गुलज़ार हुसैन की सात कविताएं

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पेंटिंग : नूपुर झा


1. झूलतो पुल

कांताबेन उस शाम इतनी खुश थी
जितनी खुश होती है चिड़िया अपने बच्चों को पहली बार उड़ता देख आकाश में
उस शाम उसके तीनों बच्चे हाथों में हाथ डाले खुशी से झूम रहे थे
कह रहे थे- ‘झूलतो पुल घूमने जा रहा हूं मां’
कांताबेन तीनों भाइयों के प्रेम को देख मुस्कुराए जा रही थी
मानो अब उसे इस दुनिया में और कुछ नहीं चाहिए
बस बच्चों के इन खिलखिलाते चेहरों को वह देखती रहे
तीनों बच्चों के इस प्रेम को देख
इतना स्नेह उमड़ा था मां का
कि उसने सोचा था कि उनके लौटने पर वह मनपसंद
आलू के पराठे बनाएगी
वह खुश थी कि झूलतो पुल पर
चिड़ियों सा चहकेंगे उसके बच्चे
जब वे चले गए, तो उसने सोचा-
कि वे जब लौटकर आएंगे तो वह पूछेगी-
कि अब कैसी लगती है उस पुल से मच्छू नदी?
कि क्या नदी पूरी दिखाई देती है ऊपर से?
वह जानती थी कि उसके बेटे आते ही खुशी से कहेंगे-
…मां अगली बार तुम भी साथ चलना
और वह गाल पर प्यार से एक चपत लगाकर कहेगी-
अब मैं क्या घुमूं, जो घूमना था घूम लिया रे
पर मन ही मन सोचेगी कि अगली बार तीनों के साथ झूलतो पुल घूमने वह जरूर जाएगी
…लेकिन उसे यह कहां पता था कि उसका यह सपना कभी पूरा नहीं होगा
उसे यह कहां पता था कि झूलतो पुल टूटकर नदी में ठीक वैसे ही बिखर जाएगा
जैसे बहेलिये के डंडे की चोट से चिड़ियों का घोंसला तिनका-तिनका बिखर जाता है
उसे यह कहां पता था कि झूलतो पुल से अब कभी लौटकर नहीं आएंगे उसके बच्चे
और वह उसकी राह तकती रह जाएगी

(गुजरात के मोरबी में झूलतो पुल के गिरने से जान गंवाने वालों की स्मृति को समर्पित)

2. बुद्ध के गांव के बच्चे

बुद्ध जहां करते थे विहार,
उस बिहार के गांवों-देहातों में आज भी बच्चों के चेहरे पर होती है बुद्ध सी मासूमियत
लेकिन उन बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेरे बिना आप यह सब नहीं जान सकते
आप नहीं जान सकते
कि अभी-अभी जो बच्चा
भट्ठे पर ईंट बनाती मां से दूर जाकर पेड़ की छांव तले बैठा सुस्ता रहा है
वह कर रहा है किसी सुजाता की मीठी खीर की प्रतीक्षा
और इस प्रतीक्षा ने ही उसे बना दिया है बुद्ध सा निश्छल
आप नहीं जान सकते
कि मां के साथ खेतों में कटनी करने गए बच्चे के गांव की पंगडंडियों से होकर चले थे बुद्ध कभी
इसलिए जब मां खेतों में काम करती है, तो बच्चा पगडंडी की घास पर बैठ जाता है
और आकाश में उड़ते सफेद बगुले को बुद्ध की तरह हाथ उठाकर बुलाता रहता है
आप नहीं जान सकते
कि जो बच्चा अभी जामुन के पेड़ पर छुपा बैठा था
वही बच्चा अभी पोखर में छलांग मार कर मुंह निकाले क्यों खिलखिला रहा है?
वही बच्चा अभी खजूर के पेड़ पर चढ़कर खजूर तोड़कर नीचे खड़े दोस्तों की ओर क्यों फेंक रहा है
वही बच्चा बस्ता लेकर स्कूल जाते समय ढेला मारकर आंवले क्यों तोड़ रहा है
आप ऐसे ही नहीं जान सकते
बुद्ध के विहार करने वाली धरती पर बच्चों के विहार करने का मतलब
जब तक आप उन बच्चों से बतियाइएगा नहीं, तब तक नहीं जान पाइएगा
कि उन बच्चों में बुद्ध का वास कैसे है?
कि कैसे वे बच्चे आपकी हर बात में मुस्कुराकर हां कह देंगे
आप नहीं जान सकते
कि क्यों बुद्ध की धरती के बच्चे कभी ना कहना नहीं जानते
आप कहेंगे नीम का दातुन ला दो
वे अगले ही पल नीम के पेड़ पर चढ़ जाएंगे,
उसकी डाल पर लगे मधुमक्खियों के छत्ते की
परवाह किए बगैर
हां, बुद्ध के गांव के बच्चे
बुद्ध की तरह ही
आजीवन बच्चे बने रहते हैं
आजीवन बुद्ध बने रहते हैं
आप चाहें तो यह जान सकते हैं

