— अजय खरे —
मध्य प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण किए हुए है, वहीं प्रदेश की शिवराज सरकार कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु एक बार फिर बढ़ाने की तैयारी कर रही है। सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु में इजाफा करने से दूसरी पीढ़ी का भविष्य चौपट होगा और वह काम न मिलने के बाद अपनी योग्यता का प्रदर्शन करने से भी वंचित हो जाएगी। मध्यप्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले शिवराज सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी थी लेकिन बेरोजगारों की भारी नाराजगी के चलते इसका चुनावी लाभ नहीं मिल पाया था। इसके बाद निर्वाचित सरकार को षड्यंत्रपूर्वक गिराकर शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बन गए।
यह भी देखने में आया है कि बहुत से सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। उन्हें भी लगता है कि नई पीढ़ी को काम का अवसर मिले। सरकार को सिर्फ सरकारी नौकरियों में ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर बढ़ाना चाहिए, जिससे बेरोजगारी को पूरी तरह खत्म किया जा सके।
सन 1975 में देश में लगे आपातकाल के दौरान कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 58 वर्ष से घटाकर 55 वर्ष कर दी गई थी। तब समय से पहले बड़ी संख्या में कर्मचारी घर बैठ गए थे। इस बात को लेकर कर्मचारियों में भारी नाराजगी थी और 1977 के आम चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी था। सत्ता परिवर्तन के बाद शासकीय कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा एक बार फिर 55 वर्ष से बढ़ाकर 58 वर्ष कर दी गई। इसके बाद कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में शासकीय कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 58 से बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी गई ।
सन 2018 में विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा की शिवराज सरकार के द्वारा कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु फिर 2 वर्ष बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई। वोट की राजनीति के चलते कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु को मनमाने तरीके से बढ़ाते जाना अत्यंत आपत्तिजनक है।
देश में बड़ी संख्या में बेरोजगारी है। सरकार को सेवानिवृत्त कर्मचारियों के रिक्त पदों को समय पर भरते हुए लाखों बेरोजगारों को काम देना चाहिए। कर्मचारियों को सेवानिवृत्त होने पर पारिवारिक जीविकोपार्जन के लिए पेंशन के साथ-साथ ग्रेच्युटी, 10 माह का वेतन और जीपीएफ राशि उपलब्ध कराई जाती है, जबकि बेरोजगारों के पास जीने की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार ने उन्हें बेरोजगारी भत्ते से भी वंचित कर रखा है।
इधर कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु घटाने की जगह आयु बढ़ाने की चर्चा से बेरोजगारों में भारी असंतोष देखने को मिल रहा है। यह स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है। बेरोजगारों की परजीवी हालत किसी भी दृष्टि से सही नहीं कही जा सकती है। बड़े घराने मालामाल होते जा रहे हैं वहीं मामा राज में लाखों बेरोजगारों को कंगाली और लाचारी का जीवन जीने को विवश किया जा रहा है।