27 नवम्बर। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान खेड़ा जिले के महुधा में कहा कि गुजरात में पहले असामाजिक तत्त्व हिंसा में लिप्त होते थे, और कांग्रेस उनका समर्थन करती थी। लेकिन 2002 में ‘दंगाइयों को सबक सिखाने’ के बाद अपराधियों ने ऐसी गतिविधियां बंद कर दीं, और भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में ‘स्थायी शांति’ कायम की।
भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने इस बयान पर एतराज जताते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार तथा अन्य चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय एवं अरुण गोयल को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि उपरोक्त “सबक सिखाया” कथन स्पष्ट रूप से संदर्भित करता है कि कानून प्रवर्तन अधिकारियों के अलावा अन्य लोगों ने कानून को अपने हाथों में ले लिया है। उपरोक्त बयान अगर सच पाया जाता है, तो यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। वोट हासिल करने के लिए जातिगत या सांप्रदायिक भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता, लिहाजा शाह के उपर्युक्त बयान का चुनाव आयोग को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए।
ईएएस शर्मा ने अपने पत्र में आगे लिखा है कि गृह मंत्रालय ने बिलकिस बानो मामले में सामूहिक बलात्कार के 11 दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, जिसने देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया। 2002 की गुजरात की घटनाओं की पृष्ठभूमि और परिणाम व्यापक रूप से स्पष्ट हैं, मुझे आयोग को इसके बारे में विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 324 के आधार पर गुजरात तथा अन्य जगहों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संरक्षक के रूप में निर्वाचन आयोग की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता में मतदाताओं द्वारा दिखाए गए भरोसे के कारण आयोग को शीघ्रता से कार्रवाई करनी चाहिए। यदि श्री शाह का उक्त बयान सही पाया जाता है, तो आयोग तत्काल दंडात्मक कार्रवाई करे। देश के लोग एक स्वतंत्र संस्था के रूप में चुनाव आयोग में विश्वास रखते हैं, और आशा करते हैं कि आयोग निष्पक्ष रूप से कार्य करेगा। आयोग राजनीतिक दलों को सार्वजनिक रैली में इस तरह के आपत्तिजनक बयान देने की अनुमति नहीं दे सकता है, जिससे किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचे।
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