गुनाह कोई करें शर्मिंदगी सभी को उठानी पड़े!

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— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

जिस तरह महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी पार्टी के एमएलए, एमपी ने पाला बदला, उसकी फब्तियां सुबह पार्क में सुनने को मिलीं, कि यह कोई नई बात नहीं—सारे पॉलिटिशन होते ही ऐसे हैं। जहां फायदा पहुंचेगा, पैसा कमाने का मौका मिलेगा वही जाएंगे इनका कोई दीन ईमान थोड़े ही होता है। राजनीति करने वाले कार्यकर्ताओं की लगभग यही तस्वीर हिंदुस्तान के आम आदमी के दिमाग में बैठ गई है। हालात यहां तक पहुंच गए कि अगर कोई कहे कि अमुक को देखो, वह तो ईमानदार है, तो उस पर तंज कसा जाता है, उसको मौका नहीं मिला होगा। जम्हूरियत की यह तस्वीर कितनी भयानक, तकलीफदायक, खतरनाक है कि चोर और साहू तराजू के एक ही पलड़े में तोले जा रहे हैं। आम आदमी की सोच यूं ही नहीं बन गई।

आज सियासत एक तिजारत बन गई है। कपड़ा बदलने की तरह पार्टी और विचारधारा बदलने का चलन जारी है। महाराष्ट्र में देखिए कल तक प्रधानमंत्री कहते थे अजित पवार ने 70000 हजार करोड़ रुपए का घपला किया है, जेल में चक्की पिसवाकर वसूल करूंगा। छगन भुजबल भ्रष्टाचार में 2 साल की जेल काटकर बाहर निकले हैं। प्रफुल्ल पटेल की मुंबई में 4 मंजिला इमारत को ईडी ने मनी लांड्रिंग के आरोप में सील कर दिया था। कल तक वे निशाने पर थे आज हमसफर हैं।

सियासत का सारा ताना-बाना सिद्धांत, विचार, नीति, वैचारिक प्रतिबद्धता के स्थान पर जाति, मजहब, खानदानी विरासत तथा बाजुओं की ताकत, गुंडागर्दी की बिना पर टिका है। तो जाहिर है कि उसका नतीजा भी वैसा ही होगा। शर्मनाक हालत यहां तक है कि दलबदल करने वाले बेशर्मी से यह कहते हुए कि हमने तो हालात के मुताबिक यह फैसला लिया है, यही मुल्क और सूबे के हित में है। कल तक जो इनका वैचारिक दुश्मन था वही अब सबसे बड़ा अजीज बन गया।

परंतु क्या यह तानाकशी सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर जायज है? तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। आज भी हिंदुस्तान की मुख्तलिफ पार्टियों, तंजीमो में ऐसे लाखों सक्रिय कार्यकर्ता हैं जिन्होंने ताउम्र सारी मुसीबतों को झेलते हुए विचार का दामन नहीं छोड़ा। बहुत मौके थे उनके पास सत्ता की मलाई चाटने के। सोशलिस्टों, कम्युनिस्टों, नक्सलपंथियों यहां तक कि आरएसएस में भी पुरानी परंपरा के स्वयंसेवकों, आंबेडकरवादियों, कांग्रेसियों का भी एक तबका किसी भी तकलीफ या लालच में अपनी विचारधारा से नहीं डिगा। हिंदुस्तान में अनेकों महान नेताओं के ऐसे उदाहरण हैं कि सत्ता के शिखर पर रहने के बावजूद अंत उनका एक फकीर की तरह गुजरा।

भोला पासवान शास्त्री, तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री तथा केंद्र में मंत्री रहे थे, आखिर में दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट में स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण उनको रहने के लिए कमरा मिला था। जिस दिन उनका इंतकाल हुआ मैं वहीं पर था। उनके शव को उनके पैतृक गांव भेजा जाना था परंतु शास्त्री जी एक लावारिस के रूप में वहां पर थे, किसी तरह इंतजाम करके उनकी मृतक काया को भेजा गया।

सोशलिस्ट नेता राजनारायण जमींदार खानदान में पैदा हुए। सबसे पहले उन्होंने अपने हिस्से की जमीन को अपने ही खेत के मजदूरों में बांट दी। दो बार एमएलए, संसद सदस्य, केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री जैसे पदों पर रहने तथा पार्टी संगठन में एक बड़े नेता की हैसियत से अनेकों एमएलए, एमपी, मिनिस्टर उनकी कलम से बने, के बावजूद आखिर में दिल्ली के लक्ष्मीबाई नगर के किराए के मकान में उनका निधन हुआ।

कर्पूरी ठाकुर हिंदुस्तान के सोशलिस्टों के सिरमौर नेता थे। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री, 1952 से लेकर 1988 तक मुसलसल बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। नाई जैसी जाति में जन्म लेने के बावजूद उनकी सादगी ईमानदारी के कारण बिहार जैसे राज्य में वे जननायक के रूप में उभरे। उनके इंतकाल के बाद सोशलिस्ट पार्टी में चर्चा हुई कि उनके परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा, कोई धन-दौलत, जमीन जायदाद उनके पास नहीं थी। उनके मुख्यमंत्री रहते उनके पिताजी गांव के झोंपड़ीनुमा मकान में रहते हुए अपना पुश्तैनी काम करते थे।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ मैं दिल्ली की जेल में बंद था। उनकी सादगी और ईमानदारी देखने लायक थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान कई बार नाराज होने के बावजूद केवल एक कारण कि हमारा नेता ईमानदारी में सूरज की तरह तपता है, उनके साथ जुड़ा रहता था। यह चौधरी चरण सिंह ही थे जिन्होंने गृहमंत्री के तौर पर बिड़ला जैसे पूंजीपति को गिरफ्तार करने का हुक्म सुना दिया था।

इस तरह के महान नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। मैंने तो महज उन नेताओं का जिक्र किया है जो सरकारों की बुलंदियों पर आसीन थे। जिनको मैंने बहुत नजदीक से देखा तथा उनकी रहनुमाई में कार्यकर्ता की हैसियत से कार्य किया था।

कसूर आम मतदाता का भी है। जब वह जात बिरादरी, कुनबापरस्ती, क्षेत्रीयता, मजहब और चुनाव के तामझाम, करोड़ों रुपयों के खर्चे, चमक-दमक से प्रभावित होकर मतदान करता है तो उसका परिणाम तो यह होना ही है। एक तराजू में तोलने वाले अगर अपना वोट केवल चरित्रवान, प्रतिबद्ध, ईमानदार उम्मीदवार को देंगे तथा जो पालाबदल दलबदलू है उनकी चुनाव में जमानत जब्त करा दें, तो देखना कि कैसे माहौल बदलता है।

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