21 दिसंबर। देश में आज भी अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) का प्रतिनिधित्व उच्च पदों पर न के बराबर है। शीतकालीन सत्र के दौरान संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट पेश की गई है। जिसमें यह बताया गया है, कि पीएसयू यानी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में एससी-एसटी समुदाय की उच्च पदों पर उपस्थिति न के बराबर है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए बनी संसदीय समिति ने इस समस्या को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश की है। भाजपा सांसद कृति प्रेमभाई सोलंकी की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी ने मुख्य रूप से पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआईएल) के कर्मचारियों की नियुक्ति पर छानबीन की। जिसमें यह पाया गया कि कंपनी के उच्च पदों के लिए एससी-एसटी को प्रमोट नहीं किया गया।
पीजीसीआईएल के बारे में पैनल का कहना था कि यह आँकड़े और भी भयभीत करने वाले हैं। अगर महारत्न सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इन्टरप्राइजेज (सीपीएसआई) को छोड़ दें तो कहीं भी एससी-एसटी समुदाय का कोई भी ऑफिसर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल नहीं है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, कि देश की शीर्ष पीएसयू सीपीएसई के उच्च पद पर दलितों आदिवासियों की अनुपस्थिति एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है। समिति ने यह भी कहा है कि नियुक्त के लिए जो कानून है उसमें संशोधन किया जाना चाहिए ताकि उच्च पदों के लिए नियुक्ति हो सके। जिसमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स भी शामिल है। यदि किसी एससी-एसटी कैंडिडेट को किसी तरह की रियायत चाहिए तो वह भी उसे दी जाए। ताकि उनकी उपस्थिति तो सुनिश्चित किया जा सके।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि आरक्षण के आधार पर जितने प्रतिशत की नियुक्ति ग्रेड बी के लिए होनी थी वह भी नहीं हुई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि सहूलियत के बाद भी प्रमोशन के मामले में ग्रुप बी में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या में कमी एक बड़ी समस्या है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पीजीसीआईएल के एक संपर्क अधिकारी का पद जोकि एससी-एसटी समुदाय के लिए होता है वहाँ भी सामान्य वर्ग के व्यक्ति की नियुक्ति की गई है। यह पद समुदाय के आधार पर सबसे अधिक उपयुक्त होता है।
(‘मूकनायक’ से साभार)