फेडेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं

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पेंटिंग : हरजीत ढिल्लो
    फेडेरिको गार्सिया लोर्का (5 जून 1898 – 19 अगस्त 1936)

अनुवाद : श्रीविलास सिंह

(स्पेन के क्रान्तिकारी कवि लोर्का का जन्म 5 जून, 1898 को ग्रेनेडा के पास स्पेन में हुआ था। अगस्त 1936 में स्पेन में गृह-युद्ध शुरू होने के पश्चात् लोर्का को तानाशाह फ्रांसिस्को फ्रैंको के सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ दिनों बाद उन्हें फायरिंग स्क्वाड द्वारा गोली से उड़ा दिया गया। लोर्का जो लिखते थे उसमें विश्वास करते थे। उनके लेखन और जीवन में कोई दोहरापन नहीं था। उनका जीवन हमेशा इस बात की मिसाल रहेगा कि किस प्रकार अपने विश्वासों के लिए जिया जाता है और कैसे उसके लिए जान भी दी जा सकती है।

लोर्का की कविताओं के कई संग्रह प्रकाशित हुए। अपनी  संगीतमयता के कारण उनकी कविताएं लोक जीवन, अन्दलूसियन और जिप्सी बंजारा संस्कृति में रच बस गयीं। 1928 में लिखे लोर्का के “जिप्सी प्रेम गीत” (Romancero Gitano) को समीक्षकों द्वारा सराहा गया। अगले वर्ष लोर्का न्यूयॉर्क चले गए।  वहां से लौटने पर उन्होंने La Barraca नाम के सचल थियेटर ग्रुप की स्थापना की। उस ग्रुप ने अनेक नाटक किये जिसमें लोर्का का प्रसिद्ध नाटक Blood Wedding (1933) भी था। देश में फासिस्ट शक्तियों के उभार के बावजूद लोर्का ने अपने वामपंथी विचारों को कभी नहीं छिपाया। 1986 में स्पेन की सरकार ने कवि के सम्मान में, उस स्थान पर जहां वह शहीद हुए थे, एक स्मारक का निर्माण करवाया। उनकी कविताएं आज भी मानवीय स्थितियों के प्रति साहित्यकारों और आम पाठकों को समान रूप से प्रभावित कराती हैं। – अनुवादक)

 1. गिटार

शुरू होता है रोना गिटार का।
तोड़े जा चुके हैं भोर के मधुपात्र।

शुरू होता है रोना गिटार का।
व्यर्थ है
इसे चुप कराना।
असंभव है
इसे चुप कराना।
यह रोता है नीरस एकरूपता से
जैसे रोता है जल
जैसे रोती है हवा
बर्फीले मैदानों में।
यह रोता है दूरस्थ
चीजों के लिए।
श्वेत  कैमेलिया फूलों के लिए तड़पती
दक्षिणी गर्म रेत।
रोता है बिना लक्ष्य का तीर
बिना सुबह की साँझ
और डाल रोती है पहली
मृत चिड़िया के लिए।
ओह, गिटार!
मरणांतक रूप से घायल है हृदय
पाँच तलवारों से। 

2. शहर जो सोता नहीं

आसमान में कोई नहीं है सोया।
कोई नहीं, कोई भी नहीं।
कोई नहीं है सोया।
चाँद के जीव सूंघते हैं
और टहलते हैं अपने दड़बों के आसपास।
जिंदा गोह आकर डस लेगी
उन लोगों को जो नहीं देखते स्वप्न,
अपनी टूटी हुई आत्मा के साथ दौड़ता हुआ आदमी
मिलेगा गली के नुक्कड़ पर
अविश्वसनीय घड़ियाल से
सितारों के कोमल प्रतिरोध के ठीक नीचे।

सोया नहीं है कोई धरती पर।
कोई नहीं, कोई भी नहीं।
कोई नहीं है सोया।
सुदूर कब्रिस्तान में है एक शव
जो करता रहा है विलाप तीन वर्षों तक
एक सूखे इलाके ने कुहनियों के बल होने की वजह से ;
और बच्चा जिसे दफनाया है उन्होंने इसी सुबह
रोता था इतना अधिक
कि हो गया था जरूरी
कुत्तों को बुलाना उसे चुप रखने के लिए।

