जन संगठनों के राष्ट्रीय मंच एनएपीए (जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय) ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और नर्मदा नव निर्माण अभियान ट्रस्ट (एनएनएनए) के अन्य 11 न्यासियों के खिलाफ मनगढ़ंत एफआईआर वापस लेने की माँग की है। ट्रस्ट दो दशक से ज्यादा समय से महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में विस्थापन से प्रभावित आदिवासियों और ग्रामीणों के हक और हित में काम कर रहा है।
एनएपीएम ने कहा है कि मेधा पाटकर और ट्रस्ट के अन्य न्यासियों के खिलाफ एफआईआ एक बड़े कुचक्र का हिस्सा है जिसमें मानवाधिकार रक्षकों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, फेक न्यूज का भंडाफोड़ करनेवाले पत्रकारों, सत्ता के सामने सच कहने की हिम्मत दिखानेवाले लोगों, सरकार के जन-विरोधी चरित्र को उजागर करनेवाले लोगों और विद्यार्थियों के खिलाफ झूठे मामले, झूठे आरोप और मीडिया ट्रायल चलाया जा रहा है।
एनएपीए का पूरा बयान इस प्रकार है –
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (नेशनल एलायंस आफ पीपुल्स मूवमेंट – एनएपीएम) सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और नर्मदा नव निर्माण अभियान (एनएनएन) के अन्य 11 न्यासियों के खिलाफ मध्यप्रदेश के बड़वानी पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत दर्ज की गयी एफआईआर की कड़े शब्दों में निन्दा करता है।
दरअसल, यह काफी नृशंसतापूर्ण है कि दो दशक से ज्यादा समय से मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की नर्मदा घाटी में विस्थापन के शिकार आदिवासियों तथा ग्रामीण समुदायों के हित में, खासकर बच्चों के लिए, काम कर रहे एनएनएनए जैसे लोक-सेवी ट्रस्ट को निहित स्वार्थों की ओर से ऐसे विचित्र आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।
पता चला है कि ‘फंड का दुरुपयोग करने’, ‘धोखाधड़ी’, ‘वित्तीय अनियमितता’आदि की शिकायत प्रीतम राज बडोले नाम के जिस व्यक्ति ने दर्ज कराई है वह खरगोन (मप्र) में आरएसएस से संबद्ध विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता है।
यह उल्लेखनीय है कि इसी तरह के झूठे आरोप कुछ महीनों पहले, गाजियाबाद निवासी संजीव झा नाम के व्यक्ति ने भी लगाए थे। हालांकि मीडिया के एक हिस्से में ऐसी खबरें आयी हैं कि एक एफआईआर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के द्वारा दर्ज की गयी है, लेकिन अभी तक कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है।
6 अप्रैल, 2022 को एक स्पष्टीकरण जारी करके एनएनएनए पहले ही 17 साल पुराने वित्तीय लेन-देन को लेकर लगाए गए आरोपों का खंडन कर चुका है। एनएनएनए ने कहा है कि उसके सारे हिसाब-किताब दुरुस्त हैं और ट्रस्ट जाँच की किसी भी प्रक्रिया में सहयोग करने को तैयार है। हालांकि यह साफ है कि बीजेपी सरकार मेधा पाटकर और उनकी सहभागिता वाले संगठन की छवि खराब करने पर तुली हुई है।
9 जुलाई, 2022 को दर्ज की गयी एफआईआर में जिन व्यक्तियों के नाम हैं वे लंबे समय से नर्मदा घाटी में जनता के मुद्दों से जुड़े रहे हैं। इनमें सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित परिवार शामिल हैं जिन्होंने अन्यायपूर्ण विस्थापन के खिलाफ और न्यायिक फैसलों के अनुसार पुनर्वास की मांग को लेकर दशकों तक संघर्ष किया है। अन्य न्यासी वे लोग हैं जो नर्मदा घाटी में जन अधिकारों और न्याय के लिए होनेवाले जन आंदोलनों के समर्थक रहे हैं और जिन्होंने शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे मसलों पर रचनात्मक कार्यक्रम चलाने में मदद की है।
यह गौरतलब है कि नर्मदा घाटी के लोगों और उनके समर्थकों को, सरकार और निहित स्वार्थों की ओर से, परेशान करने और बदनाम करने के कुप्रयासों का एक लंबा सिलसिला रहा है। 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने, पूरी तरह दुर्भावना से प्रेरित, वीके सक्सेना (जो अभी दिल्ली के उपराज्यपाल हैं) द्वारा दायर की गयी याचिका खारिज कर दी थी, और उसे ‘निजी हित से प्रेरित’याचिका करार दिया था। यही नहीं, न्यायालय ने सक्सेना पर जुर्माना भी लगाया था और कहा था कि मेधा पाटकर का काम बाँध से विस्थापित हुए लोगों के हित में है।
शासन की ओर से खड़ी की जानेवाली बाधाओं के बावजूद नर्मदा बचाओ आंदोलन पिछले 37 वर्षों से, कानून और संविधान के दायरे में रहकर, शांतिपूर्ण संघर्ष और रचनात्मक कार्यक्रमों के जरिए किसानों, आदिवासियों, मछुआरों और अन्य समुदायों को उनके अधिकारों के लिए संगठित करता रहा है। इसने दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा समेत कई रचनात्मक पहल की है जहाँ सरकार बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाने में बुरी तरह नाकाम रही है।
पिछले तीन दशक से मेधा पाटकर ने हमेशा पूरे देश में जनता के संघर्षों का समर्थन किया है, उन संघर्षों को और पुख्ता किया है। यह घोर शर्म की बात है कि सरकार ऐसे प्रयासों को बल देने के बजाय, शोषित-उत्पीड़त वर्गों के हक में काम करनेवाले सदाशयी लोगों को आपराधिक धाराओं में फँसाने के कुचक्र में लगी है।
इसमें कोई शक नहीं कि मानवाधिकार रक्षकों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, फेक न्यूज का भंडाफोड़ करनेवाले पत्रकारों, सत्ता के सामने सच कहने की हिम्मत दिखानेवाले लोगों, कमजोर तबकों पर होनेवाले अन्याय पर सवाल उठानेवाले लोगों, सरकार के जन-विरोधी चरित्र को उजागर करनेवाले लोगों और विद्यार्थियों के खिलाफ झूठे आरोप, झूठे मामले दर्ज करना और मीडिया ट्रायल, उनके निरंतर अंधाधुंध उत्पीड़न का ही हिस्सा है।
एनपीएम लोक-हित में काम करनेवाले लोगों के खिलाफ बीजेपी सरकार की इन द्वेषपूर्ण कार्रवाइयों की निन्दा करता है।
# हम माँग करते हैं कि मेधा पाटकर और नर्मदा नव निर्माण अभियान के सभी न्यासियों के खिलाफ एफआईआर तुरंत वापस ली जाए।
# हम सरकार को आगाह भी करते हैं कि वह अपनी जाँच एजेंसियों और कानून लागू करनेवाली एजेंसियों के जरिए डराने-दबाव डालने की हरकतों से बाज आए।
# हम जोर देकर यह कहना चाहते हैं कि लोक-हित के काम में लगे जो कार्यकर्ता सरकारी उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं, उनकी आजादी और लोगों को संगठित करना उनका संवैधानिक अधिकार है।