— विमल कुमार —
यूं तो समाज में आज भी किसी से प्रेम करना बहुत ही जटिल प्रक्रिया है पर प्रेम कविता लिखना तो और भी दुष्कर कार्य है।यह सच है कि प्रेम पर कविता लिखना अब एक तरह का ‘क्लीशे’ बन गया है, पर हर रचनाकार अपने जीवन में एक प्रेम कविता लिखता जरूर है। सभ्यता के विकास में दुनिया की बहुत सारी चीजें तिरोहित हो गयीं पर प्रेम की दरकार अभी कम नहीं हुई है। वह पल प्रतिपल मौजूद है। समाज जितना जटिल, तनावपूर्ण और भौतिक होता गया, प्रेम की अनिवार्यता खत्म नहीं हुई। लेकिन एक स्त्री के लिए प्रेम करना या उसे अभिव्यक्त करना आसान काम नहीं है पर यह भी सच है कि उसके प्रेम का स्वरूप पुरुषों के प्रेम से अलग है। देह उसके लिए प्राथमिक नहीं है या केंद्र में नहीं है पर पुरुषों के लिए वह या तो अनिवार्य तत्त्व जरूर है या प्राथमिक रूप से केंद्र में है।इसके अपवाद ढूंढ़े जा सकते हैं और मिल भी सकते हैं लेकिन स्त्री के लिए प्रेम आत्मा का संगीत है। वह त्याग और सेवा पर अधिक टिका है। उसमें छल प्रपंच के लिए जगह कम है।हालांकि समाज में इसके भी अपवाद मिल जाएंगे पर अपवाद नियम नहीं होते।
जाहिर है स्त्रियों और पुरुषों की कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्तियाँ भी अलग अलग हैं उनके रंग अलग अलग हैं। हाल के वर्षों में बाबुषा कोहली, लवली गोस्वामी, ज्योति शोभा, पूनम अरोड़ा आदि की प्रेम कविताओं ने ध्यान खींचा है लेकिन इस सूची में अब एक और कवयित्री जुड़ गयी हैं और वह हैं पहाड़ की कवयित्री सपना भट्ट। पिछले कुछ सालों से फेसबुक पर उनकी कविताएं सबका ध्यान तेजी से खींच रही थीं। अब उनका पहला कविता संग्रह चुप्पियों में आलाप आ गया है जिसमें उनकी केवल प्रेम कविताएं ही हैं। यह संग्रह अब तक लिखी गयी स्त्रियों की समकालीन प्रेम कविताओं से नितांत अलग है। इसमें गहरा संताप, वेदना और दुख, करुणा सब मिला है। यह देह से इतर प्रेम की कविता है। यह मन के अधिक निकट है। यह एक सृजनात्मक तृप्ति की खोज की उद्विग्नता लिये हुए है। इसमें प्रेमोच्छ्वास नहीं है बल्कि परिपक्व अहसास लिये हुए है। इसे केवल रूमानी कहकर टाला नहीं जा सकता है। सपना की प्रेमकविताओं में एक मद्धम आंच है। उसमें शिकायतें और उलाहना भी नहीं है बल्कि एक तरह की शालीनता और गरिमा लिये हुए है।
128 पेज के इस संग्रह में कुल 67 कविताएं हैं और वरिष्ठ कवयित्री अनुवादक तेजी ग्रोवर की एक संक्षिप्त भूमिका है और कुछ नए कवियों की टिप्पणियां भी हैं जो सपना की कविताओं को डिकोड करने के सूत्र देती हैं। सपना की कविताओं का स्वर मद्धम और नियंत्रित है। वह कम शब्दों में अपने मौन में अपनी चुप्पियों में ही अपनी बात कहती हैं। वह अपनी पहली ही कविता में सुख का ‘स्वांग’ व्यक्त करती हैं।उनके लिए यह सुख वास्तविक नहीं बल्कि स्वांग भर है। यह विडंबना है। इसमें एक तरह का नाटकीय तत्त्व भी है। बिना इस नाटकीयता के स्वांग नहीं है। यह एक असफल प्रेम का दुख लिये हुए है पर सपना प्रेम को दुख सुख की बाइनरी में नहीं देखतीं न सफलता असफलता की बाइनरी में।
पहली कविता से लेकर आखिरी कविता तक प्रेम का एक आख्यान तो मौजूद है ही, शुरू से लेकर अंत तक प्रेम का एक वितान भी है।
सपना की इन प्रेम कविताओं में एक उदासी, एक पुकार और एक आर्तनाद छिपा हुआ है। ये कविताएँ आपको मथती हैं, आलोड़ित करती हैं। ये पेशेवर प्रेम कविता नहीं है। यह वेलेंटाइन डे या मदनोत्सव की प्रेम कविताई नहीं है बल्कि आत्मा के तलघर से निकली हुई चीख है।
‘लौटना’ कविता में वह लिखती हैं –
“किस विधि पुकारूँ पुकारूँ तुम्हें
कि पुकार अनुत्तरित न रहे!
लौटना मुमकिन न हो, तो भी
वादी में गूंजती अपने नाम की प्रतिध्वनि में लौटना
इस काया में नहीं हूं मैं
न ही इस बेढब कविता में
भाषा में नहीं संकेतों में ढूंढ़ना मुझे”
दरअसल सपना अपने दुखों और टूटे हुए स्वप्नों की स्याही से प्रेम कविता लिखती हैं। उन्होंने एक कविता में कहा है वह दुनिया की सबसे सुंदर कविता लिखना चाहती हैं। सपना के लिए यह सुंदरता मन की सुंदरता है। वह अपने प्रेमी की निरंतर खोज में ये प्रेम कविताई लिखती हैं। उनकी कल्पनाओं के अनुरूप नायक नहीं मिलने की एक तड़प कविताओं में नजर आती है।
उनके प्रेम में एक चुप्पी और मौन छिपा है। उनके प्रेम में एक अमूर्तन भी है। अव्यक्त और अनचीन्हा तो है ही। वह ठोस कम तरल अधिक है। वह विचार कम एक तरह की फुहार अधिक है।
सपना के इस संग्रह का टोन शुरू से लेकर अंत तक एक ही पिच में है। उसमें जलतरंगों की ध्वनियां हैं। वह तेज प्रकाश नहीं बल्कि एक मद्धिम सी जलती एक रोशनी है।
सपना की कविता एक बैरागी मन की कविता है, इसलिए ये कविताएं सपना के लिए चुनौती बनी हैं।
सपना की काव्ययात्रा अभी शुरू हुई है। लेकिन उनकी ये कविताएं ही उनको चुनौतियां देंगी एक दिन। क्योंकि इस काव्य भाषा और शिल्प की एक सीमा है। सपना ने अपनी भाषा से बहुत कुछ सृजित कर दिया है। अब उसकी संभावनाएं खत्म हो जाएंगी और पुनरावृत्ति का खतरा अधिक है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि वह दूसरे कविता संग्रह में कौन सी नयी जमीन तोडती हैं। क्या उनकी ये कविताएं अपनी ताजगी से स्मृतियों में महफूज रहेंगी या एक खुशबू देकर वाष्पित हो जाएंगी?
किताब : चुप्पियों में आलाप (कविता संग्रह);
कवयित्री : सपना भट्ट
बोधि प्रकाशन, दिल्ली; मूल्य : 150 रु.
बहुत सुंदर और सारगर्भित समीक्षा ।