रिज मैदान पर जब अटल बिहारी वाजपेयी की सभा हो सकती है तो राजनारायण की क्यों नहीं? – चौथी किस्त

0
राजनारायण (23 नवंबर 1917 - 31 दिसंबर 1986)

चौ. चरण सिंह तथा राजनारायण को मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया।

जनता पार्टी की बर्बादी का पहिया घूमने लगा


— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

च्चीस जून को शिमला में ‘युवा जनता’ का सम्मेलन था। सायंकाल शिमला के रिज मैदान में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन था। मैं उस समय युवा जनता का राष्ट्रीय महामंत्री था।

हमने पहले ही युवा जनता की ओर से वहां के डी.एम. के नाम सभा आयोजन के लिए अनुमति देने का पत्र दे दिया था।

सभा शुरू होने से पहले मैं और मेरे साथी मार्कण्डेय सिंह सभा स्थल पर इंतज़ाम देखने के लिए पहुंच गए थे- मंच मैदान से काफ़ी ऊपर स्थायी रूप में छतरी की शक्ल में बना हुआ है। नीचे मैदान में सैलानी दर्शक वहां घूमते रहते है। हमने वहां लाउडस्पीकर लगा दिया था, परंतु कुछ ही मिनटों के बाद पुलिस वहां आ गई कि आप यहां मीटिंग नहीं कर सकते, क्योंकि यहां पर सभा करने की मनाही है।

हमने कहा कि यहां पर कुछ दिन पूर्व ही श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सभा हो चुकी है। राजनारायण जी भी केंद्रीय मंत्री हैं। उनकी सभा क्यों नहीं हो सकती? थोड़ी देर में सभा शुरू हो गई। मंच का संचालन मैं ही कर रहा था। युवा जनता के नेताओं को बुरा लग रहा था कि अटल जी की मीटिंग तो यहां हो सकती है, परंतु राजनारायण जी की नहीं। पुलिस के अफ़सरों ने हमसे अनुरोध किया कि आप नीचे लेडिज़ पार्क में सभा कर लें। हमने कहा कि यह अन्यायपूर्ण है, क़ानून सबके लिए समान है। हम हर हालत में यहीं सभा करेंगे। इसी बीच राजनारायण जी भी वहां पहुंच गए। राजनारायणजी ने अपने भाषण में युवा जनता के कार्यकर्ताओं को अनुशासन के साथ अन्याय का प्रतिकार करने की भी सलाह दी। राजनारायणजी के भाषण समाप्ति के बाद, मंच से उतरते ही युवा जनता के कार्यकर्ता, ‘राजनारायण जिंदाबाद’, ‘तानाशाही मुर्दाबाद’ के नारे लगाने लगे। पुलिस ने हमें गिरफ़्तार कर लिया और हिमाचल की नाहन जेल में ले जाकर बंद कर दिया।

जनता पार्टी में चरम पर तनाव बढ़ गया। राजनारायण जी पर अनुशासन की कार्यवाही का एक मज़बूत बहाना मिल गया। जयप्रकाश जी ने फिर एक कोशिश की, मोरारजी खेमा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। मोरारजी ने इनकी एक नहीं सुनी तथा एक पत्र राजनारायण जी को भेज दिया गया।

29 जून 1978 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण जी को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के लिए पत्र लिखा –

प्रिय राजनारायण जी,
आपको याद होगा कि कल मैंने आपसे 25 जून को शिमला में हुए घटनाक्रम के बारे में बात की थी। आपने रिज (शिमला) पर सभा की पाबंदी पर जानकारी होने से अनभिज्ञता प्रकट की थी। मैंने इसके संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त की, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आपने जानबूझकर यह जानते हुए भी कि रिज पर सभा करने की मनाही है, के बावजूद कानून तोड़कर सभा की। अपने भाषण में आपने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पर आक्रामक रवैया अपनाया। आपके इस आचरण से मंत्रिमंडल की हुई बदनामी के कारण मेरे पास सिवाय इसके कि मैं आपसे मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देने को कहूं और कोई मार्ग नहीं बचा है।
आपका
मोरारजी देसाई

मोरारजी ने राजनारायण जी को जिन आरोपों के आधार पर हटाया था वह सही नहीं था। वहां इस प्रकार का कोई क़ानून नहीं था।

राजनारायण जी ने 30 जून, 1978 को प्रधानमंत्री को अपने जवाबी पत्र में लिखा-

प्रिय प्रधानमंत्री जी,
आपने मुझसे मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा मांगा है। यह आपका विशेषाधिकार है, परंतु आपको यह करने के लिए असत्य, द्वेषपूर्ण आरोपों, जिसका मक़सद मेरी तथा पार्टी की बदनामी हो, का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं थी।

मैंने आपको व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक रूप से शिमला के संबंध में बतला दिया था। इसके बावजूद आपने असत्य का सहारा लिया।

शिमला का घटनाक्रम हर उस इंसान के लिए आंख खोलने वाला है, जो सोचते हैं कि लोकतंत्र की लड़ाई जीत ली गई है। हमें यह लड़ाई अपने जीवन में हर रोज़ लड़नी है। मैं युवा जनता के कार्यकर्ताओं का आभारी हूं तथा श्रीमती गांधी के निरंकुश राज जैसी प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए कटिबद्ध हूं। मैं शपथ लेता हूं कि जिन मूल्यों के लिए जनता पार्टी अस्तित्व में आयी, उनके प्रति सदैव निष्ठावान रहूंगा।

मैं आश्वस्त हूं कि मेरा इस्तीफ़ा मांगने के पीछे आपकी छिपी मंशा, जानबूझकर उन आरोपों को जो आप जानते हैं, झूठे हैं, लगाकर, आप अक्सर अपने भाषणों में अपनी छवि सत्य का अनुगामी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।

आपके पत्र में जो बात और निष्कर्ष निकले हैं वह ग़लत तथा झूठे हैं। मैं सही समय तथा उचित स्थान पर झूठ की इस कहानी, जिसके पीछे गहरी साजिश तथा विश्वासघात, जिसका पटाक्षेप वर्तमान ड्रामा, जो हम देख रहे हैं, से निबटूंगा। लोकतंत्र में जनता को यह जानने का अधिकार है कि जिस क्रांति को मार्च 1977 में उसने बड़ी हिम्मत तथा संकल्प के साथ प्राप्त किया था, उसके प्रति कौन असत्य है। विदेश भ्रमण से वापिस आने पर आपने जो पहला शब्द कहा था कि मैं कुछ मुद्दों को ठीक करूंगा, उससे यह स्पष्ट हो गया था। शायद कई महीनों से जो उधेड़बुन आपके मन में चल रही थी, उसको अंतिम रूप आपने अपने विदेश दौरे में दे दिया। वर्तमान घटनाक्रम स्पष्ट रूप से बिना किसी भ्रम के लघु फासिस्ट रूप है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अब निरंकुश ताकतें गोलबंद होकर जनता को पुनः कुचलने के लिए आमादा हों।

मैं आशा करता हूं कि आपके पार्टी सहकर्मी तथा कार्यकर्ता समय रहते हुए इस ख़तरे को महसूस कर लें।

श्री मोरारजी देसाई
प्रधानमंत्री, भारत
आपका निष्कपटतापूर्वक
राजनारायण

(क्रमशः)

Leave a Comment