
भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में आधी आबादी को लुभाने के लिए शहर और गाँवों में घूमे थे। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन बाल विवाह की बात शायद ही किसी पार्टी के घोषणापत्र में शामिल की गयी हो। हाथरस और बुलंदशहर में हुए नृशंस बलात्कारों की घटनाओं को याद करते हुए युवा लड़कियों के माता-पिता स्वाभाविक रूप से अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। उन्होंने कहा, ऐसे परिवारों को अपनी बेटियों की जल्दी शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे अनाचार को बर्दाश्त करने वाली सरकार का क्या फायदा है?
ऑक्सफैम इंडिया की प्रमुख विशेषज्ञ अमिता पित्रे ने हाल ही में लिखे गए अपने कॉलम में तर्क दिया, शादी की एक बराबर उम्र का होना समानता नहीं है। उन्होंने लिखा, 18 साल से अधिक की शादियों को अपराध घोषित करने के बजाय हमें एक ऐसा सक्षम माहौल बनाने की जरूरत है जहाँ लड़कियाँ 18 साल की होने तक इंतजार कर सकें और फिर अपनी शादी का फैसला खुद कर सकें।
एनएफएचएस के आँकड़ों (2019-21) के अनुसार, उप्र में बाल विवाह के मामलों में श्रावस्ती के बाद दूसरा सबसे खराब जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का ललितपुर (42.5 फीसदी) है। नीति आयोग की मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स बेसलाइन नामक रिपोर्ट के अनुसार, श्रावस्ती की लगभग 75 प्रतिशत आबादी काफी गरीब है। इससे पता चलता है कि जिले में घोर गरीबी के कारण बाल विवाह का प्रचलन बढ़ गया है।
पिछले कुछ सालों से बाल विवाह के मामलों में गिरावट दर्ज की जा रही थी। जहाँ 1970 में बाल विवाह का प्रसार 74 फीसदी था वहीं 2015 में घटकर 27 फीसदी रह गया। लेकिन हाल ही में सेव द चिल्ड्रन-2022 की एक रिपोर्ट में बाल विवाह के मामलों में फिर से तेजी आने की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के चलते ये स्थितियाँ बदल सकती हैं। वहीं यूनिसेफ का अनुमान है कि महामारी की वजह से पूरी दुनिया में 1 करोड़ अतिरिक्त बाल विवाह के मामले आने की संभावना है। यूनिसेफ ने ‘कोविड-19 : ए थ्रेट टु प्रोग्रेस अगेंस्ट चाइल्ड मैरिज’ नामक अध्ययन में इसका खुलासा किया है।
बता दें कि गरीबी, नौकरियों का छूटना, पारिवारिक आय में कमी, शिक्षण संस्थानों का बंद होना- ये कुछ ऐसे कारण हैं जिन्होंने बाल विवाह के मामलों को संभवतः फिर से बढ़ा दिया है। गौरतलब है कि भारत में 15 से 19 साल की युवा लड़कियों की शादियों के लगभग 26 प्रतिशत मामले अकेले पश्चिम बंगाल से हैं। कूचबिहार जिले में तो आधे से ज्यादा लोगों के बाल विवाह हुए हैं। 1 मार्च से 15 अगस्त 2020 के बीच कोविड महामारी और लॉकडाउन में कूचबिहार जिले में बाल विवाह के 119 मामले सामने आए थे। इस सबके बीच बाल विवाह का दंश झेल रही चिमकी और गुड़िया गरीबी में कट रहे अपने मुश्किल और दर्द भरे जीवन से बाहर निकल पाने का सिर्फ सपना ही देख सकती हैं।
(MN News से साभार)