वाराणसी में मधु लिमये के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संगोष्ठी

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12 अगस्त। वाराणसी में राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के परिसर में मधु लिमये शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में ‘मधु लिमये व्यक्तित्व और कृतित्व’ विषयक संगोष्ठी संपन्न हुई। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्र सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष सुरेश खैरनार ने कहा कि देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए वैचारिक आधार पर संघर्ष करने की महती आवश्यकता है। समाजवादी नेता मधु लिमये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने देश में तानाशाही के खतरे से सावधान किया था। स्थिति तब से और गंभीर बन चुकी है। मधु लिमये ने तानाशाही और सांप्रदायिकता के विरुद्ध लोकतंत्र में विश्वास रखनेवाले सभी तत्वों और संगठनों से मिलकर वैचारिक आधार पर संघर्ष करने का आह्वान किया था। उन्होंने 1977 में जनता पार्टी में सोशलिस्ट पार्टी के विलय का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने 1977 में गैरकांग्रेसवाद की रणनीति का भी विरोध किया था, उन्होंने जेपी से आग्रह किया था कि राष्ट्र स्वयंसेवक संघ द्वारा नियंत्रित जनसंघ के साथ मिलकर एक नई पार्टी न बनाई जाए। इस बात से बेहद दुखी थे कि जनता पार्टी में ही तानाशाही और और अलोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का बोलबाला बढ़ रहा है।

मधु लिमये के शताब्दी वर्ष में आगामी नवंबर माह में वाराणसी में देश भर की लोकतांत्रिक ताकतों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। संगोष्ठी को मुख्य रूप से सर्वश्री सुनील सहस्रबुद्धे, रामचंद्र राही, विजय नारायण, डॉ महेश विक्रम, अरविंद सिंह, जागृत राही आदि ने संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन राधेश्याम सिंह ने किया। मुख्य रूप से आनंद सिंह, मुहम्मद, रामधारी भाई, अहमद अंसारी, डॉ जयशंकर जय, अखिलेश पांडे आदि लोग उपस्थित रहे।


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