एक नेता जिसने हमेशा सत्ता ठुकराई तथा सिद्धांत के लिए लड़ाई मोल ली। – छठी किस्त

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राजनारायण और मधु लिमये


— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

हिंदुस्तान की सियासत में ऐसी बहुत ही कम मिसालें हैं जहां नेता ने सत्ता को नहीं उसूल को चुना हो। मधु लिमये ने बरतानिया हुकूमत से हिंदुस्तान की, तथा पुर्तगाली जारशाही खूंखार निजाम से गोवा की आजादी के लिए लड़कपन से लड़ते हुए अनेकों यातनाएं तो सही ही थीं। आजादी के बाद भी हिंदुस्तान की संसद में और सड़क पर समाजवाद के सिद्धांत, समता, संपन्नता और स्वतंत्रता का परचम लहराने के लिए ताउम्र जद्दोजहद की।

उद्भट विद्वान, चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण की आंखों के तारे मधु लिमये के इतिहास को जाने बिना जनता पार्टी के निर्माण और विघटन तथा खासतौर से राजनारायण जी की भूमिका से वाकिफ नहीं हुआ जा सकता। डॉ लोहिया, राजनारायण, मधु लिमये अलग-अलग नाम होने के बावजूद एक तंजीम का मुकम्मल नाम है। आपातकाल समाप्ति की घोषणा के बाद हिसार जेल (हरियाणा) से 19 महीने का बंदी जीवन गुजारने वाले राजनारायण तथा नरसिंहगढ़ जेल (मध्य प्रदेश) के सींकचों से आजाद होने वाले मधु लिमये का हजारों सोशलिस्ट कार्यकर्ता, खुद जेलों से रिहा होकर बेकरारी से इंतजार कर रहे थे।

दिल्ली में प्रमुख रूप से कांग्रेस(ओ) मोरारजी देसाई, भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, तथा भारतीय लोक दल, तथा बाद में सीएफडी (बाबू जगजीवन राम) पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ कर संसद में बहुमत प्राप्त कर लिया।

आपसी सहमति से मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुन लिया गया तथा साथ ही यह भी तय किया गया कि हर घटक से 3 सदस्य तथा चंदशेखर जी को पहले मंत्रिपद की शपथ दिलवाई जाएगी।

जनता पार्टी के विभिन्न घटकों के नेता सरकार और विपक्ष में रहते हुए मधु लिमये के 1964,1967,1973,1977 में चार बार लोकसभा के सदस्य चुने जाने पर उनकी संसदीय दक्षता, धार, ज्ञान, प्रतिभा, सादगी से बखूबी वाकिफ थे। संसद में मधु लिमये ने मोरारजी भाई की कई बार बखिया उधेड़ी थी। परंतु मोरारजी भाई देसाई, बाबू जगजीवन राम, अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि मधु लिमये केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हों। मधु लिमये ने विनम्रता के साथ इसे अस्वीकार कर दिया, यही रास्ता जनसंघ के नानाजी देशमुख ने भी अपनाया उनका नाम भी मंत्रिमंडल की पहली सूची में शामिल था उन्होंने भी इनकार कर दिया। चंद्रशेखर जी ने पार्टी से अनुरोध किया कि उनके स्थान पर उनके पुराने साथी मोहन धारिया को मंत्री बना दिया जाए।

जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर चंद्रशेखर जी को चुन लिया गया। उन्हीं के साथ पार्टी के महामंत्री के रूप में मधु लिमये (सोशलिस्ट) नानाजी देशमुख (जनसंघ) रवि राय (भारतीय लोक दल) बना दिए गए। जनता पार्टी के इतिहास में मधु लिमये की सर्वाधिक रचनात्मक भूमिका रही है, परंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनसंघ की दोहरी सदस्यता के सैद्धांतिक सवाल को उठाकर उन्होंने जहां एक ओर ऐतिहासिक भूमिका निभाई वहीं विपक्षी खेमे के साथ-साथ अपनों ने भी मंत्रिपद गंवाने की तड़फ पर भयानक कुप्रचार, आरोप, मधु लिमये पर पार्टी तोड़क यहां तक कि रूस के इशारे पर काम करने के आरोप लगाए। जिस समय चौधरी चरण सिंह, राजनारायण जी को केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकाला गया उस समय मधु लिमये विदेशी दौरे पर अमेरिका में थे। दिल्ली से हड़बड़ाहट में केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम कौशिक, पार्टी महासचिव रवि राय तथा अन्य लोगों ने अमेरिका में संपर्क साध कर तत्काल हिंदुस्तान आने का अनुरोध किया।

