28 नवंबर। राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में 1989 से लगी मनु की मूर्ति को हटाने की मांग खासकर दलित और महिला संगठनों की ओर से जब तब उठती रही है। एक बार फिर यह मांग तेज हो सकती है। ‘दमन प्रतिरोध आंदोलन राजस्थान’ ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन देकर मांग की है कि राजस्थान हाईकोर्ट परिसर से मनु की मूर्ति हटा दी जाए। मनु की मान्यताएं हमारे संवैधानिक मूल्यों के एकदम खिलाफ हैं, फिर उनकी मूर्ति अदालत के परिसर में क्यों? अगर मनु की मूर्ति नहीं हटाई जाती है तो 25 दिसंबर से (जिस दिन 1927 में बाबा साहेब आंबेडकर ने मनुस्मृति दहन किया था) आंदोलन का आह्वान किया जाएगा। इस सिलसिले में राज्यपाल महोदय को दिया गया ज्ञापन इस प्रकार है –
दमन प्रतिरोध आंदोलन राजस्थान
(दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं महिला)
राजस्थान उच्च न्यायालय के जयपुर पीठ के परिसर से जातिवाद, वर्णवाद को स्थापित करने वाली एवं महिला विरोधी मनु मूर्ति को तत्काल हटाया जाए।
26 नवंबर, 2022 संविधान दिवस के अवसर पर संविधान के समर्थकों का खुला पत्र
श्री कलराज मिश्र
माननीय राज्यपाल, राजस्थान,
राजभवन जयपुर।
विषय :
● राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर पीठ परिसर से 33 वर्ष से लगी हुई मनुमुर्ती को हटाने बाबत
● भारत सरकार व राजस्थान सरकार को पक्षकार बनाया जाए
माननीय महोदय,
जैसा कि आपको विदित है कि पिछले 33 वर्षों से राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर पीठ परिसर में मनुमूर्ति लगी हुई है। यह भारत देश के लिए शर्म की बात है। 1950 में भारत समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुता के मूल्यों के आधार देश को अपना संविधान मिला। मनु स्मृति में दिया गया कानून संवैधानिक मूल्यों के विपरीत, छुआछूत, गैरबराबरी एवं मानव को मानव के ऊपर वर्चस्व रखने को वैध मानता है | 12 खंड एवं 2,694 सूत्रों में बनाया हुआ यह कानून, जातिगत द्वेष व महिलाओं को नीचा दिखाता है।
राजस्थान में लम्बे समय से मनुमूर्ती को हटाने के लिए अनेक आंदोलन हुए हैं। 1989 में जब मूर्ति स्थापित हुई थी तब दलित और महिला आंदोलन के प्रतिनिधियों ने आम्बेडकर विचार मंच एवं अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन किया था। अदालती कार्यवाही में शुरू में तो सुनवाई हुई लेकिन उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया | सन 2000 में पुणे के हमाल पंचायत के डॉ. बाबा आढव के नेतृत्व में महाराष्ट्र के माहाड कस्बे से जयपुर तक लगभग 1300 किमी. की एक यात्रा निकाली गई और राज्य व देशभर के लोगों ने धरने का आरम्भ किया। उनकी मांग थी कि यह मनुमूर्ति हटाई जाए व राजस्थान हाई कोर्ट में मनुमूर्ति हटाने के केस की हर रोज सुनवाई कर उसे निपटाया जाए। 26 जनवरी को गुजरात राज्य के कच्छ जिले में जबरदस्त भूकम्प आने से हुई त्रासदी को देखते हुए धरने को उठाया गया और आंदोलन स्थगित किया गया | इसी प्रकार सैकड़ों संगठनों ने पिछले 20-25 वर्षो में मनुमूर्ती हटाने के छोटे बड़े आंदोलन किए हैं । 