3 अगस्त। पीएमएलए संशोधनों को बरकरार रखने के फैसले पर विपक्ष उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगा। यह जानकारी माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने दी है। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के फैसले का उच्चतम न्यायालय परीक्षण करेगा। कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस पर 10 दिन के बाद सुनवाई होगी। सीबीआई निदेशक, ईडी निदेशक का कार्यकाल पांच साल तक बढ़ाने के अध्यादेश पर भी नोटिस जारी हुआ है। ईडी और सीबीआई निदेशकों का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ाने के अध्यादेश के खिलाफ 8 याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन को बरकरार रखने वाले उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के खिलाफ विपक्ष ने सामूहिक रूप से एक समीक्षा याचिका के साथ उच्चतम न्यायालय जाने का फैसला किया है। विपक्ष की मांग होगी कि 2019 में किए गए कानून में संशोधनों को धन विधेयक के जरिए निरस्त किया जाए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (माकपा) की दो दिवसीय केंद्रीय समिति की बैठक के बाद पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि विपक्षी दल संयुक्त रूप से उच्चतम न्यायालय के साथ इस मुद्दे को उठाएंगे। उन्होंने कहा कि फैसले की समीक्षा की जानी चाहिए और 2019 में किए गए सभी संशोधनों को रद्द कर दिया जाना चाहिए। यह विपक्ष द्वारा एक सामूहिक निर्णय है ।
येचुरी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले ने एक जज की अध्यक्षता में, जो इसके तुरंत बाद सेवानिवृत्त हो गया, ने पीएमएलए में 2019 के सभी संशोधनों को बरकरार रखा, ईडी को घातक रूप से आगे बढ़ाया। यह लोकतंत्र पर गंभीर हमला है। माकपा नेता ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को अस्थिर करने और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने में मोदी सरकार की राजनीतिक शाखा के रूप में तेजी से काम कर रहे हैं।
येचुरी ने कहा कि मोदी सरकार महंगाई, बेरोजगारी आदि जैसे ज्वलंत मुद्दों पर किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर चर्चा करने से इनकार करने के साथ संसद पर अभूतपूर्व हमले कर रही है। उन्होंने कहा कि सत्ताईस संसद सदस्यों को इस सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। यह स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व है।
उन्होंने सामजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार करने के तरीके की भी निंदा की। येचुरी ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सुगम हुआ, जिसकी अध्यक्षता एक बेंच ने की, फिर से उसी जज ने। उन्होंने तीस्ता सीतलवाड़, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी आर.बी. श्रीकुमार की तत्काल रिहाई और भीमा कोरेगांव बंदियों और राजनीतिक मुद्दों पर हिरासत में लिए गए अन्य लोगों की रिहाई की मांग की।
येचुरी ने कहा कि केंद्र को देश की आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए अति-धनवानों पर कर लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों ने महामारी के दौरान लगभग 7 लाख करोड़ रुपये का भारी मुनाफा कमाया, जो एक दशक में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा, दूसरी ओर, अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि, थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक दोनों रिकॉर्ड उच्च स्तर पर, लोगों की आजीविका को नष्ट कर रही है, उनकी क्रय क्षमता को कम कर रही है, और आगे कम कर रही है अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर। येचुरी ने कहा कि घरेलू मांग में कमी से विनिर्माण गतिविधियों में कमी आ रही है जिससे अर्थव्यवस्था में और मंदी आ रही है और नौकरी छूट रही है।
ईडी निदेशक संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के विरुद्ध याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता कांग्रेसी नेता रणदीप सुरजेवाला की ओर से सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने कहा था कि संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने का संशोधन स्थापित नियमों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले हैं, जो कहते हैं कि कार्यकाल की निश्चितता ऐसे अधिकारियों के लिए स्वतंत्रता की पहचान है। कानून में संशोधन के तुरंत बाद ईडी निदेशक को कार्यकाल का विस्तार दिया गया, जबकि उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला था। सिंतबर 2021 में ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संजय मिश्रा को आगे एक्सटेंशन नहीं मिलेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद नवंबर में उनका कार्यकाल एक साल के लिए और बढ़ा दिया गया।
एक अन्य याचिकाकर्ता वकील मनोहर लाल शर्मा ने कहा कि बिना लोकसभा और राज्यसभा में बहस के ये संशोधन अध्यादेश पास कर दिया गया। ये पूरी तरह अंसवैधानिक है।
कुल 8 याचिकाएं दायर हुईं हैं । याचिकाओं में अध्यादेश को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। इनमें कांग्रेसी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला, टीएमसी सासंद महुआ मोइत्रा, टीएमसी नेता साकेत गोखले, मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की महासचिव जया ठाकुर और वकील मनोहर लाल शर्मा शामिल हैं।
इससे पहले टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी याचिका दाखिल की थी जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशकों के कार्यकाल को 5 साल तक बढ़ाने की अनुमति देने वाले अध्यादेशों को, यह दावा करते हुए कि ये सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ हैं, चुनौती दी गई है। टीएमसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है और दावा किया है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम की धारा 25 के तहत विस्तार अमान्य है। ये कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का घोर उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि मिश्रा ने साल 2018, 2019 और 2020 के लिए अपने वार्षिक अचल संपत्ति रिटर्न (आईपीआर) को समय पर अपलोड नहीं किया था, जो अधिकारियों की ‘सतर्कता मंजूरी’ के कारकों में से एक है।याचिका में अदालत से “न्याय के हित में” भारत के संविधान के लिए असंवैधानिक, मनमाना और विपरीत और सरकार द्वारा संविधान से धोखाधड़ी बताते हुए विस्तार देने वाले नोटिफिकेशन पर तुरंत रोक लगाने का आग्रह किया गया है। याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश जाहिर तौर पर ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा के मामले में 8 सितंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करने के लिए लाया गया है।
मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की महासचिव डॉ जया ठाकुर ने याचिका में आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ईडी का दुरुपयोग कर रही है। राजनीतिक बदले की भावना से कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। दुनियाभर में कहीं भी दस साल तक कोई एजेंसी जांच नहीं करती। ये विपक्षी पार्टियों की छवि को खराब करने की कोशिश है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है कि अगर ऐसी नियुक्तियां पारदर्शी नहीं हुईं तो एजेंसियों को उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में पहली याचिका वकील एम एल शर्मा ने दाखिल की थी। याचिका में कहा गया कि केंद्र का अध्यादेश असंवैधानिक, मनमाना और संविधान के साथ धोखाधड़ी है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर 2021 को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल को बढ़ाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था, लेकिन कहा कि उन्हें और विस्तार नहीं दिया जा सकता। यहां तक अदालत ने कहा था कहा था कि दुर्लभ और असाधारण मामलों में विस्तार दिया जा सकता है। चल रही जांच को पूरा करने की सुविधा के लिए विस्तार की उचित अवधि दी जा सकती है, लेकिन केवल कारणों को दर्ज करने के बाद।
– जेपी सिंह
(जनचौक से साभार)