25 जुलाई। भारत गौरव योजना के तहत देश की पहली प्राइवेट ट्रेन 14 जून को कोयंबटूर नार्थ, तमिलनाडु से साईं नगर शिर्डी, महाराष्ट्र तक चली थी। भारतीय रेल ने ट्रेन को दो साल की लीज पर प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर को दिया है। रेलवे का निजीकरण न करने के तमाम दावों व बयानों के बावजूद मोदी सरकार लगातार रेलवे के निजीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। रेलवे की तमाम सेवाएं निजी हाथों में देने, ठेकाकर्मियों को नियुक्त करने का काम गति पकड़ चुका है। वहीं इन सभी निर्णयों के बाद यात्रियों का सामान उठाकर गुजर-बसर करनेवाले कुलियों का जीवनयापन संकट में आ गया है।
नई दिल्ली रेलवे कुली यूनियन के प्रधान के.पी. मीणा के अनुसार, “रेलवे का निजीकरण हम लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी का विषय है। उनका कहना है, कि यदि रेलवे का सम्पूर्ण निजीकरण होगा तो सबसे पहले सरकार को सभी कुली साथियों की नौकरी सुनिश्चित करनी चाहिए। फिलहाल अभी तक हम लोगों को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है, लेकिन रेलवे के अधिकारियों ने यूनियन को आगाह कर दिया है, कि आनेवाले समय में कुलियों के लिए नौकरी का खतरा हो सकता है।”
महँगाई के इस दौर में कुली एक ओर कोरोना महामारी के कारण आर्थिक रूप से दयनीय स्थिति में हैं, वहीं रेलवे के निजीकरण के कारण कुलियों के परिवारों की माली हालत बहुत कमजोर होती जा रही है। यात्रियों का सामान उठाने के लिए रेलवे प्राइवेट कंपनियों के साथ अनुबंध कर कुलियों के रोजगार को खत्म कर रही है।
इस मुद्दे को ध्यान में रखकर आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने एक पत्र राज्यसभा के उपसभापति को सौंपा है। संजय सिंह ने पत्र में मुख्य रूप से कहा है, कि पूर्व सरकार ने दुनिया का बोझ उठानेवाले कुलियों के लिए नौकरी का प्रावधान किया था किन्तु अभी तक इनकी सारी भर्तियाँ रुकी हुई हैं। जिसके कारण इनका भविष्य अंधकार में है। कुली साथियों के जीवन में सुधार लाने की जरूरत है। आगे उन्होंने इस पत्र के मध्य से एक व्यापक चर्चा की भी माँग की है।
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)
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