(बिहार दिवस पर बिहार के गांवों को याद करते हुए)

3. ईसा मसीह की मूर्ति

मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं
कि ईसा मसीह की मूर्ति तोड़ने वालों कट्टरपंथियों ने अगर देखी होती
दादर के चर्च में स्थापित मसीह की मूर्ति को, तो वे छोड़ देते हथियार हमेशा के लिए
निस्संदेह उस मूर्ति को देखते ही भर आतीं उनकी आंखें
और वे लाठी-भाले छोड़कर वहीं हो जाते नतमस्तक
मैंने देखा है मसीह की उस मूर्ति को देखकर
लोगों को रोते हुए
मैंने देखा है, दूरदराज से मुंबई कमाने आए मजदूरों को, जिनके कदम अचानक थम गए थे उस मूर्ति को देखकर
मैंने देखा है माता-पिता से दूर आकर मुंबई को अपनाने वाली उन स्त्रियों को,
उस मूर्ति के सामने भावुक होते हुए
मानो उस मूर्ति को देखते हुए वे अपने मायके में
पहुंच गईं हों
काश, उस मूर्ति को कट्टरपंथियों ने देखा होता
काश, उन्होंने देखी होती मां मरियम की गोद में लेटे लहूलुहान ईसा मसीह की वे सजल आंखें
काश उन्होंने देखा होता ईसा के सिर पर हाथ फेरती मरियम का ममतामय चेहरा,
न जाने किस कलाकार ने बनाई है
स्नेह का प्रतीक यह मूर्ति
जिसे देखकर हमेशा लगा कि अरे यह तो मेरी ही मां है, जिसकी गोद में लेटा हूं मैं
मां की गोद में लहूलुहान बेटे को देखने के बाद
ऐसा कौन इंसान होगा, जिसके दिल में रत्ती भर भी नफरत और सांप्रदायिकता बची रह जाए
मैं दावे के साथ कह सकता हूं
किसी दूसरे धर्म के मानने वालों से नफरत करने वाले संगठन के लोगों ने नहीं देखी है ईसा मसीह की कोई भी मूर्ति
हां, किसी दूसरे धर्म के मानने वालों का नरसंहार करने की धमकी देने वालों ने नहीं देखी है मरियम की कोई भी मूर्ति
क्योंकि उनकी आंखों पर बांध दी गई है घृणा की पट्टी
लेकिन किसने बांधी है यह पट्टी?

पेंटिंग- कौशलेश पांडेय

4. गाँव

ओ मेरे उदास गाँव
ठहरे हो अभी वहीं के वहीं ….पीपल की छाँव …
सदियों से अंधेरे को समेटे आंगन में
मुस्काते हो निश्छल ….
अब तुम्हारी नहीं रही खेतों की हरियाली
और न ही तुम्हारे हैं गेहूं और धान
फिर भी तुमने नजरें नहीं फेरी
खेलने से नहीं रोका उन बच्चों को अपनी मिट्टी में
जिनके पिताओं ने तुम्हारा नाम ही बदल दिया
और पगडंडियों को खोद कर डाल दी नींव कारखानों की
अब कोई रास्ता तुम्हारी ओर नहीं जाता
जिससे होकर लौटे कोई दो दिन के लिए
और तुम्हारी छाँव में ले खुली सांस
मैं भी तुम्हारे यहाँ इस बार खेतों और गाछियों से होता आया हूँ
जैसे कोई शहरी बेटा अपने बीमार बूढ़े पिता से वर्षों बाद मिलने आता है
मुंह छुपाकर
सच बताओ,
तुम इतने उदास क्यों हो मेरे गाँव ?

