— रमाशंकर सिंह —
विदेशमंत्री जयशंकर का यह ताजा बयान कि भारत प्रति व्यक्ति 2000 डॉलर (160000 रु. आय प्रतिवर्ष यानी करीब 13333 रु प्रतिमाह यानी 438 रु रोज) की अर्थव्यवस्था है, भी अर्धसत्य है क्योंकि इसमें अडाणी जैसे पूंजीपतियों, उच्चवर्ग और मध्यवर्ग की घनघोर अनैतिक आमदनी भी शामिल है। मेरा मानना है कि प्रतिव्यक्ति गरीब की आमदनी बतानी चाहिए और गरीबों की सही तादाद भी।
यह भी कहना सरासर गलत है कि तेल की कीमतें हमारी कमर तोड़ रही हैं। यह आज से नहीं हमेशा से तोड़ रही हैं और जब नहीं तोड़ रही होती हैं, जैसे आजकल, तो भी भारत सरकार ईंधन के दाम तीन चार गुने रखकर जनता की कमर तोड़ती रहती है जो कि हमने पिछले आठ बरसों में देखा है।
सच्चाई यह है कि भारत में 80 करोड़ लोगों के लिए पाँच किलो अनाज फ्री में मिलना भी महत्त्वपूर्ण है जिसके लिए वे एक उत्पादक दिन लाइन में लगने और नेताओं का निर्रथक भाषण सुनने को मजबूर होते हैं। मनरेगा में शामिल भूमिहीन, निर्माण कामों में लगे और घरेलू काम करनेवाले शहरी मजदूर, हाथ का रिक्शा चलानेवाले, अशिक्षित देहाती बेरोजगार, शहर के चौराहों पर काम माँगते दैनिक श्रमिक, निम्नवर्ग आदि सब मिलाकर 100 करोड़ लोगों की प्रतिव्यक्ति औसत आमदनी 2000 डॉलर यानी करीब डेढ़ लाख रुपया प्रतिवर्ष नहीं है।
कितनी है? नीति आयोग कहेगा डाटा नहीं है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण कुछ भी अनर्गल कह सकती हैं और सामने बैठे पत्रकारों के सवालों के जवाब में यह बोलने की जुर्रत कर सकती हैं कि यूपी टाइप बात मत करो। भारत के असली अर्थशास्त्र से अनभिज्ञ विश्वबैंक के आदेशों और खरबपतियों के लिए चलाई जा रही एक बदमाश कुपढ़ टीम देश चलाने के नाम पर भट्ठा बिठाती ही जा रही है।
डा लोहिया ने आज से 58 बरस पहले संसद में प्रधानमंत्री नेहरू से कहा था कि भारत का गरीब साढ़े चार आना (तब यही हिसाब चलता था – एक रूपया में 16 आना) यानी 28 पैसे रोज पर गुजारा करता है और प्रधानमंत्री के जीवन पर कुल बीस हजार रूपया रोज खर्च होता है। नेहरू जी ने प्रतिवाद किया, तीखी बहस हुई और अंतत: योजना आयोग के हिसाब पर माना गया कि साढ़े चार आना नहीं बारह आना ( 75 पैसे)। लोहिया ने उसे भी झूठ साबित किया कि कैसे साढ़े चार आना सही गणना है।
तब से समय और आमदनी बदली है पर महंगाई भी बढ़ी है। आज भी भारत का 80 करोड़ बदहाल कुपोषित अशिक्षित पूरे साल उत्पादक काम नहीं कर पाता है, मिलता ही नहीं है। आज प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा पर सिर्फ एनएसजी का बजट ही 400 करोड़ प्रतिवर्ष से ऊपर है जबकि हर रोज के दौरे पर एक सभा में राज्यों के पाँच हजार जवान नियुक्त होते हैं जिनका रोज का वेतन ही करीब 1200-1500 रुपया औसतन पड़ता है। यानी सब वाहन भत्तों समेत कुल करीब 1.8 करोड़ रुपया एक सभा का मात्र राज्य द्वारा सुरक्षा पर। इसके अतिरिक्त विमान-हेलिकॉप्टर, वातानुकूलित मंच, रेनप्रूफ शामियाने, साउंड, कुर्सियों, नई सड़कें, सजावट, इलेक्ट्रॉनिक पर्दों व प्रचार पर करीब पाँच से सात करोड़ रुपया प्रति सभा औसतन।
सब मिलाकर एक दिन के दौरे पर कम से कम बीस करोड़ रुपया प्रधानमंत्री पर खर्च होता है जो इस देश का नागरिक वहन करता है। बहुत सारे अन्य खर्चे मैं तब बताऊँगा जब कोई इस पर सार्वजनिक बहस करने को तैयार हो। यानी बीस हजार की जगह अब बीस करोड़ रु. का प्रतिदिन न्यूनतम खर्च है प्रधानमंत्री पर और देश का 80 करोड़ मुफलिस गरीब प्रतिव्यक्ति 67 रुपया रोज पर गुजर करता है ! यह हिसाब वहीं पहुँच गया जो जयशंकर ने अभी बताया लेकिन सबकी आमदनी शामिल कर। मेरा हिसाब पक्का और पूरा है और प्रमाणित किया जा सकता है।
भारत सरकार आज उन्हें गरीबी रेखा के नीचे मानती है जो 27-33 रुपया रोज अपने जीवन पर खर्च करते हैं और यह कुल आबादी 10 करोड़ है। यह तत्काल झूठ न भी माना जाए तो मेरे आँकड़े के अनुसार जैसे ही गरीब 33 रुपया रोज से ऊपर खर्च करता है उसका आँकड़ा सरकार नहीं रखती और डिलीट कर देती है। यही आबादी 80 करोड़ है।
भारत की यह विषमता और गहरी व अन्यायपूर्ण हो जाती है जब इस हिसाब के साथ ऊपर के दस धनपतियों की प्रतिदिन आमदनी पर गौर करें। जो सार्वजनिक जानकारी में है यदि उसी को मान लें तो आज अडाणी की आमदनी प्रतिदिन मात्र शेयर बाजार के उठने गिरने पर ही औसतन 1600 करोड़ रु. प्रतिदिन है। (2021 का आँकड़ा)
ट्रिलियन ट्रिलियन की टर्र टर्र करनेवाले ब्रिटेन से आगे निकले की झूठी हवा बनानेवाले यह क्यों नहीं बताते कि आबादी के लिहाज से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार नहीं बल्कि औसत प्रतिव्यक्ति आमदनी कितनी है? भारत से बीस गुनी ज्यादा है, कुपित पात्रा जी!
आपकी न आँखें फटेंगी और न ही तुम्हारे मन में कोई जुगुप्सा या हलचल होगी। गुलाम मानसिकता के देश से और क्या अपेक्षा हो सकती है?
आजादी का अमृत महोत्सव मना लिया अब इतनी आजादी काफी है, अगली गुलामी के लिए तैयार हो जाओ !