स्मरण मुलायम सिंह यादव

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स्मृतिशेष : मुलायम सिंह (22 नवंबर 1939 - 10 अक्टूबर 2022)


— गोपाल राठी —

नेताजी मुलायम सिंह यादव के निधन पर उन्हें अलग अलग ढंग से याद किया जा रहा है। भारतीय राजनीति में उनके योगदान का स्मरण किया जा रहा है। लेकिन मुलायम सिंह जी के कारण हमें कई बार अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ा। लोगों को साफ-साफ बताना पड़ा कि बेशक हम समाजवादी हैं लेकिन मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से हमारा कोई सरोकार नहीं है।

अपनी किशोरावस्था में हमें समाजवादी विचारों और समाजवादी नेताओं के प्रति आकर्षण रहा। जनता पार्टी में शामिल समाजवादी घटक के लोगों को हम अपना मानते थे। जनता पार्टी का प्रयोग 1977 में शुरू हुआ और 1980 में इसका पटाक्षेप हो गया। मोरारजी के बाद चरण सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन उनके पास बहुमत नहीं था। कांग्रेस ने समर्थन का पत्र दिया था लेकिन बाद में पीछे हट गई। समाजवादियों का बहुत बड़ा हिस्सा दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर चरण सिंह के साथ आ मिला। जबकि चन्द्रशेखर जी और कुछ अन्य समाजवादी, जनता पार्टी में ही बने रहे। 1977 के लोकसभा व विधानसभा चुनावों के समय और 1980 के लोकसभा व विधानसभा चुनावों तक हम जनता पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे जबकि उस समय तक हम मतदाता नहीं बन पाए थे। 1980 में जनता पार्टी के बिखराव के बाद हमारा मुख्यधारा की राजनीति से मोहभंग हो गया।

विघटन से मायूस और समाजवादी मूल्यों पर आधारित नई राजनीतिक शक्ति खड़ी करने के इच्छुक समाजवादियों ने 1980 में गहन मंथन किया। फलस्वरूप समता संगठन का गठन हुआ। समाजवादी विचारक किशन पटनायक के नेतृत्व में समता संगठन ने निर्णय लिया कि संगठन दस साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहकर समाज के सबसे वंचित वर्गों के लिए काम करेगा। संगठन और आंदोलन के माध्यम से उनके अधिकार की लड़ाई लड़ेगा। जनता पार्टी से अलग होकर जनसंघियों ने 1980 में अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी बनाई जबकि चरण सिंह के नेतृत्व में लोकदल का गठन हुआ।

मुख्यधारा की गैरकांग्रेसी गैर-संघी पार्टियों में संयोग वियोग का खेल चलता रहा। 1988 में सबने मिलकर वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल बनाया। इस बीच भारतीय राजनीति में मन्दिर मस्जिद के नाम पर उठापटक शुरू हो गई। वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन ज्यादा दिन नहीं टिक पाए। चन्द्रशेखर ने विद्रोह कर दिया और वे अल्पमत सरकार के प्रधानमंत्री बने। बिना सदन में आए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जनता दल का समाजवादी कहा जानेवाला कुनबा कई पार्टियों में बंट गया। हर क्षत्रप ने अपनी एक पार्टी बना ली।

1992 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो 1994 में जार्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाई। लालू यादव के नेतृत्व में 1997 में राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान के नेतृत्व में 2000 में लोकजनशक्ति पार्टी बनी । उसके बाद 2003 में जनता दल यूनाइटेड की स्थापना हुई जिसके नेता नीतीश कुमार हैं।

इन सब राजनीतिक उठापटक के बीच समता संगठन और समता युवजन सभा किसानों, मजदूरों, दलितों, आदिवासियों और युवाओं के संगठन और आंदोलन में संलग्न रहा। समता संगठन एक राजनीतिक संगठन था कोई राजनीतिक दल नहीं। समता संगठन और सहमना संगठनों ने 1 जनवरी 1995 को समाजवादी जन परिषद नामक राजनीतिक दल की स्थापना की। यह दल चुनाव आयोग में पंजीकृत है।

समता संगठन की तरह समाजवादी जन परिषद का मानना है कि वर्तमान राजनैतिक दल बुनियादी परिवर्तन की दृष्टि से अप्रसांगिक हो गए हैं। यथास्थिति को मजबूत करनेवाले दलों से किसी परिवर्तन की कोई उम्मीद नहीं है। समाजवादी जन परिषद के गठन के साथ ही देश में नई आर्थिक नीतियां परवान चढ़ रही थीं। इन आर्थिक नीतियों को देश के लिए खतरनाक मानते हुए सजप ने सहमना संगठनों के साथ अनेक आंदोलन किए। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि कांग्रेस औऔर भाजपा दोनों पार्टियां आर्थिक नीतियों के मुद्दे पर एकसाथ खड़ी नजर आती हैं। अन्य दलों का विरोध रस्म अदायगी तक सीमित रहा है।

जब हम समता संगठन के रूप में कार्य करते थे तब हमारा संबंध जार्ज फर्नांडिस की समता पार्टी से जोड़ा जाता था और जब हमने समाजवादी जन परिषद के बैनर तले काम शुरू किया तो हमारा संबंध मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से जोड़ा जाने लगा। जबकि वस्तुस्थिति यह थी कि इन दोनों पार्टियों से हमारा किसी भी स्तर पर कोई ताल्लुक नहीं था। हम लोगों को समझाते-समझाते परेशान हो जाते थे। लोगों को तो अलग अलग समझाया जा सकता था लेकिन एलआईबी (लोकल इंटेलीजेंस ब्यूरो) वाले हमेशा यह गलती करते थे।

अलग अलग पार्टियों में विभाजित समाजवादी घराने के लोगों से एक भावनात्मक लगाव तो था लेकिन राजनैतिक धरातल पर उनसे हमारा कभी कोई संबंध नहीं रहा। मुलायम सिंह जी के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव ने 25 वर्ष पूर्व हमें ऑफर दिया कि समाजवादी पार्टी में आकर समाजवादी धारा और विचारधारा को मजबूत करें। हमने विनम्रतापूर्वक कहा कि हम समाजवादी हैं लेकिन वर्तमान पार्टी हमारे सपनों की पार्टी नहीं है इसलिए हम जहां हैं वहीं ठीक हैं।

मुलायम सिंह जी ने यूपी की राजनीति में सामाजिक समीकरणों को साध कर साम्प्रदायिक शक्तियों को कई बार परास्त किया। कोर्ट द्वारा संरक्षित बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने आयी उन्मादी भीड़ को काबू करने के लिए उन्हें गोलीचालन जैसा अतिवादी कदम भी उठाना पड़ा लेकिन वे कानून और संविधान की रक्षा से पीछे नहीं हटे। उन्हें मुल्ला मुलायम कहकर मजाक बनानेवाले उनके अंतिम संस्कार में आकर उनके बारे में जो कह रहे थे इससे उनकी शख्सियत का पता चलता है।

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