स्वावलंबन और सहायता का पाठ

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11 अप्रैल। नाम- प्रमिला, काम नारीशक्ति को स्वावलंबी बनाने में सहायता करना। अपना स्वयं सहायता समूह खोलने और आय का जरिया बनाने के बाद मुसहर बिरादरी की प्रमिला चाहतीं तो खुद के स्वावलंबन तक ही सीमित रह सकती थीं, लेकिन उन्होंने आसपास की ग्रामीण महिलाओं के जीवन में भी आत्मनिर्भरता का प्रकाश फैलाने का निर्णय लिया।

प्रमिला संगमनगरी में बैंकिंग सखी हैं, और अब तक 3,500 महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से स्वावलंबी बना चुकी हैं। इन दिनों 12 गाँवों में आत्मनिर्भरता की अखंड ज्योति जला रही हैं। वह विधि स्नातक हैं और भविष्य में काला कोट पहनकर हाई कोर्ट में वकालत करने का लक्ष्य भी है।

पिता की सीख आयी काम

वर्ष 2018 में सब्जी बेचने वाले पिता की आँखों की रोशनी चली गई तो प्रमिला के कंधे पर गृहस्थी का बोझ आ गया। प्रयागराज के मोहराव हंडिया गाँव निवासी प्रमिला कहती हैं, कि घर में दो वक्त की रोटी का इंतजाम मुश्किल था। पिता ने एक बात सिखाई कि हाथ सबके सामने फैलाने के लिए नहीं, कुछ करने के लिए मिले हैं। अब पीछे पलट कर देखती हूँ, तो लगता है कि बीता कल खराब सपना था और वर्तमान उम्मीदों का आसमान।

आया जीवन में परिर्वतन

प्रमिला ने 23 सितंबर 2018 को अपने लिए बनवासी महिला आजीविका स्वयं सहायता समूह बनाया। फिर वह निकट के गाँवों में महिलाओं के में स्वावलंबन को जुटीं और 10 स्वयं सहायता समूहों को आगे बढ़ाया।

(‘नई दुनिया’ से साभार)

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