— सुरेश पंत —
भाषा के बहाने राजनीतिक खेल नहीं खेले जाने चाहिए किंतु सच यह है कि भाषा को जब-तब राजनीति का शस्त्र बना दिया जाता है और वह दुधारी तलवार की भाँति अंधी मारकाट मचाती है। अभी हाल ही में किसी राजनीति कर्मी द्वारा जाने-अनजाने देश की महिला राष्ट्रपति के लिए राष्ट्रपत्नी कहकर जैसे चाय की प्याली में तूफ़ान खड़ा कर दिया गया है। इसे लेकर राजनीतिक शोध-प्रतिशोध का हिसाब बराबर करने की जैसे होड़ मच गई। भाषा चूक की दृष्टि से यह बात इतनी बड़ी नहीं थी कि इस पर बवाल मचता। केवल जानकारी का अभाव था कि कुछ शब्द व्यवहार में लिंग निरपेक्ष होते हैं। दूसरी ओर कुछ बुद्धिजीवियों ने मसला उठाया कि इसके पीछे पुरुष प्रधानता की सोच है। ऐसे शब्द किसी भाषा में क्यों हों जिनमें स्त्री को कमतर दिखाया गया हो।
अप्रासंगिक नहीं होगा यदि यहाँ पर पति, पत्नी शब्दों की व्युपत्ति और उनके व्याकरणिक प्रयोग पर एक सरसरी दृष्टि डाली जाए। किसी भी समाज में किसी व्यक्ति की विधिपूर्वक विवाहिता स्त्री उसकी पत्नी कहलाती है। पत्नी अर्थात वह स्त्री जिसके साथ किसी पुरुष का लोक स्वीकृत रीति से विवाह हुआ हो। पत्नी शब्द का यही लोक स्वीकृत अर्थ भी है। भाषा वैज्ञानिक पत्नी शब्द का मूल खोजते हुए पुरा-भारोपीय *pótnih (*पोत्नी) से इसका संबंध जोड़ते हैं जो *pótis (*पोतिस) का स्त्रीलिंग है। इसी से बना हुआ प्राचीन ग्रीक शब्द पोतीना है। अवेस्ता में भी यह शब्द पाया जाता है। विशेष बात यह है कि इन सभी भाषाओं में ये शब्द पति के स्त्रीलिंग हैं।
हिंदी में पत्नी शब्द संस्कृत से आया है। इसकी व्युत्पत्ति करते हुए पहले पति की व्युत्पत्ति उद्धृत की जाती है क्योंकि पत्नी की व्युत्पत्ति पति पर ही तो टिकी है! संस्कृत में √पा धातु का अर्थ है रक्षा करना। जो रक्षा करे वह पति, और पति के साथ न् और ई प्रत्यय लगाकर पति का स्त्रीलिंग पत्नी अर्थात पति की विवाहिता।
पति का स्त्रीलिंग पत्नी है तो, लेकिन सर्वत्र पति का अर्थ चूँकि हस्बैंड या शौहर नहीं होता, इसलिए सर्वत्र पति वाले शब्दों को पत्नी बनाकर स्त्रीलिंग में नहीं बदला जा सकता। नगपति, भूपति, गणपति, प्रजापति, छत्रपति, अधिपति, गृहपति, सेनापति, कुलपति, राष्ट्रपति जैसे अनेक पति इस सूची में हैं जो बस पति ही हैं। ये ऐसे पति हैं जिनके भाग्य में पत्नी नहीं है! यदि किसी महिला के पास करोड़ों रुपए हैं तो उसे करोड़पति ही कहा जाएगा, करोड़पत्नी नहीं। इसी प्रकार राष्ट्रपति के पद पर पदस्थ महिला को राष्ट्रपति ही कहा जाएगा, राष्ट्रपत्नी नहीं।
ऐसी स्थिति पाणिनि के सामने भी आई होगी। उन्होंने एक विभाषा सूत्र से यह व्यवस्था दी कि पति-पत्नी भाव से इतर स्वामित्व या प्रशासन अध्यक्ष के अर्थ में पति शब्द लिंग निरपेक्ष होगा। उदाहरण दिया है “पतिरियं ब्राह्मणी ग्रामस्य” (यह ब्राह्मणी गाँव की पति है।)! इस व्यवस्था के अनुसार पुरुष या महिला दोनों के लिए राष्ट्रपति शब्द समुचित है। कठिनाई यह है कि समय पड़ने पर इस व्यवस्था को सभी संस्कृतज्ञ भी नहीं समझ पाते तो हिंदी के बारे में यह कल्पना कैसे की जाए कि प्रत्येक हिंदी भाषी संस्कृत व्याकरण का भी विशेषज्ञ होगा। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश से होकर हिंदी आज संस्कृत से बहुत दूर चली आई है। यहाँ उस पर संस्कृत नियम लागू करना न्यायोचित नहीं होगा।
