1 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 में ‘तहलका’ पत्रिका को दिए गए उनके साक्षात्कार से अदालत की अवमानना होने के मामले को बंद कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, कि भारत के कई पूर्व मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट हैं। तहलका के संपादक तरुण तेजपाल के खिलाफ भी केस बंद कर दिया गया। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश की पीठ ने भूषण द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण और तेजपाल द्वारा की गई क्षमायाचना के मद्देनजर अवमानना की कार्यवाही को बंद कर दिया।
भूषण की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने कहा, कि उन्होंने अपने बयान के लिए स्पष्टीकरण दिया है। ‘तहलका’ पत्रिका के संपादक तरुण तेजपाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, कि उनके मुवक्किल ने माफी माँग ली है। पीठ ने आदेश में दर्ज किया, कि “अवमानना करनेवालों द्वारा किए गए स्पष्टीकरण/माफी के मद्देनजर, हम मामले को जारी रखना आवश्यक नहीं समझते हैं।” 2009 में शुरू किया गया मामला, जो लंबे समय से निष्क्रिय पड़ा था, 2020 में पुनर्जीवित हो गया, जब इसे भूषण के खिलाफ उनके कुछ ट्वीट्स पर 2020 में अवमानना के मामले के साथ पोस्ट किया गया था।
प्रशांत भूषण ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है –
“2009 में तहलका को दिए अपने साक्षात्कार में मैंने भ्रष्टाचार शब्द का व्यापक अर्थ में उपयोग किया है जिसका अर्थ है, ‘औचित्य की कमी’। मेरा मतलब केवल वित्तीय भ्रष्टाचार या कोई आर्थिक लाभ प्राप्त करना नहीं था। मैंने जो भी कुछ कहा है, उससे किसी व्यक्ति विशेष या उनके परिवारों को अगर किसी भी तरह की चोट पहुँची है, तो मुझे इसका खेद है। मैं बिना शर्त यह कहता हूँ, कि मैं न्यायपालिका की संस्था और विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय का आदर करता हूँ, जिसका खुद मैं एक हिस्सा हूँ, और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कम करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, जिसमें मुझे पूरा विश्वास भी है। मुझे खेद है कि मेरे साक्षात्कार को गलत समझा गया, यानी न्यायपालिका विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा को कम किया गया, जो कि मेरा इरादा कभी भी नहीं हो सकता था।”
अदालत द्वारा स्वत: संज्ञान वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा की गई एक शिकायत के आधार पर लिया गया था, जिन्होंने आरोप लगाया था, कि भूषण ने अपने साक्षात्कार में कहा था, कि पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे। शिकायत के अनुसार भूषण ने साक्षात्कार में यह भी कहा, कि उनके पास आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। 6 नवंबर 2009 को, शिकायत को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन और न्यायमूर्ति एस.एच कपाड़िया की पीठ के समक्ष रखा गया, जिसने निर्देश दिया था कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसमें न्यायमूर्ति कपाड़िया सदस्य नहीं थे। 19 जनवरी 2010 को न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर, न्यायमूर्ति सिरिएक जोसेफ और न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू की पीठ ने भूषण और तरुण तेजपाल को नोटिस जारी किया था।