14 दिसंबर। देश में न्यू इंडिया और विकास का डंका पीटा जा रहा है, लेकिन सीवर, सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान जान गंवाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले करीब पाँच वर्षों में सीवर एवं सेप्टिक टैंक की सफाई करने के दौरान 400 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सरकार की तरफ से मंगलवार को यह जानकारी दी गई।
सरकार ने लोकसभा को बताया कि वर्ष 2017 के बाद से सीवर एवं सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान 400 लोगों की मौत हुई। लोकसभा में दानिश अली के प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय राज्यमंत्री रामदास अठावले ने यह जानकारी दी। अठावले द्वारा सदन में पेश आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में 100 लोगों, वर्ष 2018 में 67 लोगों, 2019 में 117 लोगों, 2020 में 19 लोगों, 2021 में 49 लोगों और 2022 में 48 लोगों की सीवर एवं सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान मौत हो गयी।
इसमें सबसे बड़ा कारण केंद्र और राज्य सरकारों की सफाई कर्मचारियों के प्रति उदासीनता है। सरकार ने मैला प्रथा के विरुद्ध कानून बना दिए हैं, पर उनका सख्ती से पालन नहीं किया जाता। कानून यह भी है, कि किसी भी सफाई कर्मचारी को सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अंदर उतारना अपराध है। इमरजेंसी में भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मी को सीवर या सेप्टिक टैंक में उतारना दंडनीय अपराध है, परन्तु कानून को ताक पर रख सफाईकर्मी को बिना सुरक्षा उपकरणों के इन मौत के कुएं में धकेल दिया जाता है। लगातार बढ़ती ऐसी घटनाओं को बंद कम करने के लिए ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ संगठन द्वारा आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश के अलग-अलग राज्यों में 75 दिनों तक ‘एक्शन 2022 सीवर-सेप्टिक टैंक में हमें मारना बंद करो’ नाम से एक विरोध प्रदर्शन किया गया।
21 राज्यों में सफाई कर्मचारी इस आंदोलन के साथ जुड़े हैं। इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली से की गई। इस दौरान सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार से हमारी माँग है कि सरकार जिस तरह से बाकी कामों के लिए मशीनों का प्रयोग करवा रही है वैसे ही मैला ढोने के लिए मशीनें लागू करे ताकि सेप्टिक टैंक की जहरीली गैस से किसी भी व्यक्ति की मौत न हो।
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