5 जुलाई को मधु लिमये अमेरिका दौरा बीच में छोड़कर वापिस आ गए। मधु लिमये ने सबसे पहले बीजू पटनायक को टेलीफोन किया, फिर जार्ज फर्नांडीज़ को कहा कि संसदीय बोर्ड का निर्णय बहुत विनाशकारी होगा, फिर वे जार्ज फर्नांडीज़ को साथ लेकर बीजू पटनायक के पास गए। शुरू की ना नुकर के बाद बीजू पटनायक भी मधु लिमये के साथ सुलह के प्रयास में शामिल हो गए। तब मधु जी चौ. चरण सिंह के यहां गए। चौधरी साहब ने कहा कि किसी भी सम्मानपूर्ण समझौते को मान लूंगा। उसके बाद मधु लिमये ने अटल जी को टेलीफ़ोन किया। अटल जी बहुत निराश थे, उन्होंने कहा अब क्या हो सकता है। मामला तो बहुत दूर तक चला गया। अंत में उन्होंने कहा कि वे अपने आप तो कोई पहल नहीं करेंगे, परंतु मैं भी चाहता हूं कि समझौता हो। आप अपना प्रयास जारी रखें। मैं आपके साथ हूं। फिर मधु जी ने चंद्रशेखर जी (अध्यक्ष) से बात की। चंद्रशेखर जी ने कहा कि कोई सम्मानजनक समझौता अगर तुम निकाल सकते हो तो मैं तुम्हारे साथ हूं। इसके बाद मोरारजी देसाई से मधु जी मिले। उन्होंने मोरारजी से पूछा कि क्या आपने अंतिम रूप से चौधरी साहब से अलग रहने का निर्णय कर लिया है। उन्होंने कहा कि नहीं, परंतु उन्होंने (चौ. चरण सिंह ने) उनके पुत्र कांति देसाई पर आरोप लगाए हैं तथा रैली करने का निर्णय ले लिया है। मधु लिमये ने कहा कि अगर मैं चौ. चरण सिंह को रैली ना करने के लिए राजी कर लूं तो क्या हरियाणा में विश्वास-मत आप टाल देंगे? मोरारजी ने कहा नहीं, क्योंकि देवीलाल ने केंद्रीय नेताओं पर साजिश करने का आरोप लगाया है। उनको बिना किसी शर्त उसको वापिस लेना होगा। उन हालात में चण्डीगढ़ में विश्वास मत वाली बैठक को ख़त्म किया जा सकता है।

मधु लिमये लिखते हैं कि मुझे कुछ सकून मिला। मैंने तीन बिंदुओं पर केंद्रित किया- 1. चौ. चरण सिंह को प्रस्तावित रैली को ख़त्म करना होगा। 2. चौ. देवीलाल को केंद्रीय नेताओं पर लगाए आरोपों को वापिस लेना होगा। 3. केंद्रीय संसदीय बोर्ड को हरियाणा में विश्वासमत लेने के निर्णय को वापिस लेना होगा। उसके बाद मधु जी ने चौ. साहब को रैली स्थगित करने के लिए मना लिया, फिर बीजू पटनायक के साथ मिलकर चौ. देवीलाल को रैली स्थगित करने तथा केंद्रीय नेताओं के विरुद्ध लगाए आरोप वापिस लेने को राजी कर लिया ।

मधु लिमये ने पहले अटल बिहारी वाजपेयी से बात की, फिर एल.के. आडवाणी, जार्ज फर्नाडीज़, बीजू पटनायक, कर्पूरी ठाकुर, रवि राय तथा एस.एन. मिश्रा को भी शामिल कर लिया। इस प्रकार 8 लोगों ने जिस तीन सूत्री फार्मूले पर मधु जी ने मोरारजी देसाई को राजी किया था, उस पर हस्ताक्षर करके समझौता प्रयास शुरू कर दिया ।

(जारी)

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