10 सितंबर। मध्य प्रदेश के उच्चशिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने शनिवार को मंत्रालय में एक बैठक को संबोधित किया, जिसमें प्रदेश में उच्चशिक्षा के निजीकरण को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया, कि इसके लिए एक नीति बनाई जाए जिसे कैबिनेट से मंजूर करवाया जाए। इस बैठक में अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा श्री शैलेन्द्र सिंह मुख्य रूप से उपस्थित थे। उच्चशिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप मध्य प्रदेश को अन्य राज्यों की तुलना में आगे निकलने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अति आवश्यक है। डॉ साहब का मानना है, कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा पैदा होगी। इससे शिक्षण प्रणाली, तकनीक के प्रयोग, शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन, शिक्षक-प्रशिक्षण शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन, पाठ्यक्रम निर्माण, कौशल संवर्धन आदि महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास की गति तीव्र होगी।
विदित हो, कि मध्य प्रदेश में पिछले 10 सालों में दो दर्जन से ज्यादा निजी विश्वविद्यालय खुल चुके हैं। एक तरफ निजी विश्वविद्यालयों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने के लिए प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं हो रही है। सरकारी विश्वविद्यालयों में कर्मचारियों की कमी है। सुविधाओं को लगातार कम किया जा रहा है। आत्मनिर्भरता के नाम पर बजट में कटौती की जा रही है। उच्चशिक्षा मंत्री के इस फैसले से जहाँ एक और मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा महंगी हो जाएगी तो वहीं दूसरी ओर सरकारी नौकरियां भी कम हो जाएंगी। देशभर के रिकॉर्ड बताते हैं, कि उच्चशिक्षा के मामले में बड़ी उपलब्धियां सरकारी विश्वविद्यालयों से ही प्राप्त होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह होता है, कि सरकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को उनकी योग्यता के अनुसार वेतन मिलता है और उन्हें अपनी नौकरी की चिंता नहीं होती। वह अपना पूरा समय रिसर्च एंड डेवलपमेंट में लगाते हैं।
(‘मेहनतकश’ से साभार)