2018 में महाराष्ट्र से आयी दो महिलाओं ने 10 फीट की मनुमूर्ती पर स्याही फेंक कर मूर्ति को रंग दिया। उनका मानना था कि यह मूर्ति दलित एवं महिला विरोधी है एवं समाज की गैर बराबरी की मानसिकता को पुन: स्थापित करती है इसलिए वे राजस्थान सरकार को चेताने आयी थीं की मूर्ति हटाई जाए। उन्हें और उनके साथियों को जेल में डाल दिय गया। इसके अलावा पिछले वर्ष अनेक दलित संगठनों ने गुजरात से आकर जयपुर में राजस्थान के संगठनों के साथ धरना दिया और 10 मीटर लम्बा कपड़ा राजस्थान सरकार को दिया कि मूर्ति हटाने में आप असमर्थ हैं तो इस कपड़े से ढक दिया जाए। इस बार राजस्थान भर से लम्बे आंदोलन की तैयारी की जा रही है |
मनुमूर्ति की स्थापना राजस्थान के उच्च न्यायालय के परिसर में कैसे हुई उसका संक्षिप्त ब्यौरा निम्न है-
राजस्थान उच्च न्यायालय न्यायिक सेवा संगठन के तत्कालीन अध्यक्ष श्री पदम कुमार जैन ने जयपुर के उच्च न्यायालय परिसर में मनु की मूर्ति लगाने इजाजत मांगी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने 0303, 1989 के पत्र द्वारा इसकी इजाजत दे दी। उपरोक्त संगठन द्वारा लायन्स क्लब के साथ जुड़कर माननीय जस्टिस एम.एम. कासलीवाल की इजाजत से, जो उस समय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थे, मूर्ति को स्थापित कर दिया। लायन्स क्लब जयपुर केपिटल ने मूर्ति अनावरण के लिए निमंत्रण पत्र जारी किए। यह अनावरण 28.6.1989 को तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मिलाप चन्द जैन द्वारा होना था। कई सारे दलित संगठनों ने जयपुर उच्च न्यायालय परिसर में मनुमूर्ति की स्थापना का विरोध किया। 28.7.1989 को सम्पूर्ण कोर्ट की प्रशासनिक मीटिंग में यह तय किया गया कि जयपुर उच्च न्यायालय परिसर से मनुमूर्ति को हटा दिया जाएगा। इसकी सूचना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार द्वारा आर. जे एसोसिएशन अध्यक्ष पदम कुमार जैन को दे दी गई।
राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ का प्रस्ताव इस प्रकार था –
मनु के प्रति कोई अनादर भाव रखे बिना परन्तु इस मामले के विवाद को देखते हुए यह प्रस्तावित किया जाता है कि मूर्ति को राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर से हटा लिया जाए। और 27.7.89 के पत्र के आधार पर लायन्स क्लब व आर. जे एससोसिएशन अध्यक्ष से अनुरोध है कि वे इस मूर्ति को यहां से हटा लें। श्री पदम कुमार जैन ने पी.डब्ल्यू.डी. के मुख्य अभियन्ता को 31.7.1989 को पत्र लिखकर मूर्ति हटाने की प्रक्रिया पर राय मांगी।
