5 अप्रैल। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा बने राकेश टिकैत ने एक बार फिर से आंदोलन की चेतावनी दी है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि देश में एक और आंदोलन की जरूरत है। इसके लिए सभी अपने ट्रैक्टर- ट्रॉलियों को तैयार रखें। आंदोलन कब, कहाँ होगा, इसकी जानकारी आनेवाले समय में दे दी जाएगी। राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में भू प्रेमी परिवार संघटन की ओर से दशहरा मैदान में आयोजित किसान महापंचायत को सम्बोधित करते हुए टिकैत ने यह बात कही।
किसान महापंचायत को सम्बोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि पाँचना बाँध सहित राज्य के जो भी मुद्दे होंगे उन्हें लेकर सरकार से बात की जाएगी। सरकारों की ओर से किसानों के खिलाफ जो भी निर्णय लिए जाएँगे, उसके खिलाफ आंदोलन करेंगे। किसान विरोधी काम किए जाने पर सरकार किसी की भी हो आंदोलन करने से नहीं हिचकेंगे।
टिकैत ने कहा कि भारत सरकार देश के किसानों को साल में छह हजार रुपए देती है। उसका चार महीने प्रचार किया जाता है। किसानों को भिखारी बनाकर रुपए दिए जा रहे हैं। किसानों के जो मुद्दे हैं उनमें एमएसपी एक बड़ा सवाल है। केन्द्र सरकार की ओर से दो सदस्यों के नाम माँगे जा रहे हैं। लेकिन सरकार यह नहीं बता रही है कि कमेटियों के अधिकार क्या होंगे? कार्यकाल कितना होगा? इसके सदस्य कितने रहेंगे?किस-किस किसान संगठन के प्रतिनिधि होंगे? इसका अध्यक्ष कौन होगा? केन्द्र सरकार की ओर से इन सवालों का जवाब नहीं दिया जा रहा है। जब तक भारत सरकार स्पष्ट नहीं बताएगी तब तक हम नाम नहीं देंगे।
सरकार किसानों के दो सदस्य लेकर शेष सदस्य अपने समर्थन के लोगों को बनाकर बहुमत के आधार पर फैसला देगी कि एमएसपी पर कानून नहीं बनेगा। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने यूनिवर्सिटी ऐसी ही बनाई है, जिसमें कोई फेल नहीं होता है। टिकैत ने कहा, पूरे देश के लोगों के बीच हम एमएसपी कानून की मांग को लेकर जाएँगे। इस मांग को जन आंदोलन बनाएंगे। उन्होंने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में किसानों को दी जानेवाली बिजली की दरें अलग अलग हैं। जब देश एक है तो बिजली की दरें भी एक हों।
टिकैत ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि किसानों की समस्याओं के लिए अभी और आंदोलन किए जाएंगे। देश राजनीतिक पार्टियों से नहीं, क्रांति से बचेगा। उन्होंने कहा कि देश वोट की ताकत से नहीं बचेगा, क्योंकि देश में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है। संवैधानिक संस्थाओं पर अवैधानिक तरीके से कब्जे हो चुके हैं। सड़क का आंदोलन मजबूत होने से ही तीनों कृषि कानून वापस हुए हैं।
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