जीवन नहीं है एक स्वप्न। सावधान!
सावधान! सावधान!
हम गिर जाते हैं सीढ़ियों से नीचे
भर लेने को नम मिट्टी मुँह में
अथवा हम चढ़ जाते हैं बर्फ की कटार सी धार पर
मृत डहेलिया के स्वरों के साथ।
किंतु नहीं है अस्तित्व विस्मृति का,
नहीं है अस्तित्व स्वप्नों का;
अस्तित्व है बस देह का। चुम्बनों से गुम्फित होते हैं हमारे मुँह
नई शिराओं के उलझाव में,
और जिसे भी पीड़ा देती है उसकी पीड़ा,
महसूस करेगा वह उस पीड़ा को सदैव
और जिसे है डर मृत्यु का वह ढोएगा उसे अपने कंधों पर।

एक दिन
घोड़े रहेंगे शानदार कक्षों में
और क्रोधित चींटियां
उछाल देंगी खुद को पीले आसमानों में
जो शरण लेते हैं गायों की आँखों में।

एक और दिन
हम देखेंगे सुरक्षित रखी तितलियों को
जागते हुए मृत्यु से
और अभी भी चलते हुए भूरे स्पंज और मौन नावों के देश में
हम देखेंगे अपनी अंगूठियों को चमकते
और अपनी ज़ुबान से प्रस्फुटित होते गुलाबों को।
सावधान! सावधान रहो! सावधान रहो!
आदमियों जिन पर अभी भी बाकी हैं पंजों के और अंधड़ के निशान,
और बच्चा जो रोता है क्यों कि उसने कभी सुना नहीं है पुल के
आविष्कार के बारे में,
अथवा मरा हुआ आदमी जिसके पास अब बचा है
बस उसका सिर और एक जूता,
हमें उन्हें ले जाना चाहिए उस दीवार तक
जहाँ गोह और सांप हैं प्रतीक्षारत,
जहाँ प्रतीक्षारत हैं भालू के दाँत,
जहाँ प्रतीक्षारत हैं एक बच्चे के सूखे निर्जीव हाथ,
और अंत में खड़ा है ऊंट का बाल
अनियंत्रित नीली कंपकंपी साथ।

कोई नहीं सो रहा आसमान में।
कोई नहीं, कोई भी नहीं।
कोई नहीं सो रहा।
यदि कोई मूँदता है अपनी आँख
एक कोड़ा, बच्चो, एक कोड़ा!
यहाँ होने दो खुली हुई आँखों
और जलते हुए घावों की एक दृश्यावली।
कोई नहीं सो रहा है इस दुनिया में ।
कोई नहीं, कोई नहीं।
मैं कह चुका हूँ यह पहले भी।

कोई नहीं सो रहा है।
पर अगर किसी की कनपटियों पर जम गयी है
बहुत अधिक काई रात में,
खोल दो मंच के गुप्त दरवाजे
ताकि वह देख सके चाँदनी में
रखे हुए कटोरे, और विष,
और नाट्यशालाओं की खोपड़ियां।

पेंटिंग : पल्लवी रहेजा

3. चाँद का प्रेम गीत

चाँद आया लुहार की भट्ठी तक
पहने हुए गुलमेहंदी का अपना पेटीकोट
लड़का देख कर देखता ही रह गया
लड़के ने देखा चाँद को
बेचैन हवा में
चाँद ने उठाईं अपनी बाँहें
दर्शाती- पवित्र और मादक –
अपनी कांसे की छातियाँ
भागो चाँद भागो चाँद चाँद
यदि आ गए बंजारे
वे गढ़ डालेंगे तुम्हारे हृदय से
श्वेत अंगूठियां और श्वेत हार
क्या तुम नाचने दोगे मुझे लड़के –
जब आएंगे बंजारे
उन्हें तुम मिलोगे निहाई के ऊपर
बंद किये अपनी नन्हीं आँखें
भागो चाँद भागो चाँद चाँद
मुझे सुनाई पड़ रही हैं घोड़ों की टापें
छोड़ो मुझे लड़के ! मत चलो
मेरे चमकीले धवल रस्ते पर

