30 मई। बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना को लोग अभी भुला भी नहीं पाए थे कि बिहार एक बार फिर शर्मसार हो गया। पटना के गायघाट रिमांड होम में रह रही बेसहारा लड़कियों के यौन उत्पीड़न का मामला तब सामने आया जबकि एक नहीं, बल्कि अनेक लड़कियों ने वहां की प्रभारी वंदना गुप्ता की देखरेख में हो रहे बेबस लड़कियों के यौन-शौषण का मामला महिला संगठनों की प्रतिनिधियों के सामने उजागर किया।
पीड़िताओं ने बताया कि कैसे वहां की लड़कियों को नशा खिलाकर उनके साथ बलात्कार किया जाता है। उन्होंने रिमांड होम की प्रभारी पर बलात्कारियों के साथ सांठगांठ करने और नाजायज वसूली करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि वंदना गुप्ता जबरन गलत काम कराने के लिए होम से बाहर भी लड़कियों को भेजती हैं।
पहले तो बिहार सरकार ने इस प्रकरण को तथ्यहीन बताया लेकिन फिर पटना हाईकोर्ट के दखल के बाद एसआईटी का गठन हुआ जिसने प्रभारी वंदना गुप्ता की गिरफ्तारी के लिए कहा। इसके बावजूद लगभग एक महीने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हुई है और वंदना गुप्ता जमानत के नाम पर तारीख पर तारीख लिये जा रही हैं।
इस प्रकरण ने बिहार सरकार की महिला सुरक्षा संबंधी दावों की कलई खोल दी है। यह मामला जहां जिला प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, वहीं यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि प्रदेश की समाज कल्याण विभाग की मॉनिटरिंग समितियां कैसे काम करती हैं। ऐसी समितियों की लापरवाही के चलते ही ऐसे शर्मनाक प्रकरण होते हैं। इसलिए न सिर्फ रिमांड होम की प्रभारी से, बल्कि बिहार सरकार उन सब समितियों में शामिल अधिकारियों से भी पूछताछ करे।
महिला स्वराज ने गायघाट रिमांड होम में लड़कियों के यौन उत्पीड़न की खबर को शर्मनाक बताते हुए मांग की है कि होम की प्रभारी वंदना गुप्ता की गिरफ्तारी पर बिहार सरकार टालमटोल छोड़ तुरंत कार्रवाई करे। ऐसे मामलों को हलके में लेना किसी भी सरकार को शोभा नहीं देता। क्योंकि इस प्रकरण में एक तरफ निरीह लड़कियां हैं और दूसरी तरफ प्रशासन, इसलिए पटना हाईकोर्ट के कार्यरत जज की अध्यक्षता में जांच कमिटी का गठन कर निष्पक्ष जांच हो जिसके उपरान्त कड़ी और त्वरित कार्रवाई की जाए।
इसके अतिरिक्त समाज कल्याण विभाग की कार्यप्रणाली की भी समीक्षा हो, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। बिहार की सरकार इस प्रकरण में ढुलमुल रवैया छोड़ कर तुरंत कार्रवाई करे ताकि प्रदेश में महिला सुरक्षा के दावे केवल दावे नहीं, बल्कि वास्तविक दिखें।
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