2 दिसंबर। कश्मीरी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माने जाने वाले शिकारा (हाउसबोट) की मरम्मत करने पर प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से शिकारा चलाने वाले परिवारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। कश्मीर हाउसबोट ओनर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर गासी ने मीडिया के हवाले से बताया कि एक समय एसोसिएशन के साथ 250 शिकारे पंजीबद्ध थे, अब 76 ही बचे हैं। विदित हो, कि 1988 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाले वाली सरकार ने प्रदूषण संबंधी चिंता के कारण कश्मीर में नए शिकारा के निर्माण और मौजूदा शिकारों की मरम्मत व नवीनीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार डल झील, निगीन झील और झेलम नदी में इनकी संख्या कम करना चाहती थी।
एक शिकारे के मालिक मोहम्मद यूनिस ने मीडिया के हवाले से बताया कि जब झील और अन्य जल निकायों के आसपास निर्माण संबंधी प्रतिबंधों के चलते अधिकारियों को शिकारा लाइसेंस का नवीनीकरण न करने के लिए निर्देशित किया गया था तो, विशेष अनुमति के बिना मरम्मत करना असंभव हो गया। अनुमति केवल एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद ही प्राप्त की जा सकती थी, जिसमें कम ही सफलती मिलती है। इसी के चलते वे लोग, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन शिकारा है, संकट में हैं। बीते 22 मई 2021 को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू कश्मीर में शिकारे के नवीनीकरण की अनुमति देने के लिए एक नई नीति की घोषणा की थी, जिससे शिकारा मालिकों में उम्मीद की किरण जगी थी। हालांकि अभी तक धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ है।