ऐसी ही स्थितियों को ध्यान में रखकर हिंदी-व्याकरण व्यवस्था करता है कि हिंदी में विशेषण और पदवाची संज्ञाएँ (जो वस्तुतः विशेषण ही हैं), उनके स्त्रीलिंग रूप का प्रयोग नहीं होगा। सर्वत्र पुल्लिंग। यह नियम पाणिनीय नियम का ही विस्तार है। विस्तार इसलिए कि इसमें न केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में पति को लिंग निरपेक्ष बताया गया है, वरन विशेषणों को भी (आकारांत विशेषणों को छोड़कर) इसमें सम्मिलित किया गया है, जबकि संस्कृत में विशेषण विशेष्य के लिंगानुसार होते हैं। अब यह पुल्लिंग का ही विधान क्यों है, यह अलग प्रश्न है। वैश्विक समस्या है, केवल हिंदी की नहीं।
किसी शब्द में अर्थ का आरोप मूलतः तो यादृच्छिक (arbitrary) होता है जो आगे चलकर रूढ़ हो जाता है और आप चाहकर भी उसे बदल नहीं सकते। किंतु लोक चाहे तो उसमें अर्थ विस्तार, अर्थापकर्ष आदि के द्वारा नए-नए अर्थ दे सकता है जो मूल अर्थ से मिलते-जुलते या उससे भिन्न हो सकते हैं। कभी-कभी तो इतने दूर कि मूल अर्थ बहुत पीछे रह जाता है। हस्बैंड हो या पति, दोनों में पत्नी की देखभाल या रक्षा का भाव स्पष्ट है और आज की दृष्टि से पुरुष प्रधानता की ओर स्पष्ट संकेत है। किंतु ऐसा केवल हिंदी शब्दों के साथ नहीं हुआ है, यह प्रवृत्ति सार्वत्रिक है।
कुछ उत्साही लोग सुझाव दे रहे हैं कि भाषा में जिन शब्दों में पुल्लिंग वर्चस्व है उनको बदला जाए, वे यह भूल जाते हैं कि शब्दों को बदलना इतना आसान काम नहीं है। यह कोई एकाध शब्द बदलने का मामला नहीं है। मान लीजिए आप शब्द बदल भी लें तो जब तक लोक स्वीकृत न हो, कोई शब्द चल नहीं पाता। सरकार के करोड़ों के खजाने से पारिभाषिक शब्दावली बनाई गईं किंतु उनमें अनेक शब्द ऐसे आ गए जो प्रयोग में कभी नहीं आ पाए और जिन्हें लेकर लोग हिंदी का उपहास करते हैं।
दूसरी बात आई कि राष्ट्रपति को राष्ट्राध्यक्ष कहा जाए। देखने में यह सुझाव अच्छा है पर व्यवहार में नहीं। राष्ट्रपति शब्द तो संविधान स्वीकृत है। क्या एक शब्द के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव अपने आप में ही हास्यास्पद नहीं होगा? हमारी अल्पज्ञता का दंड किसी शब्द को क्यों मिले! स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का अंतर तो यहाँ भी रहेगा- राष्ट्राध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्षा।
संक्षेप में यह कि राष्ट्रपति शब्द या ऐसे ही अन्य पति शब्द जहाँ पति संस्था अध्यक्ष या स्वामी के रूप में है, पदस्थ पुरुष या महिला दोनों के लिए प्रयुक्त हो सकते हैं। रही बात अपमानजनक प्रयोग की तो यह इस पर निर्भर करेगा कि कहने वाले का आशय या मुद्रा क्या थी। यों भी नेपाली, मैथिली, ओड़िया, बांग्ला, असमी आदि पूर्वी क्षेत्रों की अनेक भाषाओं में स्त्रीलिंग का प्रयोग पुल्लिंग के लिए भी किया जाता है। गैर-हिंदी भाषियों का यह दोष क्षम्य माना जाना चाहिए।
भाषा अपना मार्ग स्वयं बनाती है, हम उसकी राह के रोड़े न बनें तो अच्छा है।