वित्तीय असुरक्षा से जूझ रहे 69 फीसद भारतीय

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6 नवम्बर। कोरोना महामारी ने देश में वित्तीय असुरक्षा की असामान्य स्थिति उत्पन्न कर दी है। हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार, देश के करीब 69 फीसदी परिवारों को वित्तीय असुरक्षा की चिंता सताती है। कोरोना महामारी के बाद तो कमाई पर ज्यादा ही असर दिख रहा है। मनी-9 फाइनेंशियल सिक्योरिटी इंडेक्स में भारतीय नागरिकों की कमाई, खर्च और बचत के आँकड़ों को दिखाया गया है। सर्वे के अनुसार, देश के 4.2 सदस्यों वाले परिवार की औसत मासिक कमाई 23 हजार रुपये है। चिंता वाली बात ये है कि देश के 46 फीसद परिवारों की मासिक कमाई 15 हजार रुपये से भी कम है। यह सर्वे देश के 20 राज्यों के 1,154 शहरी वार्ड और 100 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े 31,510 हजार परिवारों पर किया गया है। मनी-9 ने यह सर्वे मई से सितंबर, 2022 के बीच किया है।

सर्वे के अनुसार, देश में सिर्फ 3 फीसद ही परिवार ऐसे हैं, जिनकी कमाई उच्च वर्ग में आती है, और वे लग्जरी लाइफ जीते हैं। सर्वे यह भी बताता है, कि कोरोनाकाल में यह खाई और ज्यादा चौड़ी हो गई है। इस दौरान लाखों नौकरियां छूट गईं तो कई नए कारोबार पैदा हुए। इसके अलावा उद्योग जगत के कई सेक्टर की कमाई में भी बंपर उछाल देखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 70 फीसद लोग बचत के लिए बैंक एफडी, बीमा, पोस्ट ऑफिस सेविंग और गोल्ड पर भरोसा करते हैं। इसमें से सबसे ज्यादा बचत बैंक और पोस्ट ऑफिस योजनाओं में करते हैं। इन दोनों विकल्पों में ही 64 फीसदी लोग पैसे लगाते हैं। सर्वे में बताया गया है, कि आकांक्षी लोगों के पास बचत की सबसे ज्यादा कमी है।

सर्वे के अनुसार, देश में सिर्फ 22 फीसदी भारतीय ही स्टॉक, म्यूचुअल फंड, यूलिप और फिजिकल एसेट में पैसा लगाते हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा 18 फीसद को रियल एस्टेट में पैसा लगाना पसंद है। अभी सिर्फ 6 फीसद भारतीय ही म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, जबकि 3 फीसद को ही शेयर बाजार में पैसा लगाना पसंद है, और 3 फीसद ही बीमा योजना यूलिप के जरिये निवेश करते हैं। ऐसा नहीं है, कि भारतीय सिर्फ कमाई के मामले में ही पीछे चल रहे हैं। बैंक लोन लेने में भी भारतीय काफी पीछे हैं। सर्वे में खुलासा किया है कि सिर्फ 11 फीसद परिवारों के पास बैंक का लोन है। इसमें भी सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पर्सनल लोन की है, जबकि होम लोन उसके बाद आता है। 42 फीसद परिवार अपनी वित्तीय सुरक्षा को लेकर मुश्किलों में हैं। इसमें कम कमाई वालों को जोड़ा जाए तो यह संख्या 69 फीसद पहुँच जाती है।

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