5. वे तुम्हारा रास्ता रोकेंगे

वे नुकीले-कंटीले घेरे लगाकर तुम्हारा रास्ता रोकेंगे
तो क्या तुम रुक जाओगे?
ठहर जाओगे, एक ही जगह ठंडे पड़े शव की तरह?
बोलो?
वे इसलिए तुम्हें रास्ता नहीं देना चाहते
ताकि तुम चलने-फिरने वाले सक्रिय और सफल इंसान न बन जाओ कहीं
वे चाहते हैं कि तुम सड़े हुए पानी की तरह अपने झोंपड़े में दुबके रहो
वे रास्ते पर बस इतनी सी ही जगह देना चाहते हैं, जितने में तुम उनके बनाए धर्मस्थलों में पहुंच सको
ताकि ढोंगी-पाखंडी धर्मगुरुओं की बातें सुनकर
कथित सब्र से रहना सीखो
उनके लिए सब्र का मतलब है कि तुम सवाल न उठाओ
जितना मिले, उतने में संतोष कर लो
और अपने गंधाते झोंपड़े में रूखी सूखी रोटी खाते रहो
वे तुम्हें इतनी सी ही राह देना चाहते हैं, जितने में तुम उनके खेतों-फैक्ट्रियों में काम करने पहुंच सको
और उनके खेतों-फैक्ट्रियों में खटते हुए अपनी देह को कंकाल में बदल दो
और अपने कुपोषित बच्चों को ककहरा सिखाते हुए
मर जाओ
वे तुम्हें रास्ता नहीं देना चाहते
क्योंकि तुम बिना रास्ते के अपना एक रहने लायक छोटा सा घर भी न बना सको
और यदि कभी सपनों का घर बना भी लो
तो किसी विपत्ति में तुम्हारे घर पर
कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंच सके
तुम उनके पास जाकर जितना रास्ता खोल देने के लिए गिड़गिड़ाओगे
वे उतने ही जोर से अट्टहास करेंगे
तुम जितनी बार कहोगे कि रास्ते पर कंटीले बेड़े हटा लो
वे उतनी बार तुम्हारी पुरानी पड़ी कमीज के उखड़े कॉलर की ओर देखकर
फिर अपने नए कमीज की ओर देखेंगे
और मन ही मन अपनी लिजलिजी औकात नापते हुए घमंड से मूंछें ऐंठेंगे
तो सोचो
उनके द्वारा रास्ता रोक देने से
क्या तुम वहां घर नहीं बनाकर कहीं और बस जाओगे?
क्या तुम अपनी दादी की स्नेहिल मुस्कुराहट और दुआ से सराबोर धरती को छोड़कर भाग जाओगे?
कायरों की तरह?
या लड़ोगे?

पेंटिंग- तपज्योति

6. पेड़ की छांव

तुम पेड़ की एक डाल काटोगे
चिड़िया दूसरी डाल पर घोंसला बना लेगी
तुम दूसरी डाल काटोगे
चिड़िया तीसरी डाल पर जाकर चहकेगी
लेकिन जब तुम तीसरी डाल पर जाओगे
तो चिड़िया तुम्हारी आंखें फोड़ देगी
क्योंकि वहां उसके बच्चे
उड़ना सीखते हैं

तुम चाहे लाख डरा लो
चिड़िया इस पेड़ को छोड़कर कहीं नहीं जाएगी
चिड़िया ने छोड़ दिया है
तुम्हारी कुल्हाड़ी से डरना
क्योंकि चिड़िया ने तुम्हारा राज़ जान लिया है
चिड़िया यह जान गई है
कि तुम इस पेड़ का तना नहीं काट सकते
क्योंकि तुम्हारे बच्चे भी इसी पेड़ की छांव में
लुकाछिपी खेलते हैं

7. फूल

सुबह मेरे जगने से पहले
कोई मेरे गमले से तोड़ लेता है फूल
हर रोज
एक सुबह जल्दी जागकर
चुपके से झांकता हूं खिड़की के पर्दे के पीछे से
कि कौन है वह, जो तोड़ ले जाता है मेरे फूल
…तभी देखता हूं
गमले की तरफ बढ़ता हुआ हाथ
वह कोमल, छोटा सा हाथ
एक मासूम बच्चे का है
वह फूल तोड़ते हुए मुस्कुराता है
और मैं
उसे देखता रहता हूं देर तक
फूल तोड़ते हुए
लेकिन उस पर तनिक भी गुस्सा नहीं होता हूं
मैं बच्चे की एक मुस्कुराहट पर
हजारों फूल न्योछावर कर देना चाहता हूं
मैं चाहता हूं कि रोज खिले फूल

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