अश्वारोही आए बजाते हुए
अपने नगाड़े
लुहार की भट्ठी पर लड़के ने कर रखी थी
अपनी नन्हीं आँखें बंद
जैतून के बगीचों से
काँसे में और स्वप्नों में
यहाँ आते हैं बंजारे
तने हुए सिरों वाले सवार
उनकी पलकें लटकी हुई नीचे की ओर

कैसे गाता है रात का बगुला
कैसे गाता है यह पेड़ पर
चाँद पार कर जाता है आसमान
पकड़े हुए एक लड़के का हाथ

लुहार की भट्ठी पर बंजारे
विलाप करते हैं फिर चीखते हैं
हवा देखती है देखती है
हवा देखती है चाँद को।

 4. काले कपोतों के बारे में

कल्पवृक्ष की शाखाओं के मध्य
मैंने देखे दो काले कपोत
एक था सूरज
और एक था चाँद
नन्हे पड़ोसियो मैंने कहा
कहाँ है मेरी कब्र –
मेरी पूंछ में कहा सूरज ने
मेरे गले में कहा चाँद ने
और मैं जो चल रहा था
डूबा मिट्टी में अपनी कमर तक चारों ओर से
देखा बर्फीले इलाके के दो बाज़ों को
और एक नग्न लड़की को
पहले सा था दूसरा
और लड़की कोई नहीं थी उनमें
नन्हे बाज़ों मैंने कहा
कहाँ है मेरी कब्र
मेरी पूंछ में कहा सूरज ने
मेरे गले में कहा चाँद ने
कल्पवृक्ष की शाखों के मध्य
मैंने देखे दो नग्न कपोत
पहले सा था दूसरा
और दोनों थे उनमें से कोई नहीं।

पेंटिंग : पंकज पाल

 5. तीन नदियों का नन्हा प्रेम गीत

गुड़लक्विविर नदी
बहती है संतरे और जैतून वृक्षों के मध्य,
ग्रेनेडा की दो नदियाँ
आती हैं नीचे की ओर बर्फ से गेहूं के खेतों को।

आह, प्रेम, वापस न आने वाले!

गुड़लक्विविर नदी
लाल माणिक्य के हैं जिसके किनारे
ग्रेनेडा की दो नदियाँ
एक करती है विलाप, एक है रक्तरंजित,

आह, प्रेम, खोए हुए हवा में।

सेविले में है एक राजमार्ग
राजसी गति से जाते वाहनों हेतु
किंतु ग्रेनेडा के जल हेतु
बस आहें जाती हैं पतवार चलाती।

आह, प्रेम, वापस न आने वाले!

गुड़लक्विविर, ऊँची मीनार
हवा गुजरती हुई संतरे की कोपलों के मध्य
जेनिल और दार्रो, निकृष्ट
और मृत दलदलों के मध्य।

आह, प्रेम, खोए हुए हवा में।

कौन कहता कि जल उत्पन्न करता है
चमकीला प्रकाश गोधूलि में।

आह, प्रेम, वापस न आने वाले!

जई, जैतून और संतरे की कोपलें
समुद्र की ओर, ओ अंदलूसिया!

आह, प्रेम, खोए हुए हवा में।

 6. घुड़सवार का गीत

कार्डोवा, सुदूर और एकाकी,

काला घोड़ा, पूरा चाँद,
और मेरी जेबों में जैतून :
यद्यपि मैं जानता हूँ रास्ते
पर मैं कभी न पहुँचूँगा कार्डोवा।

मैदानों की ख़ातिर, हवा की ख़ातिर
काला घोड़ा, रक्तिम चाँद,
और मृत्यु है प्रतीक्षारत मेरे लिए
कार्डोवा की मीनारों के अतिरिक्त।

हाय! यह सुदीर्घ राजमार्ग,
हाय! मेरा बहादुर घोड़ा,
हाय! कि मृत्यु है प्रतीक्षारत
मेरे कार्डोवा पहुँचने के पूर्व ही।

कार्डोवा, सुदूर और एकाकी।

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