13अगस्त। पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ आदिवासी राजधानी कोलकाता में दस्तक दे चुके हैं। बुधवार को आदिवासी देउचा पचामी कोयला खदानों के मसले पर विरोध प्रदर्शन करने आए थे। उन्होंने अपने परंपरागत संगीत वाद्यों के साथ विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। लेकिन आज इस आंदोलन में शामिल लोगों से बातचीत में एक बेहद रोचक जानकारी मिली है। इस जानकारी के अनुसार सरकार के खिलाफ चल रहे इस आंदोलन को बचाने के लिए औरतों ने नेतृत्व सँभालने का फैसला किया है। MBB ने आंदोलन में शामिल कई नेताओं और कार्यकर्ताओं से बातचीत की है। इस बातचीत में पता चला है, कि सरकार और प्राइवेट कंपनियों के प्रतिनिधि सीधे सीधे आदिवासियों को आंदोलन छोड़ने के लिए नहीं मना सके। इसलिए अब आंदोलन में शामिल लोगों को खरीदने और बहकाने की साजिश की जा रही है।
इस काम के लिए पैसा और शराब का इस्तेमाल किया जा रहा है। आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती आदिवासी औरतों में से एक फूलबनी पोरोन कहती हैं, “हमारे समाज के मर्दों को शराब और पैसा दे कर बहकाया जा रहा है। आदमी लोग जल्दी ही बहक भी जाते हैं। उन्हें शराब पिलाकर कहा रहा है, कि वो अपने परिवार को आंदोलन में हिस्सा ना लेने दें।” इसके अलावा यह भी खबर मिली है, कि सरकार अब संताल आदिवासियों के आध्यात्मिक और सामाजिक मुखिया माँझी हड़ाम को भी प्रभावित कर आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रही है। इस सिलसिले में फूलबनी कहती हैं, “अब हर दिन हमारे गाँव के माँझी हड़ाम गाँव के लोगों को आंदोलन में हिस्सा ना लेने की चेतानवी दे रहे हैं। क्योंकि सरकार उन पर तरह तरह से दबाव बना रही है।”
आंदोलन में शामिल एक और महिला टेरेसा हंसदा कहती हैं, “यह हमारे पुरखों की जमीन है, इसे हम किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि अगर हमारी जमीन चली गई तो हम बर्बाद हो जाएँगे। हम या हमारे बच्चे तो पढ़े लिखे नहीं हैं, कि हमें कोई काम मिल जाएगा, अगर विस्थापित हुए तो फिर तो भीख माँगने की नौबत आ जाएगी।” वो आगे कहती हैं, “हम जानते हैं कि वो हमारे समाज के पुरुषों को दारू पिलाकर हमारी एकता को भंग करना चाहते हैं। सरकार और कंपनी के लोग हमारे मर्दों को समझा रहे हैं, कि जमीन के बदले में हमें और हमारे बच्चों को नौकरी और पैसा मिलेगा। इसके अलावा हमारे मर्दों को और कई तरह के प्रलोभन दिये जा रहे हैं।”
टेरेसा हंसदा कहती हैं, “हमारे परिवारों के कई मर्दों ने आंदोलन में आना छोड़ दिया है, या फिर उनमें वैसा उत्साह नहीं है। लेकिन हम जानती हैं, कि जमीन की कीमत हमारे लिए क्या है? हम किसी भी सूरत में इस आंदोलन को टूटने नहीं देंगी।” केंद्र सरकार ने 2018 में पश्चिम बंगाल को भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक देउचा पचामी हरिनसिंह दीवानगंज कोयला ब्लॉक आवंटित किया था। यह दुनिया की सबसे बड़ी खानों में से एक है, और इसमें 2,102 मिलियन टन कोयले का अनुमानित भंडार है। 12 वर्ग किलोमीटर ये ज्यादा पर फैला यह कोयला ब्लॉक बीरभूम जिले में है, और इसे दिसंबर 2019 में पश्चिम बंगाल सरकार को आवंटित किया गया था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है, कि इस खदान से कम-से-कम एक लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन इलाके के संथाल आदिवासी और क्षेत्र के छोटे किसानों का कहना है, कि इससे उनकी आजीविका पर संकट आ जाएगा। आदिवासियों की इस सोच के पीछे की वजह साफ है। अनुमान है, कि इस परियोजना से करीब 70 हजार लोग विस्थापित होंगे। इसके अलावा लोगों को डर है, कि परियोजना के लागू होने से वह अपनी पारंपरिक भूमि खो देंगे। हालांकि खदान से फिलहाल कोयला खनन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन खदान के ऊपर जो पत्थर की खानें हैं, उनकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। इससे इलाके के छोटे किसानों की फसल को नुकसान पहुँच रहा है।
(‘मै भी भारत’ से साभार)