4 अगस्त। मोदी सरकार पर आरोप लगते आ रहे हैं कि वह अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए यूएपीए कानून का दुरुपयोग कर रही है। यूएपीए कानून को कई पूर्व जजों और नौकरशाहों ने रद्द करने की माँग की है। उनका कहना है कि इसमें कई खामियां हैं, जो सत्तारूढ़ राजनेताओं और पुलिस को बड़े पैमाने पर इसका दुरुपयोग करने का मौका देती हैं। इस बीच यूएपीए के इस्तेमाल को लेकर जो आँकड़े सामने आए हैं, वे हैरान करनेवाले हैं। आँकड़े इस कानून के घोर दुरुपयोग की तरफ इशारा कर रहे हैं।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बुधवार को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया, कि 2018 से 2020 के बीच ‘यूएपीए’ के तहत कुल 4,690 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन तीन साल की अवधि में सिर्फ 149 को दोषी ठहराया गया था। राय ने सदन को बताया कि 2020 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत 1,321 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि सिर्फ 80 लोगों को दोषी ठहराया गया था।
उन्होंने बताया, कि 2019 में यूएपीए के तहत 1,948 लोगों को गिरफ्तार किया गया था और 34 लोगों को दोषी ठहराया गया था। 2018 में 1,421 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि 35 लोगों को दोषी ठहराया गया था। मंत्री ने कहा, कि 2018 और 2020 के बीच यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की सबसे अधिक संख्या 1,338 यूपी में थी। उसके बाद मणिपुर 943 और जम्मू-कश्मीर में 750 थी। उन्होंने बताया, कि गिरफ्तार किए गए सभी लोगों में से 2,488 लोग 18-30 और 1,850 लोग 30 से 45 वर्ष के आयुवर्ग के थे।
आँकड़े दिखाते हैं, कि 2016 से 3,047 लोग विचाराधीन कैदी हैं, 2017 से 4098, 2018 से 4862, 2019 से 5645 और 2020 से 6482 लोग यूएपीए के तहत विचारधीन कैदियों में शुमार हैं। 2019 में एनडीए सरकार द्वारा यूएपीए में किए गए संशोधनों ने न केवल संगठनों बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी के रूप में नामित करने की अनुमति दी है।
इससे पहले बीते दिनों मंत्री ने सदन ने बताया था, कि 2016 से 2020 के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में यूएपीए के तहत कुल 5,027 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 24,134 लोगों को आरोपी बनाया गया। इसमें से केवल 212 ही दोषी ठहराए गए, जबकि 386 आरोपियों को विभिन्न अदालतों ने रिहा कर दिया।
गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बुधवार को कहा, ‘जिहाद, आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद से जुड़े ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर 100 प्रतिशत रही है, जिन्हें केंद्र ने अपने हाथ में लिया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा हाथ में लिये गए मामलों में दोषसिद्धि की औसत दर 94.17 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, कि एनसीआरबी राज्यों से मिले आँकड़ों को संकलित करता है। केंद्र के साथ ही राज्य सरकारें भी यूएपीए के तहत मामले दर्ज करती हैं और कार्रवाई करती हैं। राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर कम होने पर कुछ सदस्यों द्वारा चिंता जताए जाने पर राय ने कहा, कि सभी मामलों में अदालत के फैसले नहीं आए हैं। उन्होंने कहा, कि ऐसे मामले विभिन्न चरणों में हैं और कुछ मामले जहाँ जाँच के चरण में हैं, वहीं कुछ मामलों में सुनवाई चल रही है।
बता दें, कि यूएपीए कानून पहली बार 1967 में लागू हुआ था, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 2008 व 2012 और इसके बाद मोदी सरकार द्वारा संशोधन कर इसे और सख्त बना दिया गया। यूएपीए के प्रावधान आरोप झेल रहे लोगों के लिए जमानत हासिल करना लगभग असंभव बना देते हैं। कानून कहता है, कि अगर अदालत को लगता है, कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है। परिणामस्वरूप यूएपीए के तहत आरोप झेल रहे ज्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन कैदियों के रूप में पड़े रहते हैं।
(MN News से साभार)