तूफानी चेतावनी

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— कपिल अग्रवाल —

लवायु परिवर्तन, अरब सागर और दुनिया भर में चक्रवातों की लगातार बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता का कारण बना हुआ है। चक्रवात तूफान तौक्ते ने भारत के पश्चिम तटीय राज्यों को गंभीर रूप से प्रभावित  किया है।

हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय (ट्रापिकल) चक्रवात पूर्वानुमान जारी करने के लिए जिम्मेदार आधिकारिक एजेंसी यानी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, चक्रवात तौक्ते वर्ष 2021 के पहले प्रमुख उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में अरब सागर में उत्पन्न हुआ।  तौक्ते ने 17 मई को दोपहर करीब 1.30 बजे गुजरात तट पर लैंडफॉल बनाया, उसके अधिक तीव्र होने की आशंका थी लेकिन सौभाग्य से वह उसी दिन लगभग 11.30 बजे कमजोर हो गया। हालांकि चक्रवात इसके बाद भी इतना मजबूत बना रहा कि इसने गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र जैसे पश्चिम तटीय राज्यों के साथ-साथ तमिलनाडु जैसे अन्य तटीय राज्यों और दमन एवं दीव जैसे द्वीपीय केंद्र शासित प्रदेशों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है।  चक्रवात तौक्ते ने इन प्रभावित राज्यों में रहनेवाले लोगों के जान-माल का भारी नुकसान किया है।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक के समाचार अपडेट के अनुसार – इन प्रभावित राज्यों में कुल लगभग सौ लोग मारे गए हैं, अन्य सौ लापता हैं, कई सौ घर गिर गए हैं और हजारों पेड़ उखड़ गए हैं। इस सब से बुरी तरह प्रभावित राज्य गुजरात में ही कम से कम 45 लोग मारे गए हैं।

हमारा देश पहले से ही कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण डर और निराशा के दौर से गुजर रहा है और ऐसे समय में अन्य आपदा इसे बिल्कुल असहनीय बना देती है।  प्रभावित राज्यों की सरकारें, केंद्र सरकार और अन्य गैर-सरकारी संगठनों को चाहिए कि वे राहत कार्य के दौरान समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित वर्गों पर विशेष ध्यान दें क्योंकि वे आमतौर पर ऐसी आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

चक्रवात का चक्र

इसके अलावा, इस आपदा के मद्देनजर केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर में, विशेष रूप से अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की प्रवृत्ति पर गौर करना चाहिए।

पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले डेढ़ सौ-दो सौ वर्षों से अधिक के उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि हिंद महासागर में औसतन पांच चक्रवात विकसित होते हैं, जिनमें से चार चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं और एक अरब सागर में। इसका कारण यह है कि बंगाल की खाड़ी अरब सागर से 1-2 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होती है और समुद्र का पानी गर्म होने के साथ-साथ चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ जाती है।  हालांकि पिछले कुछ वर्षों में, अरब सागर सभी उष्णकटिबंधीय घाटियों में सबसे तेजी से गर्म हो रहा है, उसका तापमान सतत रूप से बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।  2019 में हिंद महासागर में से उठनेवाले आठ में से पांच चक्रवात अरब सागर में उत्पन्न हुए, जबकि उनमें से केवल तीन बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न हुए।

अरब सागर में नई प्रवृत्ति

इसके अलावा अरब सागर क्षेत्र में चक्रवात आमतौर पर मानसून के बाद देखे जाते हैं पर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार अरब सागर में एक नई प्रवृत्ति देखी गई है। पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि भारत में मानसून का मौसम शुरू होने से पहले अरब सागर में गंभीर श्रेणी के चक्रवात उत्पन्न हो रहे हैं।  लगातार चार वर्षों से अरब सागर में प्री-मानसून उच्च तीव्रता वाले चक्रवात बन रहे हैं, 2018 में बने चक्रवात मेकानू ने ओमान को प्रभावित किया, जबकि चक्रवात वायु ने 2019 में गुजरात के तटीय क्षेत्रों पर हमला किया और चक्रवात निसाग्र ने पिछले साल मतलब 2020 में महाराष्ट्र में दस्तक दी, और इस साल चक्रवात तौक्ते ने गुजरात को प्रभावित किया है।

जलवायु वैज्ञानिकों और मौसम विज्ञानियों द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययन इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताते हैं। इन अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि अरब सागर के गर्म होने की वर्तमान प्रवृत्ति इन अत्यंत गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता को इतनी तेजी से बढ़ा सकती है कि यह पूर्वानुमानकर्ताओं के लिए भी प्रारंभिक निकासी चेतावनी देना काफी कठिन बना देगी, और इससे आनेवाले वर्षों में आज से कई गुना अधिक विनाश हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग को गंभीरता से लें

पूरे अरब सागर और हिंद महासागर में यह नई परेशान करनेवाली प्रवृत्ति, सत्ता में बैठे सभी लोगों के लिए एक और खतरे की घंटी है जो युवा भारतीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं को राष्ट्र-विरोधी और भारत को बदनाम करके उसकी आर्थिक उन्नति को रोकने की अंतरराष्ट्रीय साजिश में हिस्सेदार बताते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते हैं। सिर्फ एक साल के भीतर, भारत ने तीन बहुत गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों- निसाग्रा, अम्फान और अब तौक्ते-  का सामना किया है।  इस तरह की दिखाई देनेवाली आपदाओं के कारण होनेवाली मृत्यु, विनाश और भारी आर्थिक नुकसान हमें इस तथ्य की याद दिलाते हैं कि हमारे पर्यावरण की रक्षा के बिना देश का असल आर्थिक विकास भी असंभव है।

सरकारों और सार्वजनिक प्राधिकरणों को चाहिए कि वे अब जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को गंभीरता से लें। साथ ही यह भी जरूरी है कि हम पर्यावरण-रक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं के खिलाफ गढ़ी जानेवाली झूठी कहानियों, मुकदमों या उनके खिलाफ किसी अन्य अवैध कार्रवाई से न डरें और निडर होकर पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में खड़े हों।

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