धीरेन्द्रनाथ श्रीवास्तव की ग़ज़लें

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पेंटिंग : कल्यानी पाठक


1. सबके घर तक जाएगी

पहले सूखे पात, घोंसला, खर तक जाएगी।
आगे बढ़ी तो एक एक छप्पर तक जाएगी।

रही सुलगती और साथ मिल गया हवा का तो,
आग लगाने वालों के भी सर तक जाएगी।

लपट उठी तो हरे बाग़ भी ज़द में ले लेगी,
लाल लाल जिह्वा निकाल ऊपर तक जाएगी।

जिम्मेदार सिर्फ रहज़न हैं पर इन लपटों की,
ऑंच शहर के सभी बड़े रहबर तक जाएगी।

हैं तटस्थ जो वह भी जानें आज नहीं तो कल,
आग गगनवासी चिड़ियों के पर तक जाएगी।

साहब रोकी नहीं गई तो यही आग कल को,
चलकर इस मस्जिद से उस मंदिर तक जाएगी।

बहुतों का जीना मुश्किल कर देगी धीरे से,
यही लपट जब अरब महासागर तक जाएगी।

लेगी जब विकराल रूप तो इसकी चिनगारी,
केवल कुर्सी नहीं सभी बिस्तर तक जाएगी।

इसीलिए कहता हूं आओ मिलजुलकर रोकें,
वरना यही आग हम सबके घर तक जाएगी।

2. फिर से मीठा फल आएगा

आज नहीं आया है लेकिन, कर यकीन वह कल आएगा।
इसी बाग़ में, इसी डाल पर, फिर से मीठा फल आएगा।

अपने अपने दरवाज़े पर, सिर्फ इश्क की बंसी टेरो,
सुनकर सूरज ढल जाएगा, लखकर चॉंद निकल आएगा।

तपिश धूप की सच है लेकिन, मेल जोल की हवा चली तो,
सूने घाटों से मिलने को, फिर सरिता का जल आएगा।

होरी जुम्मन की बगिया में, गर मिल्लत के फूल खिले तो,
राग लिये कोयल आएगी, गीत लिये बुलबुल आएगा।

पहले आप आप की शैली, आप यहां फिर अपनाओ तो,
हमें पिलाने अपने हाथों, खुद चल के बादल आएगा।

मौसम ने करवट बदला तो, लैला, हीर, जूलियट के घर,
मजनूं, रांझा और रोमियो, अपना रूप बदल आएगा।

चारों तरफ सॉंप हैं लेकिन, सोन चिरैया की रक्षा को,
थिरक मोरनी फिर आएगी, मोरों का भी दल आएगा।

ब्रह्मपुत्र, कावेरी, झेलम, गंगा, यमुना और नर्मदा,
मिलकर साथ बहें तो हममें, भीम सरीखा बल आएगा।

नहीं बराबर होगा लेकिन, इन्कलाब आया तो खुद ही,
आसमान कुछ नीचे होगा, कुछ ऊपर भूतल आएगा।

पेंटिंग : मधुलिका जे. ने. वी.

3. दीवाने आने वाले हैं

नए साल में नई जाल ले, मछुआरे आने वाले हैं।
बचकर रहिए क़ातिल बनकर, रखवाले आने वाले हैं।

ख़बर मिली है दीन धर्म का, वस्त्र पहनकर बस्ती बस्ती,
सात सैकड़ा कृषक जनों के, हत्यारे आने वाले हैं।

गांव शहर में खोल दुकानें, राम राम कह जीने वालों,
बड़े सेठ जी तेरे खातिर, ले ताले आने वाले हैं।

जिसे देखकर ही पंछी में, हो चुगने की मारामारी,
चतुर शिकारी की झोली से, वो दाने आने वाले हैं।

जिनको सुनकर डर लगता है, जो दीवार खड़ी करते हैं,
बस्ती बस्ती पर क़ब्ज़ा करने को, वो नारे आने वाले हैं।

मीठी मीठी बातों वाले, बल, पूॅंजी की गांठों वाले,
गठरी में नक़ली सूरज ले, ॲंधियारे आने वाले हैं।

लोकतंत्र कुल दो का होगा, दो की होगी सकल संपदा,
तेरे या मेरे हिस्से में, बस छाले आने वाले हैं।

धन्ना सेठों के हमले से, बचा ज़रा गुड़ दाना रखना,
जय किसान का परचम लेकर, दीवाने आने वाले हैं।

नहीं कह दो नफ़रत से, मिल्लत की रक्षा के खातिर,
राममनोहर, जयप्रकाश के, मतवाले आने वाले हैं।

4. राजा नंगा हो जाता है

जब घोड़े पर देख दलित को दंगा हो जाता है।
ऊंच नीच में डूबा राजा नंगा हो जाता है।

हमको छोड़ो बड़े बड़ों को नींद नहीं आती है,
पहरेदार घरों का जब बेढंगा हो जाता है।

लाज से पलकें झुक जाती हैं सॉंसें थम जाती हैं,
ताक़त के बल तार तार जब लहंगा हो जाता है।

रोती है सबरी बाबा पढ़ पुस्तक का हर पन्ना,
जब चुनरी को ले बड़कों से पंगा हो जाता है।

मुर्दा लगता है जंगल में हर कानूनी अक्षर,
जब विकास का मालिक आरी टॅंगा हो जाता है।

ऑंसू रिसते रहते हैं जब बाज़ारों में राशन,
खेतों की तुलना में तीना महंगा हो जाता है।

संविधान जी हमें रुलाती तब तेरी कमज़ोरी,
जब विधान के पथ से रहबर ‘रंगा’ हो जाता है।

जब सगीर अहमद से मिलते शिवकुमार जैसे हैं,
कठवत का जल आबे ज़मज़म गंगा हो जाता है।

है उम्मीद बहेगी फिर से हवा मोहब्बत वाली,
यही सोच कर मन दीवाना चंगा हो जाता है।

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