मुसहरिन मॉं
धूप में सूप से
धूल फटकारती मुसहरिन मॉं को देखते
महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा
और सूंघा मूसकइल मिट्टी में गेहूं की गंध
जिसमें जिन्दगी का स्वाद है
चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है
(जिसे चुराने के चक्कर में अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर)
अपने और अपनों के लिए
आह! न उसका गेह रहा न गेहूं
अब उसकी भूख का क्या होगा?
उस मॉं का ऑंसू पूछ रहा है स्वात्मा से
यह मैंने क्या किया?
मैं कितना निष्ठुर हूं
दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूं
और खिला रही हूं अपनी चारों बच्चियों को
सर पर सूर्य खड़ा है
सामने कंकाल पड़ा है
उन चूहों का
जो विषयुक्त स्वाद चखे हैं
बिल के बाहर
अपने बच्चों से पहले
आज मेरी बारी है साहब!

2. मेरे मुल्क का मीडिया
बिच्छू के बिल में
नेवला और सर्प की सलाह पर
चूहों के केस की सुनवाई कर रहे हैं-
गोहटा!
गिरगिट और गोजर सभा के सम्मानित सदस्य हैं
काने कुत्ते अंगरक्षक हैं
बहरी बिल्लियां बिल के बाहर बंदूक लेकर खड़ी हैं
टिड्डे पिला रहे हैं चाय-पानी
गुप्तचर कौवे कुछ कह रहे हैं
सांड समर्थन में सिर हिला रहे हैं
नीलगाय नृत्य कर रही हैं
छिपकलियां सुन रही हैं संवाद-
सेनापति सर्प की
मंत्री नेवला की
राजा गोहटा की…
अंत में केंचुआ किसान को देता है श्रद्धांजलि
खेत में
और मुर्गा मौन हो जाता है
जिसे प्रजातंत्र कहता है मेरा प्यारा पुत्र
मेरे मुल्क का मीडिया।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
गोलेन्द्र कि अच्छी कवितायेँ, खासकर मुसहरिन माँ