सत्ताधीशों को धराशायी करने वाला महानायक : राजनारायण – पहली किस्त

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राजनारायण (23 नवंबर 1917 - 31 दिसंबर 1986)


— प्रोफे़सर राजकुमार जैन —

हिंदुस्तान में सोशलिस्ट तहरीक के जन्मदाताओं में डॉ राममनोहर लोहिया का जब भी जिक्र आता है तो उसमें उनके दो अनुयायियों- राजनारायण और मधु लिमये- का संदर्भ आना लाजमी है।

1948 में सोशलिस्ट पार्टी बनने के बाद जब डॉ लोहिया सोशलिस्ट सिद्धांतों, नीतियों की स्थापना के साथ-साथ तात्कालिक सत्ताधारियों के खिलाफ हर तरह की खिलाफत, लानत- मलामत, हमले झेलते हुए समता, संपन्नता, स्वतंत्रता, नागरिक हकूकों की रक्षा, वंचितों के हक के लिए संघर्ष कर रहे थे तो राजनारायण-मधु लिमये भी पूरी शिद्दत के साथ अपने नेता की तरह हर तरह की तकलीफ सहते हुए लड़े थे।

सत्ताधारियों का गुणगान होना एक मामूली रिवायत है, परंतु इंतकाल के 36 बरस बाद भी राजनारायण जी जैसे नेता की बात और याद को जिंदा रखने के लिए दीवाने इस मशाल को जलाए हुए हैं। उसी की एक मिसाल मेरे सोशलिस्ट साथी शाहनवाज अहमद कादरी हैं। कादरी तमामउम्र राजनारायण जी की कीर्ति पताका फहराने को अपना मिशन बनाए हुए हैं। आज भी यह फख्र के साथ “राजनारायण के लोग” नामपट्ट लगाकर अपनी फर्ज अदायगी करने में सुख महसूस करते हैं। यूं तो यह सालों- साल राजनारायण जी के नाम पर कुछ ना कुछ कार्य करते ही रहते हैं, परंतु अब इन्होंने राजनारायण जी पर एक बहुत ही विचारोत्तेजक, तथ्यपरक, जानकारी प्रदान करने वाली पुस्तक “राजनारायण एक नाम नहीं इतिहास है” का संपादन कर प्रस्तुत की है। मुझे लगता है अगर केवल इसी एक किताब को ही पढ़ लिया जाए तो राजनारायण जी के व्यक्तित्व के बारे में मुकम्मल जानकारी पाठकों को मिल जाएगी। मुल्क भर के विद्वानों, राजनारायण जी के सहयोगियों, समर्थकों, अनुयायियों ने बहुत ही सारगर्भित रूप से अपने लेख इस किताब के लिए लिखे हैं।

मेरे भी एक लेख को कादरी भाई ने इस किताब में जगह दी है, उसी को मैं प्रस्तुत कर रहा हूं।

हिन्दुस्तान के राजनैतिक इतिहास में 1975 में घोषित आपातकाल तथा उसके बाद जनसंघ, सोशलिस्ट, कांग्रेस (ओ) लोकदल पार्टियों से मिलकर बनी, जनता पार्टी तथा उसकी केंद्र में बनी सरकार एक यादगार तथा सबक़ लेने की मिसाल है। सियासी गलियारों में इस घटनाक्रम के रचनाकार, आज़ादी की जंग के सिपहसालार सोशलिस्ट तहरीक के जन्मदाताओं में से एक, तमाम उम्र मुल्क में ग़रीबों, पिछड़ों, बेसहारा, बेजुबानों की तरफ़दारी करने तथा बदले में कुछ न पाने की चाहत रखने वाले जयप्रकाश नारायण को माना जाता है।

परंतु अगर इस सियासी तवारीख की गहराई से पड़ताल की जाए, तो इसका असली नायक राजनारायण है।

डाॅ. लोहिया के अनुयायी, बर्तानिया हुकूमत से लेकर ज़िंदगी के आखि़री दौर तक जम्हूरियत तथा दबे-कुचले, सताये हुए अक़लियत व दलित अवाम के लिए मुसलसल संघर्ष करने के कारण शरीर पर पड़ी मार से लेकर अनगिनत बार हिंदुस्तान की मुख़्तलिफ जेलों में बरसों-बरस बंदी जीवन बिताने वाले राजनारायण, जिन्हें इनके साथी और अनुयायी, प्यार और अदब में नेताजी तथा लोकबंधु कहकर पुकारते थे।

राजनारायण जी तथाकथित भद्रलोक से एकदम उलट, एक ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले, आग्रही, धुन के पक्के, मस्तमौला तबियत के नेता थे। दल, संगठन सिद्धांत कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए वह बाहरी दिखावे, झूठी शानो-शौकत में यक़ीन नहीं करते थे। गांव-देहात, गलियों, ऊबड़-खाबड़ रास्तों, मुश्किल से पहुंचने वाले दुर्गम स्थानों पर कार्यकर्ताओं के आग्रह पर पहुंचा करते थे। यह उनकी खूबी थी कि सभा चाहे लाख लोगों की हो या 20-25 लोगों की, एक ही लय में समाजवाद का पाठ तथा अन्याय के विरोध में संघर्ष का संदेश देते थे।

राजनारायणजी की शख़्सियत की बुनावट ही ऐसी थी कि जिस कार्य को दूसरे लोग करने से डरते या कतराते हों, उसको करने की तैयारी में वह हमेशा रहते थे। खतरा उठाना उनकी फितरत थी।

1971 के संसदीय आम चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गांधी के खिलाफ़़ चुनाव लड़ने की मुनादी राजनारायण ने कर दी। भद्रलोक, अंग्रेज़ी पत्रकारिता तथा रंगे-पुचे सियासतदानों ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। खुद अपने संगी-साथियों ने भी उन्हें समझाया कि रायबरेली से चुनाव लड़ना नासमझदारी है, हार लाज़िमी है। आप किसी और सीट से चुनाव लड़ें।

प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का जादू जनता पर छाया हुआ था। परंतु राजनारायण जी कहां मानने वाले थे। चुनाव परिणाम के मुताबिक़ राजनारायण जी एक लाख 10 हजार वोट से हारे हुए घोषित कर दिये गये, लेकिन उन्होंने इस हार को स्वीकार नहीं किया। उनकी मान्यता थी कि जनता ने मुझे जिताया है। सरकारी मशीनरी तथा सरकार ने साजिश करके मुझे हरवाया है। उन्होंने इसके विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर कर दी। न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने निर्णय में भ्रष्ट आचरण अपनाने के कारण श्रीमती इन्दिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर दिया तथा प्रधानमंत्री को छह साल के लिए लोकसभा की उम्मीदवारी से निषिद्ध कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका को भी कोर्ट ने बिना शर्त स्टे देने से मना कर दिया।

(क्रमश:)

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