बिरसा जयंती पर आदिवासियों ने लिया जल जंगल जमीन की रक्षा का संकल्प

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15 नवंबर। जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में मप्र में बड़वानी एवं बुरहानपुर जिले के आदिवासियों ने बिरसा मुंडा और उनके साथियों के आजादी और मूलभूत अधिकारों के लिए छेड़े गए संघर्ष को याद करते हुए बिरसा मुंडा जयंती मनाई।

ग्राम सभा के जल जंगल जमीन के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार करने वाले केंद्र सरकार के वन संरक्षण नियम 2022 में बदलावों का विरोध कर नियम भी जलाए गए। आदिवासी महिला-पुरुषों द्वारा इज्जत की जिंदगी जीने, देश में सभी के बराबरी, आजादी से जीने के संवैधानिक अधिकार और मूल्यों के लिए सतत संघर्ष करने का संकल्प भी लिया गया।

अंग्रेज सरकार और उनसे जुड़े साहूकारों-जमींदारों की लूट के खिलाफ 24 वर्ष की उम्र में शहीद बिरसा मुंडा के छेड़े गए संघर्ष को याद किया गया। आदिवासी समाज द्वारा भारी शहादत के बाद भी आज समाज अपने मूल अधिकारों से वंचित है, और आज कंपनियों की दलाल सरकार देश के जल जंगल जमीन को बेच रही है।

वन संरक्षण नियम 2022 के बारे में सभा को संबोधित करते हुए रतन अलावे ने कहा कि “कंपनियों की दलाली करने वाली सरकार संविधान को दरकिनार कर, देशभर में लाखों हैक्टेयर जंगल कंपनी के हवाले कर के कहती है कि हम विकास कर रहे हैं ! हमारा पानी कोला लिमका बनाने वाली कंपनियों को जा रहा है और किसानों को पानी नहीं! लेकिन सरकार कहती है कि आदिवासी पर्यावरण का नुकसान कर रहा है !”

वन संरक्षण नियमों 2022 में ऐसे बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं जिससे कंपनियों को बिना ग्राम सभा से अनुमति लिये, और बिना वन अधिकार अधिनियम अनुसार दावों की प्रक्रिया पूरी किए, जंगलों को कंपनियों को दिया जा सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 35,000 एकड़ वनभूमि कंपनियों को दी जा रही है, और अब कंपनियों की मुनाफाखोरी के लिए आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को भी दरकिनार किया जा रहा है।

“शिक्षा अधिकार कानून” के अनुसार 30 बच्चों पर एक शिक्षक, हर विषय के लिए अलग शिक्षक और हर 1 किलोमीटर के दायरे में एक स्कूल होना चाहिए – पर उलटा, “सीएम राइज़” योजना के तहत 15 किलोमीटर में एक ही “अच्छा स्कूल” चलाने की जिम्मेवारी सरकार ले रही है। आजादी के लगभग 70 साल पहले बिरसा को भी शिक्षा प्राप्त हुई थी, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासी शिक्षा से वंचित हैं–मध्य प्रदेश में 89 आदिवासी ब्लॉकों के दस हजार स्कूलों में आधे से भी ज्यादा – 5760 स्कूल बंद किए गए हैं। मात्र 2016-17 से 2019-20 के बीच प्रदेश के 23,469 स्कूल बंद किए गए।

आदिवासी कहते हैं, खेती में हमारी मेहनत का पूरा दाम न मिलने के कारण हम पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, और हमें पलायन कर गुजरात, महाराष्ट्र यहां तक कि कर्नाटक तक भी भटकना पड़ रहा है ! 16-20 घंटे बंधुआ मजदूरी करने के बावजूद हमें न सरकारी रेट के अनुसार मजदूरी मिल रही है, न बंधुआ मजदूरी करवाने वाले मालिकों पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई की जा रही है ! महिलाओं और लड़कियों को यौनहिंसा और शोषण का भी सामना करना पड़ता है – क्या यही आदिवासियों के लिए विकास है ?

बिरसा जयंती कार्यक्रम में आदिवासी समाज एवं देश के अन्य सभी नागरिकों के शोषण और लूट के खिलाफ लड़ने, सभी के शिक्षा, स्वास्थ्य के मूल अधिकारों के लिए, आजादी और न्याय के लिए, गैरबराबरी खत्म कर इज्जत से जिंदगी जीने के मूल अधिकारों के लिए शांतिमय संघर्ष करने और आदिवासी शहीदों की विरासत को आगे बढ़ाने का भी संकल्प लिया गया।

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