— कमलेश वर्मा —
मेरे खयाल से यह हिंदी का पहला कविता संग्रह है जिसमें जाति से जुड़े सवालों को मुख्य विषय बनाया गया है।
दलित विमर्श के काव्य-संग्रहों में दलित जातियों से जुड़े प्रश्न होते हैं और उत्पीड़न करनेवालों की जाति के बारे में बात की जाती रही है। मगर पंकज चौधरी ने किसी जाति की तरफ से कोई बात नहीं कही है, बल्कि जाति के व्यावहारिक-सामाजिक रूप को अपनी कविताओं का विषय बनाया है।
जाति के प्रश्नों की रोशनी में उन्होंने समाज, साहित्य, राजनीति और संस्कृति के कुछ पक्षों पर इन कविताओं में बात की है। ठीक से पढ़ा जाए तो उनका कोई दुराग्रह किसी भी जाति के खिलाफ दिखायी नहीं पड़ता है। इतना ज़रूर है कि जाति के नाम पर होनेवाले अत्याचारों में चाहे जिस जाति की भी भागीदारी रही हो, वे उसका विरोध करते हैं।
पंकज की कविताएँ इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण हैं कि जाति के प्रश्नों पर साफ मन से विचार करके ही जातिवाद से बचा जा सकता है।
पंकज की कविताओं में अगड़ी-पिछड़ी-दलित जातियों से लेकर मुसलमान-ईसाई-बौद्ध आदि धर्मों के जाति-विन्यास की भी परख की गयी है। वे उत्तर-दक्षिण भारत के जाति-वैविध्य की झलक अपनी कविताओं में देते हैं।
इन 58 कविताओं में कुछ के विषय अलग जरूर हैं मगर ज्यादातर कविताओं का विषय जाति-विमर्श है। इस संग्रह की कविताओं में करीब 50 जातियों का जिक्र हुआ है। ये भारत की जाति-व्यवस्था के वैविध्य को प्रकट करती हैं। इतनी सारी जातियों का उल्लेख अब तक हिंदी के किसी भी कवि ने नहीं किया है।
जाति के प्रश्न पर कबीर सर्वाधिक मुखर हैं। उन्होंने जातियों का उल्लेख करते हुए हिंदी के किसी भी कवि से ज्यादा कविताएँ लिखी हैं। लगभग पौने तीन सौ कविताओं का संकलन मैंने अपनी पुस्तक ‘जाति के प्रश्न पर कबीर’ में किया है। मगर कबीर की कविताओं में इतनी सारी जातियों का उल्लेख नहीं मिलता है। पंकज चौधरी इस विषय पर लिखने वाले दुर्लभ कवि हैं।
पंकज चौधरी की काव्य-भाषा पर विचार करते हुए महाकवि देव की उक्ति याद आती है- ‘अभिधा उत्तम काव्य है…।’ बहुत दिनों के बाद ऐसा कोई संग्रह दिखायी पड़ा है जिसकी भाषा को काव्य-भाषा कहलाने के लिए लक्षणा तो छोड़ दीजिए, व्यंजना की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ी है। पंकज चौधरी की काव्य-भाषा ‘ध्वनि’ की श्रेणी की भाषा है।
सीधी-सरल भाषा के दम पर चलती हुई उनकी कविता कई लोगों को, हो सकता है, कविता ही न लगे! हो सकता है कि इनके मूल्यांकन में कविता की गंभीर कसौटियों को कठिनाई महसूस हो!
विषय-वस्तु की चुनौती भी भाषा को कविता का दर्जा प्रदान करती है। पंकज चौधरी ने खारिज़ हो जाने की चुनौती के साथ कविता लिखने का प्रयास किया है।
विषय-वस्तु की पीड़ा से जब लगाव हो जाए तो चिंता के केंद्र में अभिव्यक्ति होती है। पंकज चौधरी को जाति-संबंधी विषय-वस्तु की पीड़ा से गहरा लगाव है। उनकी चिंता के केंद्र में इस विषयवस्तु की सटीक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति के लिए वे भाषा के जिस रूप को सुविधाजनक महसूस करते हैं उसे ही काव्य-भाषा के रूप में चुनने का फैसला लिया है।
दुनिया भर में लिखी गयी कविताएँ न जाने भाषा के कितने रूपों में रची गयी हैं। रूप की नवीनताओं ने ही कविता को लंबी उम्र दी है।
किताब : किस-किस से लड़ोगे (कविता संग्रह)
कवि : पंकज चौधरी
प्रकाशक : सेतु प्रकाशन, सेक्टर 65, नोएडा-201301
ईमेल : [email protected]
मूल्य : 199 रु.