14 दिसंबर। शिक्षा के अधिकार के लिए अखिल भारतीय मंच(AIFRTE) ने 2.5 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति रोकने के भारत सरकार के फैसले की निंदा करते हुए कहा है, कि जहाँ एक तरफ 8 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले तथाकथित सवर्णों के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस आरक्षण की शुरुआत की गयी, वहीं ऐतिहासिक रूप से भेदभाव के शिकार वर्गों के सबसे गरीब बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार पर एक स्पष्ट हमला किया गया है। सत्र 2022-23 से लागू होने वाले इस निर्णय को इस आधार पर न्यायोचित ठहराने की कोशिश की जा रही है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अनुसार सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक की शिक्षा मुफ्त है।
विदित हो कि केंद्र सरकार की इन छात्रवृत्तियों में हिस्सेदारी 75% की है, जबकि राज्य 25% योगदान करते हैं। इस एकतरफा फैसले से राज्यों के पास इसे बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। यह ऐतिहासिक रूप से भेदभाव के शिकार वर्गों के सबसे गरीब बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार पर एक स्पष्ट हमला है। AIFRTE की माँग है कि भारत सरकार तुरंत इस घोर जनविरोधी और दुर्भावनापूर्ण निर्णय को वापस ले। वास्तव में बढ़ती फीस वृद्धि को देखते हुए पहली से आठवीं कक्षा के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, ताकि शिक्षा के मौलिक अधिकार से सबसे उत्पीड़ित वर्गों के बच्चे वंचित न हों।