बुंदेलखंड में किसानों के खुदकुशी करने की घटनाएं बढ़ीं

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8 अप्रैल। उसने कीटनाशक दवा खा ली थी। छोटा भाई था मेरा। हम तीन भाई थे। वह दो-तीन साल से अलग रह रहा था। खाना-पीना सब कुछ अलग था। हमारे तीनों लोगों के हिस्से में सात-सात बीघे जमीन आई थी। पिताजी का किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) भी था। उसे हम लोगों ने बाँट लिया था। तीनों लोग हिस्सा बाँट लेते थे और जमा कर देते थे। उसने कुछ कर्जा ले लिया था। साहूकारों का भी कर्ज था। केसीसी भी थी। सात बीघा में मटर बोयी थी। खेत में पानी भरा हुआ था। मटर केवल दस कुंतल ही निकली तो वह सदमे में आ गया। परेशान रहने लगा। वह एक दिन मऊरानीपुर गया। वहाँ से वह दवा लेकर आया और खेत पर गया। वहीं पर उसने कीटनाशक खा लिया। आसपास के लोगों ने देखा तो घर आकर सूचना दी। वहाँ से अस्पताल ले गए लेकिन उसकी मौत हो गयी। उस पर सब मिलाकर लगभग चार लाख रुपये का कर्ज था। उसकी शादी हो गयी थी और एक लड़का व एक लड़की है।”

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मड़वा गाँव के रहनेवाले सत्यभान एक साँस में यह सब कह जाते हैं और रुआंसे हो जाते हैं। उनके छोटे भाई अम्बिका पटेल ने 22 मार्च 2022 को अपने खेत पर ही कीटनाशक पी लिया था और इलाज के दौरान मेडिकल कॉलेज में अगले दिन 23 मार्च को उसकी मौत हो गयी थी।

अम्बिका के पिता के नाम पर दो लाख रुपये का केसीसी और माँ के नाम अस्सी हजार रुपये का केसीसी था। खेत के बंटवारे के बाद इस कर्ज को भरने में भी अम्बिका को हिस्सेदारी निभानी थी। इसके अलावा उसने साहूकारों से लगभग तीन लाख रुपये कर्ज ले रखा था। सब मिलाकर उस पर लगभग चार लाख रुपये का कर्ज था। बेमौसम बारिश से मटर की फसल कमजोर हो गयी थी और सात बीघे में लगभग दस क्विंटल की उपज हुई थी। अम्बिका की शादी हो चुकी थी और दो छोटे बच्चे भी हैं, जिनको पालने की उस पर जिम्मेदारी थी।

झांसी और आसपास के इलाकों में किसानों की खुदकुशी की घटनाएँ बढ़ रही हैं। इस घटना से कुछ दिन पहले 13 मार्च को झांसी जिले के ही रहने वाले रौरा गाँव के 38 साल के अरविन्द अहीरवार ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। वह एक ओर कर्ज के बोझ में दबा था तो दूसरी ओर पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने में भी काफी दिक्कत महसूस कर रहा था। ग्रामीणों के मुताबिक अरविन्द की पत्नी का कुछ महीने पहले सांप के काटने से निधन हो गया था और अब उसके चार मासूम बच्चे अनाथ हो गए, जिनमें से एक बच्चा बेहद गंभीर बीमारी का सामना कर रहा है।

9 मार्च को झांसी जिले के टहरौली तहसील के राजापुर गाँव के 45 साल के संतोष बरार ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। संतोष पर बुजुर्ग माँ, पत्नी और छह बच्चों की जिम्मेदारी थी। उसके पास लगभग पाँच बीघा जमीन था, जिसमें से आधा उसने बँटाई पर दे रखा था। संतोष खेती, मजदूरी और चौकीदारी कर अपना परिवार चला रहा था। वह दो बच्चियों की शादी की भी तैयारी कर रहा था। इसी महीने 19 मार्च को पूँछ थानाक्षेत्र के चितगुवां के गौरीशंकर राजपूत ने ट्रेन से कटकर और 27 मार्च को गुरसराय थानाक्षेत्र के ग्राम अस्ता में 52 वर्षीय अवधेश कुमार ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।

किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शिवनारायण सिंह परिहार कहते हैं कि ‘मार्च महीने में झांसी जिले में इन किसानों के अलावा कई अन्य किसानों ने भी अपनी जान दी है। हमने खुदकुशी के सभी मामलों में प्रशासन से पीड़ित परिवार की मदद और जाँच की माँग की है। प्रशासन उन मामलों में तो किसानों के परिवारों की मदद कर देता है, जिसमें सड़क दुर्घटना, सांप काटने, बीमारी या किसी हादसे के कारण मौत हुई हो लेकिन खुदकुशी के मामलों में तमाम कोशिशों के बाद भी पीड़ित परिवारों की मदद नहीं हो पाती है।’

शिवनारायण आगे कहते हैं कि बुंदेलखंड में खेती में आनेवाली लागत अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है जबकि यहाँ उपज कम है। खेती की लागत में जिस औसत में बढ़ोतरी हुई है, उस औसत में उपज के दाम नहीं बढ़े हैं। खर्च की तुलना में आमदनी बेहद कम है। जो लोग कृषि पर निर्भर हैं, उनके ऊपर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवाई और रोजमर्रा की जरूरतें जब पूरी नहीं होती हैं तो घर-परिवार में कलह का माहौल पैदा होता है। यह माहौल भी किसानों की खुदकुशी का एक बड़ा कारण साबित होता है।’

बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से में सात जिले हैं – झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, बांदा, हमीरपुर और चित्रकूट। कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने पिछले वर्ष विधानसभा में बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्या का मसला उठाया था। तब उन्होंने यह दावा किया था कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश के हिस्से में सात जिलों में आर्थिक तंगी और फसल बर्बाद होने से दो वर्षों में 850 किसानों ने आत्महत्या की है।

(Down to earth से साभार)

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