5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

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— डॉ सुनीलम —

प सब ने 5जी स्पेक्ट्रम की भारत सरकार द्वारा बोलियां लगाए जाने के बारे में सुना होगा अर्थात आजकल सरकारें पानी पर तो कब्जा कर ही चुकी हैं अब हवा की तरंगों की भी बिक्री कर रही हैं। आपने पहली बार इस तरह की बिक्री के बारे में 2011 में सुना होगा। तब तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा और कनिमोझी को जेल भेजा गया था लेकिन 2017 में सीबीआई कोर्ट ने सब को बरी कर दिया। तब आरोप लगा था कि 1.76 लाख करोड़ का घोटाला हुआ है। इस बार 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर कोई खास चर्चा फिलहाल नहीं है।

जब भी कोई बोली लगाई जाती है तब एक निश्चित राशि तय की जाती है। यह राशि साढ़े चार लाख करोड़ की थी लेकिन बिक्री मात्र डेढ़ लाख करोड़ में की गई।

दूरसंचार मंत्री ने कहा कि 71प्रतिशत 5जी स्पेक्ट्रम बेच दिया गया जिससे कि देश लाभान्वित हो सकेगा। एक तो इस बोली से यह स्पष्ट हो गया कि अंबानी ने अपना एकाधिकार दूरसंचार क्षेत्र में कायम रखा है। एयरटेल ने 45,084 करोड़, वोडाफोन ने 18,799 करोड़, जियो ने 88,078 करोड़ और अडानी ने 212 करोड़ की खरीद की है।

अडानी द्वारा इतनी कम पर खरीद को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने 5जी स्पेक्ट्रम का एक छोटा सा हिस्सा केवल अपनी कंपनी के प्रतिष्ठानों की साइबर सुरक्षा के लिए खरीदा है। यहां यह महत्त्वपूर्ण सवाल है कि जब 2जी स्पेक्ट्रम की बोलियां लगाई गई थीं तब उसमें तमाम कंपनियों ने हिस्सा लिया था, अब ऐसा क्या हुआ कि चार -पांच कंपनियां ही बोली लगाने के लिए सामने आईं? उनमें से एक ही कंपनी ने बोली लगाई, वह भी बेस प्राइस 4.3 लाख करोड़ के बहुत नीचे। क्या सरकार ने इस तरह की शर्तें लगा दी हैं कि उन शर्तों को अन्य कंपनियां पूरा नहीं कर सकतीं?

5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री की 2जी स्पेक्ट्रम की बिक्री से तुलना की जाए तो लगता है कि इसमें दाल में कुछ काला है। गोदी मीडिया की चुप्पी भी यही दर्शाती है। तमाम विशेषज्ञों ने कहा है कि 5जी स्पेक्ट्रम की ओवरप्राइसिंग की गई थी। यदि यह आरोप सही है तो भारत सरकार को इस बात का जवाब देना चाहिए कि उसने किस आधार पर कीमतें तय की थीं? 2जी स्पेक्ट्रम की कीमतों को किस आधार पर तय किया गया था और अब 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की कीमतें किस आधार पर तय की गई हैं?

यह तो एकदम साफ है कि सरकार ने अंबानी को दूरसंचार क्षेत्र में एकाधिकार देने का मन बनाया हुआ है। देश के 22 सर्किल अंबानी के पास हैं, इसलिए जियो का नेटवर्क सब जगह मिल जाता है। यह जानना दिलचस्प होगा कि 5जी स्पेक्ट्रम पर शोध कार्य बीएसएनएल द्वारा किया गया है, अंबानी या किसी अन्य कंपनी के द्वारा नहीं।

पूरी दुनिया में जब से खुली अर्थव्यवस्था का वर्चस्व कायम हुआ तब से यह कहा जाता रहा है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि बाजार में प्रतियोगिता हो तथा लोगों को तमाम विकल्पों को चुनने का अवसर मिले। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि दुनिया में जब भी, जहां भी किसी कंपनी ने एकाधिकार कायम किया है, वहां वह मनमर्जी से कीमतें तय करती है जिससे उपभोक्ताओं का शोषण खुली लूट में बदल जाता है। डी बीयर्स नामक कंपनी के पास पूरी दुनिया का 80 प्रतिशत हीरे का व्यापार था। जब उपभोक्ताओं की लूट चरम पर पहुंच गई, जब उसकी जांच की गई तब कंपनी को 2004 में यह अपराध स्वीकार करना पड़ा कि उसने कीमतों को तय करने में हेराफेरी की है। जब कानूनी नकेल कसी गई तब से डी बीयर्स का एकाधिकार खत्म हो गया। अब उसके पास बाजार का केवल 35 प्रतिशत हिस्सा है।

स्टैंडर्ड ऑल अमेरिका की सबसे बड़ी आईल कंपनी है। यही कंपनी सऊदी अरब में व्यापार किया करती थी लेकिन बाद में सऊदी अरब ने तेल के व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इस समय दुनिया की बड़ी तेल कंपनियों में सऊदी अरब की अरामको कंपनी स्थापित हो चुकी है।

भारत सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से एकाधिकार कायम करनेवाली कंपनियों को रोकने के कानून बनाने चाहिए।

दुनिया भर में कंपनी के एकाधिकार के खिलाफ बड़ी बहस भी चल रही है और आंदोलन भी। जब किसी कंपनी का किसी क्षेत्र पर पूरी तरह एकाधिकार कायम हो जाता है, तब उसे मोनोप्सोनी कहा जाता है और यदि बाजार में सीमित कंपनियां प्रतियोगिता में रह जाती हैं तब उसे ओलिगोपोली कहा जाता है।

जहां तक दुनिया में 5जी के उपयोग का सवाल है, ग्लोबल मोबाइल सप्लायर्स एसोसिएशन का दावा है कि इस वर्ष के अंत तक दुनिया के एक अरब उपभोक्ता इसका उपयोग करने लगेंगे। 2जी, 3जी और 4जी के उपयोग का फैलाव दुनिया में आज जितना हो चुका है, उस स्तर पर पहुंचने को 5जी को साढ़े तीन साल लगेंगे। कुल मिलाकर जिस तरह जियो पहले निशुल्क आया था और आज उपभोक्ताओं से सर्वाधिक कमाई वाली कंपनी बन चुकी है। उसी तरह हो सकता है कि 5जी में भी कुछ लुभावने ऑफर आपको मिलें पर बाद में आपको उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

जो भी हो 5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री की पड़ताल जरूरी है। मुझे लगता है कि आनेवाले समय में खोजी पत्रकार और दूरसंचार विशेषज्ञ इसका खुलासा जरूर करेंगे।


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