आचार्य धर्मेन्द्र ने एक जनहित याचिका दायर की जिसका नं. 1110/1989 (2994/1989) है। इस याचिका में मूल तथ्य यह था कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा एक बार मूर्ति लगाने के बारे में स्वीकृति देने के बाद मूर्ति हटाने का आदेश देना अपमानजनक है और कानून का मजाक है। यह भी लिखा कि मनु संहिता बहुत ही उत्तम ग्रन्थ है, यदि मूर्ति हटाई जाती है तो इससे बहुत बड़ा सामाजिक गतिरोध उत्पन्न हो जाएगा। याचिका में यह प्रार्थना की गई कि 28.7.1989 का न्यायालय की पूर्ण पीठ का पारित प्रस्ताव स्टे कर दिया जाए। यह याचिका 1 अगस्त 1989 को दायर की गई। दलित संगठन भी काफी सक्रिय थे, इस कारण उन्होंने भी 2 अगस्त को एक अर्जी कोर्ट में दाखिल की कि वे इसका पूरा जवाब देंगे। 2 अगस्त 1989 को जस्टिस एम बी शर्मा की कोर्ट में यह याचिका लगी और उन्होंने मनु मूर्ति को हटाने पर रोक लगा दी और कहा कि यह मुद्दा काफी महत्त्वपूर्ण है और इसमें कई महत्त्वपूर्ण सवाल हैं इस कारण मुख्य न्यायाधीश की बेंच गठित हो और उसमें इसकी सुनवाई हो। यानी कम से कम 3 न्यायाधीशों की बेंच द्वारा सुनवाई हो।
11.9.1990 तक तीन न्यायाधीशों श्री एस.एम. भार्गव, आई.एस. इसरानी और आई.सी. कोचर की बेंच के समक्ष नियमित सुनवाई होती रही। इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। आचार्य धर्मेन्द्र द्वारा दायर याचिका के अलावा दो और याचिकाएं दायर हुईं। एक श्री विजय शर्मा ने दायर की, जो सिविल याचिका नं. 2909/1989 है, और दूसरी श्री धर्मपाल ने अपने वकील श्रीमती माधुरी सिंह के मार्फत दायर की, जो सिविल याचिका नं. 5012/1989 है। श्री पी.एल. मीमरोठ व अन्य लोग इन्टरवीनर के रूप में शामिल हो गए। लम्बे समय तक इन याचिकाओं पर कोई सुनवाई नहीं हुई तब 2008 में सुनवाई कराने के लिए एक अर्जी दी गई और लगातार इस तरह की अर्जियों के बाद अन्ततः सुनवाई हुई।
13.8.2015 को मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील अन्बवानी, जस्टिस अजीत सिंह और जस्टिस वीरेन्द्र सिंह सिराधना की संयुक्त बेंच के सम्मुख यह मामला सुनवाई के लिए आया। 13.8.2015 को कोर्ट युद्ध का मैदान बना हुआ था। लगभग 300-400 ब्राहमणवादी विचारधारा के वकील (जिसमें चार अलग अलग बार एसोसिएशन के पदाधिकारी भी थे) एकसाथ एकत्र हो गए। श्री ब्रजवासी व कुछ युवा वकील खड़े हुए। इनको बोलने नहीं दिया। उस दिन आचार्य धर्मेन्द्र भी कोर्ट में थे। इस वातावरण व गरमागरम तर्कों के कारण बहस को टाल दिया गया और यह कहा गया कि भारत सरकार को गृह विभाग के सचिव के माध्यम से पूरा मामला भेजा जाए। गृह सचिव के मार्फत राजस्थान सरकार एक पक्ष बने और उस आधार पर नोटिस जारी करे ताकि जल्दी से जल्दी जवाब आ सके। इसके बाद यह मामला सुनवाई के लिए नहीं आया।
हमारी मांग है कि –
1. मनु मूर्ति को बिना किसी देरी के उच्च न्यायालय के जयपुर पीठ परिसर से तुरंत हटाया जाए |
2. भारत सरकार को गृह विभाग के सचिव के माध्यम से व गृह सचिव के मार्फत राजस्थान सरकार, दोनों को पक्षकार बनाया जाए तथा मामले की सुनवाई तत्काल की जाए व केन्द्र व राज्य सरकार इसे हटाने की जिम्मेवारी लें।
हमारी मांगों पर गौर किया जाए, नहीं तो पूरे प्रदेश में 25 दिसम्बर 2022 से (मनु स्मृति दहन दिवस) जयपुर से एक बड़ा आंदोलन का आह्वान किया जाएगा। ज्ञात हो कि 25 दिसम्बर 1927 को डॉ. बाबा साहिब भीमराव आम्बेडकर ने माहाड, महाराष्ट्र में मनुस्मृति का दहन किया था।
भवदीय
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