28 जून। हमारी ढिंकिया यात्रा के बारे में आज की मीडिया रिपोर्टें पूरी तरह से तथ्य नहीं बताती हैं। मैं, लिंगराज और सुदर्शन प्रधान, मेधा पाटकर के साथ ओड़िशा के पारादीप के पास ढिंकिया में जिंदल स्टील और अन्य परियोजनाओं का विरोध करनेवाले लोगों पर दमन की स्थिति का पता लगाने के लिए गए थे। हम 14 जनवरी से कुजांग जेल में हिरासत में लिये गए जन आंदोलन के नेता देबेंद्र स्वैन से मिले और फिर ढिंकिया में अपनी 85 वर्षीय माँ से मिलने के लिए आगे बढ़े। रास्ते में हमने देखा, कि पटना गाँव की सड़क लगभग पचास आदमियों द्वारा अवरुद्ध है। उन्होंने हमसे कहा, कि वे नहीं चाहते कि बाहरी लोग आकर गाँववालों को बाँट दें। उन्होंने कहा, कि उन्होंने इस परियोजना का स्वागत किया है, उन्हें अपनी पान की बेलों के लिए मुआवजा मिला है और उन्हें नौकरी देने का वादा किया गया था।
उनमें से लगभग पाँच या छह ने हमसे बातचीत की। हमने उन कारणों के बारे में पूछा जिनके लिए उन्होंने पोस्को के खिलाफ एक सफल प्रतिरोध किया था। चर्चा विनम्र और शांतिपूर्ण थी। हम लौटते समय रास्ते में प्रभावित गाँवों के कई लोगों से मिले। हमें पता चला कि, लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, और परेशान किया जा रहा है, पान की बेलों और घरों को तोड़ा जा रहा है। लगातार पुलिस के निशाने पर रहने से प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे लोग गाँव में नहीं रह पा रहे हैं। जब हम वापस लौट रहे थे तो हमें सूचना मिली, कि गाँव में एक महिला को गिरफ्तार कर लिया गया है।
हमने इस दावे के लिए कोई सबूत नहीं देखा, कि लोगों ने समग्र रूप से परियोजना का समर्थन किया है। क्षेत्र में पहुँच की कमी ने स्पष्ट जमीनी तस्वीर प्राप्त करना मुश्किल बना दिया है। ढिंकिया एक बार फिर वैश्विक विकास विमर्श के केंद्र में है। हमें मानवाधिकारों और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के मुद्दों की गंभीर जाँच करने की जरूरत है।
– मनोरंजन मोहंती (दिल्ली विश्वविद्यालय)
(Jantaweekly.org से साभार)
अनुवाद – अंकित कुमार निगम