1 अप्रैल। झारखंड में कोयला खदानों को अपनी जमीन देकर यहां के लोग पहले तो मालिक से मजदूर बन गए। दूसरी बात यह कि जब यह लोग विस्थापित हुए तो उन्हें बुनियादी सुविधाओं का दंश झेलना पड़ रहा है। झारखंड के राजमहल ओपन कास्ट माइंस एरिया के लोग खदानों की वजह से न सिर्फ विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं, बल्कि वे जीवन की बुनियादी सुविधाओं जैसे कि पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से भी वंचित हैं। यहाँ से कहलगाँव और फरक्का सुपर थर्मल पावर स्टेशन को कोयले की आपूर्ति की जाती है।
यहाँ ईसीएल के कोयला खदान हैं। शुरुआत में ज्यादातर ग्रामीणों को जमीन के बदले थर्ड और फ्रोर्थ ग्रेड की नौकरी मिली। बाद में खदान के विस्तार के लिए जिन लोगों ने जमीन दी उनमें से कइयों को नौकरी ही नहीं मिली। परिणाम यह हुआ कि जमीन के मालिक मजदूर हो गये और उनके पास जीविका का दूसरा साधन नहीं रहा।
ईसीएल ने जिनसे जमीन ली उनके लिए बस्तियाँ तो बसायीं लेकिन वहाँ पर्याप्त सुविधाएँ नहीं हैं। यहाँ पेयजल का घोर संकट है और गर्मी के मौसम में यह संकट और बड़ा हो जाता है। चूँकि इलाके में ओपन कास्ट माइंस है, इसलिए प्रदूषण की समस्या भी गंभीर है। प्रदूषण की वजह से यहाँ के निवासियों को कई तरह की बीमारियाँ हो चुकी हैं, जिसमें साँस से संबंधित बीमारी प्रमुख है।
कुछ साल पहले यहाँ खदान विस्तार के लिए कंपनियों को जमीन नहीं मिलने के चलते कोयले का उत्पादन कम हुआ था। अभी उत्पादन में सुधार हुआ है, लेकिन शून्य उत्सर्जन की वचनबद्धता पालन करें तो अगले 20-30 सालों में कोयला खदान बंद होने लगेंगे। कोल इंडिया ने भी कहा है कि वह घाटे में चल रही खदानों को बंद कर देगा। उस हालात में यहाँ रहनेवाले लोगों का क्या होगा? ईसीएल के कर्मचारी जो पे-रोल पर हैं उनके साथ-साथ कोयला व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग इस इलाके में बेरोजगार हो जाएंगे। इनके पुनर्वास की समस्या और उसके निवारण पर भी सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है।
ग्लोबल जस्ट ट्रांजिशन नेटवर्क के शोधार्थी संदीप पई भी इस मसले को गंभीरतापूर्वक लेते हुए सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने के लिए झारखंड में अगले माह कई कार्यक्रम आयोजित करवाने वाले हैं। उनका कहना है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे कोयले से जुड़े लोगों के उचित पुनर्वास के लिए अभी से नीतियाँ बनाये और उन्हें अमलीजामा पहनाये।
गौरतलब है कि कुछ माह पहले केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात हुई थी। उस दौरान मंत्री ने हेमंत सोरेन से कहा था कि वे खदान क्षेत्रों की हर समस्या का निवारण करेंगे जिसमें विस्थापितों की समस्या प्रमुख थी, लेकिन अबतक इसपर गंभीरता से काम होता दिखाई नहीं दे रहा है और उसपर मुख्यमंत्री सोरेन ने कोल माइंस के लिए जमीन अधिग्रहण, रैयतों को मुआवजा, विस्थापितों के पुनर्वास और नौकरी एवं सरकार को मिलनेवाले राजस्व को लेकर अपनी बातें रखीं।
इसपर केंद्रीय कोयला मंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा कि कोल खनन को लेकर राज्य सरकार की जो भी माँग है, उस पर केंद्र सरकार विचार विमर्श कर आवश्यक कार्रवाई करेगी। लेकिन सरकार एक नयी पुनर्वास नीति लेकर आयी है, जिसका पूरे देश में विस्थापित लोग विरोध कर रहे हैं।
(MN News से साभार)
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.