स्वामिभक्त बुलबुल

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रमाशंकर सिंह

— रमाशंकर सिंह —

बुलबुल बगैर किसी रास्ते और छेद के कोठरी में घुस आती थी फिर सावरकर को अपने पंखों पर बिठा कर मातृभूमि पुणे ले जाती थी। जो सावरकर आजादी के लिए अंग्रेज से आठ बार माई बाप माई बाप कहते हुए माफी पत्र भिजवा रहे थे, वे तथा उनकी बुलबुल इतनी स्वामिभक्त थी कि लौटकर सायंकाल तक फिर अंडमान की कोठरी में छोड़ देती और यह क्रम रोज चलता था।

सावरकर किसी दिन बुलबुल से कह सकते थे कि मुझे आज रंगून ले चलो जहॉं सुभाष बोस आईएनए बना कर अंग्रेज से हथियारबंद लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं और मैं उसमें सहयोग करूँगा।

सावरकर किसी दिन अन्य देश जैसे रूस या जापान या जर्मनी भी जा सकते थे कि मैं वहॉं से निर्वासित सरकार चलाऊँगा।

सावरकर कभी गांधी को झिड़कने शर्मिंदा करने उनके आश्रम भी जा सकते थे।
भगतसिंह की लाहौर जेल में यातनाओं को देखने या सिर्फ मिलने भी जा सकते थे।

हजारीबाग जेल को फाँद कर जेपी कैसे निकले वह सीख सकते थे।

अंग्रेज पुलिस की यातनाओं से टूटा थका शरीर लिये लोहिया का गोवा पहुँच कर तत्काल ही पुर्तगाली शासन की मार खाने और अग्वाड जेल में बंद किये जाने का देशभक्ति का नजारा देख सकते थे। खुद गोवा में रहकर आजादी के आंदोलन में शामिल हो सकते थे।

पुणे से ज्यादा दूर नहीं था मुबंई जहॉं गांधी का नमक आंदोलन देख सकते थे कि कैसे रोज सैकड़ों के सिर फट रहे हैं पुलिस की मार से।

रोज पुणे जाना और लौट आना होता रहा पर दूसरा कुछ भी नहीं किया।

मैं नहीं कक्षा आठ के विद्यार्थी पूछ रहे हैं कर्नाटक के और उनकी हॅंसी रोके नहीं रुक रही है।

छद्मनाम चंद्रगुप्त या चित्रगुप्त के नाम से एक जीवनी लिखकर खुद को ही वीर घोषित कर दिया, बहुत बाद में रहस्योदघाटन हुआ कि जीवनीकार चंद्रगुप्त कोई दूसरा नहीं बल्कि खुद सावरकर ही थे।

ऐसे विनायक सावरकर फिर वीर सावरकर कहलाये।

चलो फिर सावरकर वहीं कोठरी में रह गये और आज फिर एक बुलबुल कोठरी में घुस गयी है पर सावरकर तो हैं ही नहीं , वे तो तब के साठ रुपये यानी आज के पौने दो लाख रुपयों की सरकारी कृपा पेंशन लेकर फिर पुणे ही रह गये। बुलबुल वहीं कोठरी में बैठी इंतजार करती रही।

यदि आत्मा होती हो तो किस की आत्मा कहॉं मंडरा रही होगी?

नोट : चित्र का पोस्ट से कोई ताल्लुक नहीं है बस सुंदर चित्र था इसलिए लगा दिया है। कोठरी से अभी तक ज्ञान यह मिला है बुलबुल को कि भारत को आजादी 2014 में मिली थी लेकिन 75 साल वाला अमृत महोत्सव क्यों मनाया जा रहा है यह अभी और जानना बाकी है इसलिए ध्यानस्थ है !

(फेसबुक से)

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