22 नवम्बर। जाति उन्मूलन आंदोलन ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली के साहूकारा में डॉक्टर आंबेडकर की मूर्ति को शासन द्वारा ध्वस्त किए जाने की कड़ी निंदा की है। आंदोलन ने कहा है, कि यह कृत्य मनुवादी फासिस्ट योगी सरकार द्वारा भारतीय संविधान के शिल्पी और शोषितों-वंचितों के नायक डॉ बी.आर आम्बेडकर की मूर्तियों को सुनियोजित तरीके से विकृत व ध्वस्त करने की परियोजना की ही ताजा कड़ी है। साथ ही यह घटना योगी सरकार के कभी खुले और कभी गुप्त संरक्षण में जातिवादी दबंगों द्वारा दलितों-उत्पीड़ितों के खिलाफ तेज होते उत्पीड़नों से भी जुड़ी है। जाति उन्मूलन आंदोलन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, कि जिला प्रशासन जहां इसे पुलिस द्वारा ‘सम्मानजनक रूप से’, ‘हल्का बल प्रयोग करते हुए’, ‘गैरकानूनी मूर्ति’ को हटाने की बात कह रहा है।वहीं आंदोलन का आरोप है कि प्रशासन ने दलित समुदाय पर निर्मम तरीके से बल प्रयोग करते हुए पाँच पुलिस थानों के पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल कर बुलडोजर के जरिए मूर्ति को ध्वस्त किया है। यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है, बल्कि जहाँ दलित, मनुवादी हिंदुत्व के खिलाफ अपनी स्वाभाविक राजनैतिक चेतना के चलते आंबेडकर की मूर्ति स्थापित करते हैं, तब पुलिस प्रशासन की अनदेखी से इन मूर्तियों पर कालिख पोतने से लेकर ध्वस्त किया जाना आज उत्तर प्रदेश में आम बात है। आंदोलन के सदस्यों का कहना है, कि मनुवादी हिंदुत्व के लिए समर्पित और ब्रिटिश साम्राज्य के आगे नतमस्तक पुरुषों की मूर्तियों/चित्रों/जीवन गाथाओं को सरकारी संरक्षण में स्थापित/महिमामंडित किया जा रहा है, दूसरी ओर दलितों के नेता आंबेडकर की मूर्ति को ध्वस्त किया जाना क्या बताता है? यह घोर निंदनीय है। जाति उन्मूलन आंदोलन ने तमाम जनवादी प्रगतिशील ताकतों का आह्वान किया है कि वे मनुवादी और फासिस्ट ताकतों के इस घृणित आक्रमण के खिलाफ आवाज बुलंद करें।
उत्तर प्रदेश में आंबेडकर की मूर्ति तोड़ने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले, 15 मार्च 2018 के बाद से, उत्तर प्रदेश में आंबेडकर समेत पिछड़ों-दमितों के प्रेरणास्रोत महापुरुषों की 36 मूर्तियां ढहाई जा चुकी हैं। जबकि शासन-प्रशासन की तरफ से मात्र 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 4 लोगों ने मूर्ति तोड़ने का आरोप स्वीकार करते हुए अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया। एक मामला जिसमें आंबेडकर और संत रविदास दोनों की मूर्ति तोड़ी गई थी, में एक ही रिपोर्ट दर्ज की गई है।
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)