पश्चिम बंगाल व बिहार के बाद झारखंड बाल विवाह के मामले में तीसरे स्थान पर

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8 जून। बाल विवाह ऐसी कुप्रथा है, जिससे भारत 21वीं सदी में भी जूझ रहा है। देश में पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद झारखंड बाल विवाह के मामले में तीसरे स्थान पर है।

एनएफएचएस (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष) के अनुसार, झारखंड के गोड्डा में बाल विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इसके बाद गढ़वा, देवघर और गिरिडीह का स्थान है, जबकि सिमडेगा में सबसे कम दर है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के आँकड़ों के अनुसार, झारखंड देश के शीर्ष तीन राज्यों में से एक है, जहाँ बाल विवाह की प्रथा सबसे अधिक है, और औसत मामले पहले कभी भी 50% से नीचे नहीं गए हैं। कई रिपोर्ट्स में पाया गया है, कि झारखंड में बाल विवाह का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत 47% से बहुत अधिक है। इसमें 15-19 वर्ष की आयु की विवाहित लड़कियों का अनुपात 49% सबसे अधिक है। 63% लड़कियों की शादी कानूनी उम्र से पहले यानी 18 साल से पहले कर दी गई थी।

विशेषज्ञों के अनुसार झारखंड में बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण सोशल फैक्टर है। जैसे कि रांची के जो ग्रामीण क्षेत्र हैं, जब उनमें से कुछ लोगों से पूछा गया, कि बच्चियों का बाल विवाह क्यों करवाया जा रहा है? तो एक ग्रामीण ने बताया, कि उनकी 5 लड़कियां हैं। सबकी शादी करनी है और आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। आगे बताया, कि उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है तो ऐसे में मजबूरी है, कि शादी करनी पड़ रही है।

बाल विवाह के पीछे बड़ी वजह गरीबी और अशिक्षा भी है। इसके लिए लोगों को जागरूक करके ही बाल विवाह को रोका जा सकता है।

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