आजादी का अमृत महोत्सव : तमिलनाडु में दलित सरपंचों को न तो कुर्सी नसीब, न ही फहरा सकते तिरंगा

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14 अगस्त। सरकार के विभिन्न उपायों के बाद भी तमिलनाडु में ‘अस्पृश्यता’ दीमक की तरह समाज की जड़ों को चाट रही है। एक सर्वे से खुलासा हुआ है, कि प्रदेश में छुआछूत के कारण दलित समुदाय के 22 पंचायत प्रमुखों को ‘कुर्सी’ से महरूम रखा गया है। यानी उनको कुर्सी पर बैठने की अनुमति नहीं है। यहाँ तक, कि उन्हें तिरंगा फहराने की भी अनुमति नहीं है। यह सर्वे तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा (टीएनयूईएफ) ने कराया है।

अध्ययन के अनुसार प्रदेश में दलित सरपंचों के साथ कई तरह से भेदभाव होता है। इसमें उन्हें न तो राष्ट्रीय ध्वज फहराने दिया जाता है और न ही दस्तावेज देखने की अनुमति होती है। कुछ मामलों में दफ्तर के उपयोग से वंचित किया जाता है। रोजमर्रा की जिंदगी में प्रत्यक्ष जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। टीएनयूईएफ के अध्यक्ष सामूवेल राज ने कहा, कि “यह बड़ा ही निराशाजनक और दुखद है, कि समाज सुधारक पेरियार की धरती तमिलनाडु में आज भी अस्पृश्यता के बीज हैं। सरकार से अनुरोध है, कि वह दलित पंचायत प्रमुखों की वेदना के निवारण के ठोस उपाय करे।”

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