10 मई। जिस शिक्षा के चलते बच्चों में सोच-समझ और तार्किक क्षमता का विकास होता है, उसी शिक्षा के दरवाजे बच्चों के लिए बंद करने के प्रयास किए जा रहे हैं। निम्न वर्ग के ज्यादातर बच्चे जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, उन स्कूलों को बंद करने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। देश भर में वर्ष 2018-19 में 51 हजार सरकारी स्कूल हुए बंद हुए हैं। जबकि निजी स्कूलों की संख्या में करीब 3.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
स्कूल शिक्षा विभाग की इकाई यूनाइटेड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) प्लस की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी स्कूलों की संख्या 2018-19 में 1,083,678 से गिरकर 2019-20 में 1,032,570 हो गयी। यानी देश भर में 51,108 सरकारी स्कूल कम हुए हैं। सबसे अहम बात यह है कि ये आँकड़े कोरोना काल के पहले के हैं।
एजुकेशन एक्टिविस्ट्स के अनुसार यह जमीनी स्तर पर भी शिक्षा के निजीकरण की प्रवृत्ति को दर्शाता है। उन्होंने कहा, कि सरकार अपने स्कूलों की खराब गुणवत्ता को देखकर बहुत खुश थी, जिससे माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए प्रेरित हो रहे थे। कम एनरोलमेंट होने के कारण इन स्कूलों को पास के स्कूलों के साथ विलय करके बंद करने का बहाना बता दिया गया। 2016 में सरकारी सचिवों के एक समूह ने कम एनरोलमेंट वाले स्कूलों के पास के स्कूलों में विलय की सिफारिश की थी। नीति आयोग ने अगले वर्ष 2017 में इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
हालांकि कुछ राज्यों में इसी दौरान सरकारी स्कूलों की संख्या में मामूली बढ़ोत्तरी देखी गयी है। बंगाल में यह संख्या 82,876 से बढ़कर 83,379 हो गयी, जबकि बिहार में 72,590 से बढ़कर 75,555 हो गयी। यूडीआईएसई प्लस की रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों की संख्या में गिरावट के कारणों की व्याख्या नहीं की गयी है। वहीं देश भर में निजी स्कूलों की 325,760 से बढ़कर 337,499 हो गयी। यानी प्राइवेट स्कूलों की संख्या में करीब 3.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले हफ्ते जारी 2020-21 के लिए यूडीआईएसई प्लस की रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों की संख्या में फिर गिरावट देखी गयी है। सरकारी स्कूलों की संख्या 1,032,570 से गिरकर 1,032,049 हो गयी। यानी 521 सरकारी स्कूल फिर कम हुए हैं।