प्रदीप गिरी स्मृति सभा में जुटे समाजवादी दिग्गज

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1 सितंबर। नेपाल के समाजवादी नेता और चिंतक प्रदीप गिरी के निधन के तेरहवें दिन नयी दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित स्मृति सभा में प्रो राजकुमार जैन, सीताराम येचुरी, केसी त्यागी, डॉ आनंद कुमार, मोहन प्रकाश, डॉ सुनीलम, अजीत झा, जयशंकर गुप्त, अरुण कुमार, धीरेंद्र श्रीवास्तव, अनिल ठाकुर, संत प्रकाश समेत जहां दिग्गज समाजवादी बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं की सहभागिता रही, वहीं नेपाल के राजदूत ने उदय शंकर जी ने भी शिरकत की। राजदूत उदय शंकर जी ने प्रदीप गिरी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति का राजनीतिज्ञ बताया। उन्होंने कहा कि श्री गिरी के पास हर मसले पर अपनी दृष्टि होती थी चाहे वह आर्थिक मुद्दे हों या अन्य मुद्दे।वे दृष्टिसम्पन्न नेता थे। उन्हें भारत की जनता भी प्यार करती थी। वे भारत और नेपाल के बीच बेहतर सम्बन्धों में विश्वास रखते थे। मुरली मनोहर जोशी, और कर्ण सिंह ने भी शोक संदेश भेजकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने भी अपना लिखित संदेश भेजकर शोक व्यक्त किया। उन्होंने अपने संदेश में प्रदीप गिरी गांधी, लोहिया, जयप्रकाश के सच्चे सिपाही के रूप में याद किया। इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी के अतुल अनजान ने भी पत्र भेजकर अपनी सम्वेदना व्यक्त की।

राजनयिक केवी.राजन ने प्रदीप गिरी को सच्चा देशभक्त बताया। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि सरकारें बदलती रहीं, नीतियां भी बदलती रहीं लेकिन प्रदीप गिरी ने भारत नेपाल के बेहतर संबंधों की हमेशा से पैरोकारी की। राजनीति में सारी उम्र गुजारने केबाद सत्ता से उन्हें कोई मोह नहीं था। वे राजनीति को एक साधन के रूप में देखते थे, साध्य कुछ और था। वे एक खुले हुए बुद्धिजीवी थे। वे निर्ममता से नीतियों का विश्लेषण करते थे। वे एक आदर्शवादी विचारक और कर्मशील राजनेता थे। हमें उनके द्वारा दिये आदर्शों को अपनाना चाहिए।

रजीत रेशा ने अपने संबंधों जो याद करते हुए बताया कि करीब 2005 में मेरी पहली मुलाकात हुई। यह वह समय था जब नेपाल की स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका मानाना था कि भारत नेपाल संबंध हर हालत में बेहतर होना चाहिए। वे प्रत्येक मुद्दे पर अपना मत रखते थे। हमलोगों ने काफी कुछ उनसे सीखा, उन्हें किसी फ्रेमवर्क में नहीं बांधा जा सकता। वे संयुक्त नेपाल भारत सेंटर बनाना चाहते थे।

जनता दल यूनाइटेड के नेता केसी त्यागी ने कहा कि प्रदीप जी किसी बने-बनाये ढांचे में फिट नहीं हो सकते थे। वे जन्मजात विद्रोही थे। अच्छा हुआ वे मंत्री नहीं बने, नहीं तो अपने ही प्रधानमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करने से नहीं हिचकते। फिर निकाले जाते। उन्हें पार्टी से कोई मोह नहीं था। प्रदीप जी को तमाम मसलों पर खासी जानकारी और पैनी समझ रखते थे। वे मंत्रियों से बढ़कर रहे।

प्रो राजकुमार जैन ने कहा कि प्रदीप गिरी की पहचान एक कद्दावर नेता की रही है। वे समाजवादी आंदोलन के बड़े प्रचारक थे। उन्होंने लोहिया पर फिल्म बनवायी। वे बनारस से समाजवादी आंदोलन में पल्लवित पुष्पित हुए थे। मोहन प्रकाश ने कहा कि प्रदीप गिरी जी ने भूख को भी देखा था।मध्यम वर्ग से बच्चे आंदोलन में आ जाते थे। एक अजीब तरीके का सम्मोहन उनके व्यक्तित्व में था। वे नेता थे पर इस पूरे उपमहाद्वीप में इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति शायद ही हो। वे हर विषय पर बात कर सकते थे। वे निहायत ही विद्रोही आदमी थे। घर और बाहर हर जगह विद्रोही ही रहे। अपनी बहन तक के गहने को उन्होंने सदाचार के लिए बेच दिया और उससे आंदोलन में रत लोगों की भूख शांत की। जो भी उनसे मिला उनका होकर रह गया। वे विचारों के प्रति प्रतिबद्ध थे।

माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि प्रदीप जी से मेरा संबंध 50 साल पुराना था। वे जहाँ भी थे समाजवादी रहे, वे हमारे साथ भी रहे तो भी समाजवादी बनकर ही रहे। जब वे आते थे तो खूब बहस होती थी। उनके नेतृत्व में राजशाही के खिलाफ आंदोलन छेड़ा गया। जब संविधान बना तो उसमें कई ऐसे प्रावधान जुड़े जिसमें प्रदीप जी की भूमिका थी। देश के अंदर वामपंथी आंदोलन की दो धाराएं हैं – एक कम्युनिस्ट दूसरा समाजवादी। इन दोनों धाराओं के बीच आज एकता की बहुत जरूरत है। प्रदीप गिरी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सब एकसाथ इकट्ठा हों।

कांग्रेस के नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि 1966-67 में वह सोशलिस्ट युवजन सभा के पार्टी प्रभारी थे। प्रदीप गिरी से चिट्ठी-पत्री से संवाद होता था। वे शुरू से अंत तक समाजवादी रहे और उसे जिया भी।

विजय प्रताप ने कहा कि प्रदीप जी सच्चे अर्थों में लोकशाही के समर्थक थे। वे कई काम नेपथ्य से किया करते थे। वे बड़े आदमी थे। नेपाली राष्ट्र की सम्प्रभुता की बात करते थे, हमारी मुलाकात होती तो वे सांस्कृतिक एकता की बात करते थे। समाजवादी राजनीति कैसे एकसाथ भारत और नेपाल में फैले और आगे बढ़े इसकी बात वह अंतिम सांस तक करते रहे।

आनंद कुमार ने कहा कि आज हमलोग लोकशाही के एक बड़े योद्धा को श्रद्धांजलि देने इकठ्ठा हुए हैं। कच्ची उम्र में ही उन्हें लंबे समय के लिए जेल में डाल दिया गया। हम लोगों को लगता था कि एशिया में समाजवाद की प्रयोगशाला नेपाल बनेगा। प्रदीप गिरी ने नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन ऐसा आंदोलन को संभाला, उसे खाद-पानी दिया। उनके पास सीमित साधन थे, बावजूद इसके उन्होंने काफी शानदार काम किया। तिब्बत और भूटान के लोगों के सवाल उठाए। वे समाजवादी विचार के स्वप्नदर्शी थे। वे सपने बड़े देखते थे लेकिन उसमें व्यक्तिगत कुछ नही था सब कुछ समाज के लिए था। उनका दायरा बहुत बड़ा था। प्रदीप जी हमेशा निराशा में आशा खोजते थे। आज जब प्रदीप जी की काफी जरूरत थी, वे चले गए। पर हमें वे याद आते रहेंगे।

संतोष भारतीय ने कहा कि प्रदीप जी जहाँ जहाँ गए सवाल खड़े किए, जैसे गांधी जी ने किया, गरीबों को संगठित किया। बेहद संवेदनशील व्यक्ति थे प्रदीप गिरी।

अजित झा ने कहा कि प्रदीप गिरी नया देश और नया समाज बनाना चाहते थे। स्वप्नदर्शी थे। मानते थे कि समाजवाद बहुत गहरा दर्शन है। उन्होंने कहा था कि समाजवाद को हम लोगों ने बहुत तकनीकी बना दिया है, उसे अब कलात्मक बनाने की जरूरत है।

जयशंकर गुप्त ने कहा कि समाजवादी आंदोलन के मेरे गुरुओं में प्रदीप गिरी जी भी थे। मेरा बीएचयू में अध्ययन के दरम्यान उनसे परिचय हुआ था। अक्सर काठमांडो यात्रा के दरम्यान उनसे मुलाकात होती थी। आज की तारीख में प्रदीप जी की काफी जरूरत थी, पर वे हमारे बीच नहीं रहे।

स्मृति सभा में आए सभी लोगों ने स्व प्रदीप गिरी के चित्र पर फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित की।

– अरमान अंसारी

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