पाँचवीं पास राजगीर ने गरीब बच्चों के लिए खोला निःशुल्क विद्यालय

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9 मई। परशुराम, उम्र 68 साल, पेशे से राजगीर हैं। वे खुद सिर्फ पाँचवीं पास हैं, मगर आज 4200 बच्चे उनके शुक्रगुजार हैं, क्योंकि उनके जीवन में शिक्षा का उजाला परशुराम ही लाए हैं। झारखंड के बोकारो में सेक्टर 12-ए में परशुराम पिछले 30 वर्षों से बिरसा मुंडा निःशुल्क विद्यालय चला रहे हैं।

झोपड़ीनुमा इस विद्यालय में आसपास की बस्ती में रहनेवाले दिहाड़ी मजदूरों, रिक्शा या ठेला चलानेवालों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। सिर्फ परशुराम की जिद से खड़े हुए इस विद्यालय में अब सातवीं तक शिक्षा दी जाती है। परशुराम ने खुद अभाव और अशिक्षा को करीब से देखा है। वे कहते हैं, मेरे माँ-बाप दिहाड़ी मजदूर थे। तंगी की वजह से मैं पाँचवीं से आगे नहीं पढ़ पाया। माँ-बाप के साथ मजदूरी की और वहीं राजमिस्त्री का काम सीख लिया। मगर मुझे हमेशा यह बात चुभती थी, कि मजदूरी करनेवालों के बच्चे पढ़ाई क्यों नहीं कर सकते? पत्नी को यह बात बताई तो वह भी साथ देने को तैयार हो गयी।

परशुराम ने 1990 में अपनी 20 हजार की बचत से एक झोपड़ीनुमा स्कूल शुरू किया। पहले वे खुद ही बच्चों को अक्षर ज्ञान देते थे, मगर धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़कर 60 तक पहुँच गयी। तब एक शिक्षक की जरूरत महसूस हुई। परशुराम कहते हैं, कि तब कोई भी शिक्षक बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। उन्होंने खुद 10 हजार के मानदेय पर दो शिक्षकों को काम पर रखा। यह पैसे जुटाने के लिए साथी मजदूरों से मदद माँगी। कई मजदूर महीने में 100-100 रुपए देते। इससे 5-6 हजार रुपए जमा होते और बाकी की राशि जुटाने के लिए परशुराम रात में भी काम करने लगे। हालांकि धीरे-धीरे उनकी लगन देखकर कई संस्थाओं ने मदद का हाथ बढ़ाया। आज यहाँ चार शिक्षक ममता सिंह, विजय कुमार, बबीता कुमारी और अनुषा देवी हैं। ये सभी बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई मानदेय नहीं लेते।

30 अगस्त, 2019 को बोकारो हवाई अड्डा विस्तारीकरण के नाम पर उनके स्कूल को प्रशासन ने ढहा दिया था। इसके बावजूद परशुराम ने बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होने दी। तिरपाल लगाकर बच्चों की पढ़ाई जारी रखी। अब यहाँ बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ पोशाक, पुस्तक और भोजन की व्यवस्था भी कर रहे हैं। परशुराम ने कहा, कि एक हफ्ता पहले मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के निर्देश पर शिक्षा पदाधिकारी ने उनके स्कूल का सर्वे किया है। भरोसा है, कि बच्चों के हित में कुछ अच्छा होगा।

(‘भास्कर न्यूज’ से साभार)

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